तीर तरकश में रखो बरछी म्यान में,
बारूद सा उन्वान है मेरे बयान में।
जब-जब तराशा जाएगा हीरा बनेगा वो,
जो मिला था काँच का टुकड़ा खदान में।
होश में आ जाओ करो इल्तजा क़ुबूल ,
वर्ना! हैं और तीर भी हमारी कमान में।
मैं दिल से,ज़मीर से अभी तक मरा नहीं,
डटकर खड़ा रहा हूँ आंधी-ओ-तूफान में।
भटकों को कैसे आप रास्ता दिखायेंगे,
तुम रास्तों तो पे हो मुसाफिर उडान में।
कैसे शरीफ आप अचानक निकल गये,
हम-आप गुनहगार हैं इस संविधान में।
रिश्तों को बार-बार कसौटी पे मत रखो,
विश्वास से बड़ा नही है कुछ भी जहांन में।
हर वक़्त मुहूरत का बहाना है क्यों जनाब,
आता नहीं क्या कोई और लफ्ज ध्यान में।
अपनी शराफ़तों के क़सीदे ना पढ़ो तुम,
लाखो हैं तलब-गार रहो ना गुमान में।