मंज़िल पर पहुँच कर,
देखा जो मुड़कर
साथी कोई दिखा नहीं
किस मोड़ पर छूटा साथ
इल्म इस बात का था नहीं
खड़ा हूँ अकेला शिखर पर
आसमान छूने की तमन्ना हो गयी पूरी
ज़मीन से नाता, मगर टूट गया है
इस जीत का जश्न मनाऊँ
या शोक पता नहीं
२७ मई २०१७
जिनेवा
28 मई 2017
मंज़िल पर पहुँच कर,
देखा जो मुड़कर
साथी कोई दिखा नहीं
किस मोड़ पर छूटा साथ
इल्म इस बात का था नहीं
खड़ा हूँ अकेला शिखर पर
आसमान छूने की तमन्ना हो गयी पूरी
ज़मीन से नाता, मगर टूट गया है
इस जीत का जश्न मनाऊँ
या शोक पता नहीं
२७ मई २०१७
जिनेवा