shabd-logo

34.

11 फरवरी 2022

22 बार देखा गया 22

सेशन जज के इजलास में एक महीने से मुकदमा चल रहा है। अभियुक्त ने फिर सफाई दी। आज मनोहर का बयान था। इजलास में एक मेला सा लगा हुआ था। मनोहर ने बड़ी निर्भीक दृढ़ता के साथ सारी घटना आदि से अन्त तक बयान की और यदि जनता को अधिकार होता तो अभियुक्तों का बेदाग छूट जाना निश्चित था, किन्तु अदालत जाब्ते और नियमों के बन्धन में जकड़ी हुई थी। वह जान कर अनजान बनने पर बाध्य थी। मनोहर के अन्तिम वाक्य बड़े मार्मिक थे– सरकार, माजरा यही है जो मैंने आपसे अरज किया। मैंने गौस खाँ को इसी कुल्हाड़ी से और इन्हीं हाथों से मारा। कोई मेरा साथी, मेरा सलाहकार, मेरा मददगार नहीं था। अब आपको अख्तियार है, चाहे सारे गाँव को फाँसी पर चढ़ा दें, चाहे काले-पानी भेज दें, चाहे छोड़ दें। फैजू, बिसेसर, दारोगा ने जो कुछ कहा है, सब झूठ है। दारोगा जी की बात तो मैं नहीं चलाता, पर सरकार, फैजू और बिसेसर को अपने घर बुलायें और दिलासा दें कि पुलिस तुम्हारा कुछ न कर सकेगी तो मेरी सच-झूठ की परख हो जाय और मैं क्या कहूँ। उन लोगों का काठ का कलेजा होगा जो इतने गरीबों को बेकसूर फाँसी पर चढ़वाये देते हैं। भगवान, झूठ-सच सब देखते हैं। बिसेसर और फैजू की तो थोड़ी औकात है और दारोगा जी झूठ की रोटी खाते है, पर डाक्टर साहब इतने बड़े आदमी और ऐसे विद्वान कैसे झूठी गंगा में तैरने लगे, इसका मुझे अचरज है। इसके सिवा और क्या कहा जाय कि गरीबों का नसीब ही खोटा है कि बिना कसूर किये फाँसी पाते हैं। अब सरकार से और पंचों से यही विनती है कि तुम इस घड़ी न्याय के आसन पर बैठे हो, अपने इन्साफ से दूध का दूध और पानी का पानी कर दो।
अदालत उठी। यह दुखियारे हवालात चले। और सभों ने तो मन को समझ लिया था कि भाग्य में जो कुछ बदा है वह होकर रहेगा, पर दुखरन भगत की छाती पर साँप लोटता रहता था। उसे रह-रह कर उत्तेजना होती थी कि अवसर पाऊं तो मनोहर को खूब आड़े हाथों लूँ, किन्तु मजबूर था, क्योंकि मनोहर सबसे अलग रखा जाता था। हाँ, वह बलराज को ताना दे-देकर अपने चित्त की दाह को शान्त किया करता था। आज मनोहर का बयान सुन कर उसे और भी चिढ़ हुई। जब चिड़ियाँ खेत चुग गयी तो यह हाँक लगाने चले हैं। उस घड़ी अकल कहाँ चली थी। जब एक जरा सी बात पर कुल्हाड़ा बाँध कर घर से चले थे। इस समय मार्ग में उसे मनोहर पर अपना क्रोध उतारने का मौका मिल गया। बोला– आज क्या झूठ-मूठ बकवाद कर रहे थे। आदमी को तीर चलाने से पहले सोच लेना चाहिए कि वह किसको लगेगा। जब तीर कमान से निकल गया तो फिर पछताने से क्या होता है? तुम्हारे कारण सारा गाँव चौपट हो गया। अनाथ लड़कों और औरतों की कौन सुध लेनेवाला है? बेचारे रोटियों तो तरसते होंगे। तुमने सारे गाँव को मटियामेट कर दिया।
मनोहर को स्वयं आठों पहर यह शोक सताया करता था। गौस खाँ का वध करते समय उसे यही चिन्ता थी। इसलिए उसने खुद थाने में जाकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। गाँव को आफत से बचाने के लिए जो कुछ हो सकता था वह उसने किया उसे दृढ़ विश्वास था कि चाहे मुझे दुष्कृत्य पर कितना ही पश्चत्ताप हो रहा हो, अन्य लोग मुझे क्षम्य ही न समझते होंगे, मुझसे सहानुभूति भी रखते होंगे। मुझे जलाने के लिए अन्दर की आग क्या कम है कि ऊपर से भी तेल छिड़का जाय। वह दुखरन की ये कटु बातें सुनकर बिलबिला उठा, जैसे पके हुए फोड़े में ठेस लग जाय। कुछ जवाब न दे सका।
आज अभियुक्तों के लिए प्रेमशंकर ने जेल के दारोगा की अनुमति से कुछ स्वादिष्ट भोजन बनवाकर भेजे थे। अपने उच्च सिद्धान्तों के विरुद्ध वह जेलखाने के छोटे-छोटे कर्मचारियों की भी खातिर और खुशामद किया करते थे, जिसमें वे अभियुक्तों पर कृपादृष्टि रखें। जीवन के अनुभवों ने उन्हें बता दिया था कि सिद्धान्तों की अपेक्षा मनुष्य अधिक आदरणीय वस्तु है। औरों ने तो इच्छा पूर्ण भोजन किया, लेकिन मनोहर इस समय हृदय ताप से विकल था। उन पदार्थों की रुचिवर्द्धक सुगन्धि भी उसकी क्षुधा को जागृत न कर सकी। आज वह शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे। जो अब तक केवल हृदय में ही सुनायी देते थे– तुम्हारे कारण सारा गाँव मटियामेट हो गया, तुमने सारे गाँव को चौपट कर दिया। हाँ, यह कलंक मेरे माथे पर सदा के लिए लग गया, अब यह दाग कभी न छूटेगा। जो अभी बालक हैं वे मुझे गालियाँ दे रहे होंगे। उनके बच्चे मुझे गाँव का द्रोही समझेंगे। जब मरदों के यह विचार हैं, जो सब बातें जानते हैं, जिन्हें भली-भाँति मालूम है कि मैंने गाँव को बचाने के लिए अपनी ओर से कोई बात उठा नहीं रखी और जो अन्धेर हो रहा है वह समय का फेर है, तो भला स्त्रियाँ क्या कहती होंगी, जो बेसमझ होती हैं। बेचारी बिलासी गाँव में किसी को मुँह न दिखा सकती होगी। उसका घर से निकलना मुश्किल हो गया होगा और क्यों न कहें? उनके सिर बीत रही है तो कहेंगे क्यों न? अभी तो अगहनी घर में खाने को हो जायगी, लेकिन खेत तो बोये न गये होंगे। चैत में जब एक दाना भी न उपजेगा, बाल-बच्चे दाने को रोयेंगे तब उनकी क्या दशा होगी। मालूम होता है इस कम्बल में खटमल हो गये हैं, नोचे डालते हैं, और यह रोना साल-दो साल का नहीं है, कहीं सब काले पानी भेज दिये गये तो जन्म भर का रोना है। कादिर मियाँ का लड़का तो घर सँभाल लेगा, लेकिन और सब तो मिट्टी में मिल जायेंगे और यह सब मेरी करनी का फल है।
सोचते-सोचते मनोहर को झपकी आ गयी। उसने स्वप्न देखा कि एक चौड़े मैदान में हजारों आदमी जमा हैं। फाँसी खड़ी है और मुझे फाँसी पर चढ़ाया जा रहा है। हजारों आँखें मेरी ओर घृणा की दृष्टि से ताक रही हैं। चारों तरफ से यही ध्वनि आ रही है, इसी ने सारे गाँव को चौपट किया। फिर उसे ऐसी भावना हुई कि मर गया हूँ और कितने ही भूत-पिशाच मुझे चारों ओर से घेरे हुए हैं और कह रहे हैं कि इसी ने हमें दाने-दाने को तरसा कर मार डाला, यही पापी है, इसे पकड़ कर आग में झोंक दो। मनोहर के मुख से सहसा एक चीख निकल आयी। आँखें खुल गयीं। कमरा खूब अँधेरा था, लेकिन जागने पर भी वह पैशाचिक भयंकर मूर्तियाँ उसके चारों तरफ मँडराती हुई जान पड़ती थीं। मनोहर की छाती बड़े वेग से धड़क रही थी जी चाहता था, बाहर निकल भागूँ, किन्तु द्वार बन्द थे।
अकस्मात मनोहर के मन में यह विचार अंकुरित हुआ– क्या मैं यही सब कौतुक देखने और सुनने के लिए जियूँ? सारा गाँव, सारा देश मुझसे घृणा कर रहा है। बलराज भी मन में मुझे गालियाँ दे रहा होगा। उसने मुझे कितना समझाया, लेकिन मैंने एक न मानी। लोग कहते होंगे सारे गाँव को बँधवाकर अब यह मुस्टंडा बना हुआ है। इसे तनिक भी लज्जा नहीं, सिर पटक कर मर क्यों नहीं जाता! बलराज पर भी चारों ओर से बौछारें पड़ती होंगी, सुन-सुनकर कलेजा फटता होगा। अरे! भगवान, यह कैसा उजाला है? नहीं, उजाला नहीं है। किसी पिशाच की लाल-लाल आँखें हैं, मेरी ही तरफ लपकी आ रही हैं! या नारायण! क्या करूँ? मनोहर की पिंडलियां काँपने लगीं। यह लाल आँखें प्रतिक्षण उसके समीप आती-जाती थीं। वह न तो उधर देख ही सकता था और न उधर से आँख ही हटा सकता था, मानो किसी आसुरिक शक्ति ने उसके नेत्रों को बाँध दिया हो। एक क्षण के बाद मनोहर को एक ही जगह कई आँखें दिखायी देने लगीं, नहीं, प्रज्विलत, अग्निमय, रक्तयुक्त नेत्रों का एक समूह है! धड़ नहीं, सिर नहीं, कोई अंग नहीं, केवल विदग्ध आँखें ही हैं, जो मेरी तरफ टूटे हुए तारों की भाँति सर्राटा भरती चली आती हैं। एक पल और हुआ, यह नेत्र- समूह शरीर-युक्त होने लगा और गौस खाँ के आहत स्वरूप में बदल गया। यकायक बाहर धड़ाक की आवाज हुई। मनोहर बदहवास हो कर पीछे की दीवार की ओर भागा, लेकिन एक ही पग में दीवार से टकरा कर गिर पड़ा, सिर में चोट आयी। फिर उसे जान पड़ा कोई द्वार का ताला खोल रहा है। तब किसी ने पुकारा, ‘मनोहर! मनोहर! मनोहर ने आवाज पहचानी। जेल का दारोगा था। उसकी जान में जान आयी। कड़क कर बोला– हाँ साहब, जागता हूँ। पैशाचिक जगत से निकलकर वह फिर चैतन्य संसार में आया। उसे अब नेत्र समूह का रहस्य खुला। दारोगा की लालटेन की ज्योति थी जो किवाड़ की दरारों से कोठरी में आ रही थी। इसी साधारण-सी बात ने उसे इतना सशंक कर दिया था। दारोगा आज गश्त करने निकला था।
दारोगा के चले जाने के बाद मनोहर कुछ सावधान हो गया। शंकोत्पादक कल्पनाएँ शान्त हुईं, लेकिन अपने तिरस्कार और अपमान की चिन्ताओं ने फिर आ घेरा। सोचने लगा, एक वह हैं जो उजड़े हुए गाँवों को आबाद करते हैं और जिनका यश संसार गाता है। एक मैं हूँ, जिसने गाँव को उजाड़ दिया। अब कोई भोर के समय मेरा नाम न लेगा। ऐसा जान पड़ता है कि सभी डामिल जायँगे, एक भी न बचेगा। अभी न जाने कितने दिन यह मामला चलेगा। महीने भर लगे, दो महीने लग जायें। इतने दिनों तक मैं सब की आँखों में काँटे की तरह खटकता रहूँगा, सब मुझे कोसेंगे, गालियाँ दिया करेंगे। आज दुखरन ने कह ही सुनाया, कल कोई ताना देगा। कादिर खाँ को भी यह कैद अखरती ही होगी। और तो और, कहीं बलराज भी न खुल पड़े। हा! मुझे उसकी जवानी पर भी तरस न आया, मेरा लाल मेरे ही हाथों...मैं अपने जवान बेटे को अपने ही हाथों....हा भगवान! अब यह दुःख नहीं सहा जाता। फाँसी अभी न जाने कब होगी? कौन जाने कहीं सब के साथ मेरा भी डामिल हो जाय, तब तो मरते दम तक इन लोगों के जले-कटे वचन सुनने पड़ेंगे! बलराज, तुझे कैसे बचाऊँ? कौन जाने हाकिम यही फैसला करे कि यह जवान है, इसी ने कुल्हाड़ा मारा होगा। हा भगवान! तब क्या होगा? क्या अपनी ही आँखों से यह देखूँगा? नहीं, ऐसे जीने से मरना ही अच्छा है। नकटा जिया बुरे हवाल! बस, एक ही उपाय है– हाँ!
 

63
रचनाएँ
प्रेमाश्रम
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यू तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। इस उपन्यास में प्रेमचंद व्यापक स्तर पर किसान के उत्पीड़न का चित्र अंकित करते हैं। अनगिनत शोषण और ज्ञानशंकर आततायी किसान को चूसकर सूखा देने के लिए जुट गए हैं। ज्ञानशंकर मानो अन्याय का मूर्तिमान रूप है, किन्तु प्रेमशंकर अपनी गहरी मानवीयता और सदगुणों के कारण असत्य और अधर्म पर पूरी तरह विजयी होते हैं। 'प्रेमाश्रम' भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है। गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन की इस कथा पर विशिष्ट छाप है। इस उपन्यास में प्रेमचंद व्यापक स्तर पर किसान के उत्पीड़न का चित्र अंकित करते हैं।
1

प्रेमाश्रम 1

10 फरवरी 2022
2
0
0

सन्ध्या हो गई है। दिन भर के थके-माँदे बैल खेत से आ गये हैं। घरों से धुएँ के काले बादल उठने लगे। लखनपुर में आज परगने के हाकिम की परताल थी। गाँव के नेतागण दिनभर उनके घोड़े के पीछे-पीछे दौड़ते रहे थे। इस

2

2.

10 फरवरी 2022
1
0
0

लखनपुर के जमींदारों का मकान काशी में औरंगाबाद के निकट था। मकान के दो खण्ड आमने-सामने बने हुए थे। एक जनाना मकान था, दूसरी मरदानी बैठक। दोनों खण्डों के बीच की जमीन बेल-बूटे से सजी हुई थी, दोनों ओर ऊँची

3

3.

10 फरवरी 2022
1
0
0

मनोहर अक्खड़पन की बातें तो कर बैठा; किन्तु जब क्रोध शान्त हुआ तो मालूम हुआ कि मुझसे बड़ी भूल हुई। गाँव वाले सब-के-सब मेरे दुश्मन हैं। वह इस समय चौपाल में बैठे मेरी निन्दा कर रहे होंगे। कारिंदा न जाने

4

4.

10 फरवरी 2022
1
0
0

तीसरा पहर था। ज्ञानशंकर दीवानखाने में बैठे हुए एक किताब पढ़ रहे थे कि कहार ने आकर कहा, बाबू साहब पूछते हैं, कै बजे हैं? ज्ञानशंकर ने चिढ़कर कहा, जा कह दे, आपको नीचे बुलाते हैं? क्‍या सारे दिन सोते रहे

5

5.

10 फरवरी 2022
1
0
0

एक महीना बीत गया, गौस खाँ ने असामियों की सूची न तैयार की और न ज्ञानशंकर ने ही फिर ताकीद की । गौस खाँ के स्वहित और स्वामिहित में विरोध हो रहा था और ज्ञानशंकर सोच रहे थे कि जब इजाफे से सारे परिवार का ला

6

प्रेमाश्रम (भाग-2)

10 फरवरी 2022
1
0
0

7. जब तक इलाके का प्रबन्धन लाला प्रभाशंकर के हाथों में था, वह गौस खाँ को अत्याचार से रोकते रहते थे। अब ज्ञानशंकर मालिक और मुख्तार थे। उनकी स्वार्थप्रियता ने खाँ साहब को अपनी अभिलाषाएँ पूर्ण करने का अ

7

8.

10 फरवरी 2022
1
0
0

जिस भाँति सूर्यास्त के पीछे विशेष प्रकार के जीवधारी; जो न पशु हैं न पक्षी, जीविका की खोज में निकल पड़ते हैं, अपनी लंबी श्रेणियों से आकाश मंडल को आच्छादित कर लेते हैं, उसी भाँति कार्तिक का आरम्भ होते ह

8

9.

10 फरवरी 2022
1
0
0

अपनी पारिवारिक सदिच्छा का ऐसा उत्तम प्रमाण देने के बाद ज्ञानशंकर को बँटवारे के विषय में अब कोई असुविधा न रही, लाला प्रभाशंकर ने उन्हीं की इच्छानुसार करने का निश्चय कर लिया। दीवानखाना उनके लिए खाली कर

9

10.

10 फरवरी 2022
1
0
0

 राय कमलानन्द बहादूर लखनऊ के एक बड़े रईस और तालुकेदार थे। वार्षिक आय एक लाख के लगभग थी। अमीनाबाद में उनका विशाल भवन था। शहर में उनकी और भी कई कोठियाँ थीं, पर वह अधिकांश नैनीताल या मसूरी में रहा करते थ

10

11.

10 फरवरी 2022
1
0
0

आँधी का पहला वेग जब शान्त हो जाता है, तब वायु के प्रचण्ड झोंके, बिजली की चमक और कड़क बन्द हो जाती है और मूसलाधार वर्षा होने लगती है। गायत्री के चित्त की शान्ति भी द्रवीभूत हो गई थी। हृदय में रुधिर की

11

12.

10 फरवरी 2022
1
0
0

गायत्री के जाने के बाद ज्ञानशंकर को भी वहाँ रहना दूभर हो गया। सौभाग्य उन्हें हवा के घोड़े पर बैठाये ऋद्धि और सिद्धि के स्वर्ग में लिए जाता था, किन्तु एक ही ठोकर में वह चमकते हुए नक्षत्र अदृश्य हो गये;

12

13.

10 फरवरी 2022
0
0
0

यद्यपि गाँव वालों ने गौस खाँ पर जरा भी आँच न आने दी थी, लेकिन ज्वालासिंह का उनके बर्ताव के विषय में पूछ-ताछ करना उनके शान्ति-हरण के लिए काफी था। चपरासी, नाजिर मुंशी सभी चकित हो रहे थे कि इस अक्खड़ लौं

13

14.

10 फरवरी 2022
0
0
0

राय साहब को नैनीताल आये हुए एक महीना हो गया। ‘‘एक सुरम्य झील के किनारे हरे-भरे वृक्षों के कुन्ज में उनका बँगला स्थित है, जिसका एक हजार रुपया मासिक किराया देना पड़ता है। कई घोड़े हैं, कई मोटर गाड़ियाँ,

14

15.

10 फरवरी 2022
0
0
0

प्रातः काल था। ज्ञानशंकर स्टेशन पर गाड़ी का इन्तजार कर रहे थे। अभी गाड़ी के आने में आध घण्टे की देर थी। एक अँग्रेजी पत्र लेकर पढ़ना चाहा पर उसमें जी न लगा। दवाओं के विज्ञापन अधिक मनोरंजक थे। दस मिनट म

15

प्रेमाश्रम (भाग-3)

10 फरवरी 2022
0
0
0

16. प्रेमशंकर यहाँ दो सप्ताह ऐसे रहे, जैसे कोई जल्द छूटने वाला कैदी। जरा भी जी न लगता था। श्रद्धा की धार्मिकता से उन्हें जो आघात पहुँचा था उसकी पीड़ा एक क्षण के लिए भी शान्त न होती थी। बार-बार इरादा

16

17.

10 फरवरी 2022
0
0
0

गायत्री उन महिलाओं में थी जिनके चरित्र में रमणीयता और लालित्य के साथ पुरुषों का साहस और धैर्य भी मिला होता है। यदि वह कंघी और आईने पर जान देती थी तो कच्ची सड़कों के गर्द और धूल से भी न भागती थी। प्यान

17

18.

10 फरवरी 2022
0
0
0

ज्ञानशंकर को गायत्री का पत्र मिला तो फूले न समाये। हृदय में भाँति-भाँति की मनोहर सुखद कल्पनाएँ तरंगे मारने लगीं। सौभाग्य देवी जीवन-संकल्प की भेंट लिये उनका स्वागत करने को तैयार खड़ी थी। उनका मधुर स्वप

18

19.

10 फरवरी 2022
0
0
0

ज्ञानशंकर लगभग दो बरस से लखनपुर पर इजाफा लगान करने का इरादा कर रहे थे, किन्तु हमेशा उनके सामने एक-न-एक बाधा आ खड़ी होती थी। कुछ दिन तो अपने चचा से अलग होने में लगे। जब उधर से बेफिक्र हुए तो लखनऊ जाना

19

20.

10 फरवरी 2022
0
0
0

प्रभात का समय था। चैत का सुखद पवन प्रवाहित हो रहा था। बाबू ज्वालासिंह बरामदे में आरामकुर्सी पर लेटे हुए घोड़े का इन्तजार कर रहे थे। उन्हें आज मौका देखने के लिए लखनपुर जाना था, किन्तु मार्ग में एक बड़ी

20

21.

10 फरवरी 2022
0
0
0

एक पखवारा बीत गया। सन्ध्या समय था। शहर में बर्फ की दूकानों पर जमघट होने लगा था। हुक्के और सिगरेट से लोगों को अरुचि होती जाती थी। ज्वालासिंह लखनपुर से मौके की जाँच करके लौटे थे और कुर्सी पर बैठे ठंडा श

21

22.

10 फरवरी 2022
0
0
0

ज्ञानशंकर को अपील के सफल होने का पूरा विश्वास था। उन्हें मालूम था कि किसानों में धनाभाव के कारण अब बिल्कुल दम नहीं है। लेकिन जब उन्होंने देखा, काश्तकारों की ओर से भी मुकदमें की पैरवी उत्तम रीति से की

22

23.

10 फरवरी 2022
0
0
0

अपील खारिज होने के बाद ज्ञानशंकर ने गोरखपुर की तैयारी की। सोचा, इस तरह तो लखनपुर से आजीवन गला न छूटेगा, एक-न-एक उपद्रव मचा ही रहेगा। कहीं गोरखपुर में रंग जम गया तो दो-तीन बरसों में ऐसे कई लखनपुर हाथ आ

23

24.

10 फरवरी 2022
0
0
0

आय में वृद्धि और व्यय में कमी, यह ज्ञानशंकर के सुप्रबन्ध का फल था। यद्यपि गायत्री भी सदैव किफायत कर निगाह रखती थी, पर उनकी किफायत अशर्फियों की लूट और कोयलों पर मोहर को चरितार्थ करती थी। ज्ञानशंकर ने स

24

25

10 फरवरी 2022
0
0
0

जिस समय ज्ञानशंकर की अपील खारिज हुई, लखनपुर के लोगों पर विपत्ति की घटा छायी हुई थी। कितने ही घर प्लेग से उजड़ गये। कई घरों में आग लग गयी। कई चोरियाँ हुईं। उन पर दैविक घटना अलग हुई, कभी आँधी आती कभी पा

25

पहला अंक

10 फरवरी 2022
0
0
0

राजा– हाय! हाय! बैद्यों ने जबाव दिया, हकीमों ने जवाब दिया, डाकदरों ने जवाब दिया, किसी ने रोग को न पहचाना। सब-के-सब लुटेरे थे। अब जिन्दगानी की कोई आशा नहीं। यह सारा राज-पाट छूटता है। मेरे पीछे परजा पर

26

दूसरा अंक

10 फरवरी 2022
0
0
0

(राजा एक साधारण नागिरक के रूप में आप-ही-आप) समय कम है, ऐसे तीन सज्जनों के पास चलना चाहिए जो मेरे भक्त थे। पहले सेठ के पास चलूँ। वह परोपकार के प्रत्येक काम में मेरी सहायता करता था। मैंने उसकी कितनी बा

27

प्रेमाश्रम (भाग-4)

10 फरवरी 2022
0
0
0

26. प्रभात का समय था और कुआर का महीना। वर्षा समाप्त हो चुकी थी। देहातों में जिधर निकल जाइए, सड़े हुए सन की सुगन्ध उड़ती थी। कभी ज्येष्ठ को लज्जित करने वाली धूप होती थी, कभी सावन को सरमाने वाले बादल घ

28

27.

10 फरवरी 2022
0
0
0

प्रेमशंकर की कृषिशाला अब नगर के रमणीय स्थानों की गणना में थी। यहाँ ऐसी सफाई और सजावट थी। कि प्रातः रसिकगण सैर करने आया करते। यद्यपि प्रेमशंकर केवल उसके प्रबन्धकर्ता थे, पर वस्तुतः असामियों की भक्ति और

29

28.

10 फरवरी 2022
0
0
0

श्रद्घा की बातों से पहले तो ज्ञानशंकर को शंका हुई, लेकिन विचार करने पर यह शंका निवृत्त हो गयी, क्योंकि इस मामले में प्रेमशंकर का अभियुक्त हो जाना अवश्यम्भावी था। ऐसी अवस्था में श्रद्धा के निर्बल क्रोध

30

29.

10 फरवरी 2022
0
0
0

इस मुकदमें ने सारे शहर मे हलचल मचा दी। जहाँ देखिए, यह चर्चा थी सभी लोग प्रेमशंकर के आत्म-बलिदान की प्रंशसा सौ-सौ मुँह से कर रहे थे। यद्यपि प्रेमशंकर ने स्पष्ट कह दिया था कि मेरे लिए किसी वकील की जरूर

31

30.

10 फरवरी 2022
0
0
0

रात के १० बजे थे। ज्वालासिंह तो भोजन करके प्रभाशंकर के दीवानखाने में ही लेटे, लेकिन प्रेमशंकर को मच्छरों ने इतना तंग किया कि नींद न आयी। कुछ देर तक तो वह पंखा झलते रहे, अन्त को जब भीतर न रहा गया तो व्

32

31.

10 फरवरी 2022
0
0
0

डाक्टर इर्फान अली की बातों से प्रभाशंकर को बड़ी तसकीन हुई। मेहनताने के सम्बन्ध में उनसे कुछ रिआयत चाहते थे, लेकिन संकोचवश कुछ न कह सकते थे। इतने में हमारे पूर्व-परिचित सैयद ईजाद हुसैन ने कमरे में प्रव

33

33.

10 फरवरी 2022
0
0
0

जब मुकदमा सेशन सुपुर्द हो गया और ज्ञानशंकर को विश्वास हो गया कि अब अभियुक्तों का बचना कठिन है तब उन्होंने गौस खाँ की जगह पर फैजुल्लाह को नियुक्त किया और खुद गोरखपुर चले आए। यहाँ से गायत्री की कई चिट्ठ

34

34.

11 फरवरी 2022
0
0
0

सेशन जज के इजलास में एक महीने से मुकदमा चल रहा है। अभियुक्त ने फिर सफाई दी। आज मनोहर का बयान था। इजलास में एक मेला सा लगा हुआ था। मनोहर ने बड़ी निर्भीक दृढ़ता के साथ सारी घटना आदि से अन्त तक बयान की औ

35

35.

11 फरवरी 2022
0
0
0

फैजुल्लाह खाँ का गौस खाँ के पद पर नियुक्त होना गाँव के दुखियारों के घाव पर नमक छिड़कना था। पहले ही दिन से खींच-तान होने लगी और फैजू ने विरोधाग्नि को शान्त करने की जरूरत न समझी। अब वह मुसल्लम गाँव के स

36

36.

11 फरवरी 2022
0
0
0

प्रातःकाल ज्योंही मनोहर की आत्महत्या का समाचार विदित हुआ, जेल में हाहाकार मच गया। जेल के दारोगा, अमले, सिपाही, पहरेदार-सब के हाथों के तोते उड़ गये। जरा देर में पुलिस को खबर मिली, तुरन्त छोटे-बड़े अधिक

37

37.

11 फरवरी 2022
0
0
0

डा० इर्फान अली बैठे सोच रहे थे कि मनोहर की आत्महत्या का शेष अभियुक्तों पर क्या असर पड़ेगा? कानूनी ग्रन्थों का ढेर सामने रखा हुआ था। बीच में विचार करने लगते थे; मैंने यह मुकदमा नाहक लिया। रोज १०० रुपये

38

38.

11 फरवरी 2022
0
0
0

सैयद ईजाद हुसेन का घर दारानगर की एक गली में था। बरामदे में दस-बारह वस्त्रविहीन बालक एक फटे हुए बोरिये पर बैठे करीमा और खालिकबारी की रट लगया करते थे। कभी-कभी जब वे उमंग में आ कर उच्च स्वर से अपने पाठ य

39

39.

11 फरवरी 2022
0
0
0

महाशय ज्ञानशंकर का धर्मानुराग इतना बढ़ा कि सांसारिक बातों से उन्हें अरुचि सी होने लगी, दुनिया से जी उचाट हो गया। वह अब भी रियासत का प्रबन्ध उतने ही परिश्रम और उत्साह से करते थे, लेकिन अब सख्ती की जगह

40

40.

11 फरवरी 2022
0
0
0

जलसा बड़ी सुन्दरता से समाप्त हुआ रानी गायत्री के व्याख्यान पर समस्त देश में वाह-वाह मच गयी। उसमें सनातन-धर्म संस्था का ऐतिहासिक दिग्दर्शन कराने के बाद उसकी उन्नति और पतन, उसके उद्धार और सुधार उसकी विर

41

प्रेमाश्रम (भाग-5)

11 फरवरी 2022
0
0
0

41. राय कमलानन्द को देखे हुए हमें लगभग सात वर्ष हो गये, पर इस कालक्षेप का उनपर कोई चिन्ह नहीं दिखाई देता। बाल-पौरुष, रंग-ढंग सब कुछ वही है। यथापूर्व उनका समय सैर और शिकार पोलो और टेनिस, राग और रंग मे

42

42.

11 फरवरी 2022
0
0
0

दो दिन हो गये और ज्ञानशंकर ने राय साहब से मुलाकात न की। रायसाहब उन निर्दय पुरुषों में न थे जो घाव लगाकर उस पर नमक छिड़कते हैं। वह जब किसी पर नाराज होते तो यह मानी हुई बात थी कि उसका नक्षत्र बलवान है,

43

43.

11 फरवरी 2022
0
0
0

सन्ध्या का समय था। बनारस के सेशन जज के इजलास में हजारों आदमी जमा थे। लखनपुर के मामले से जनता को अब एक विशेष अनुराग हो गया था। मनोहर की आत्महत्या ने उसकी चर्चा सारे शहर में फैला दी थी। प्रत्येक पेशी के

44

44.

11 फरवरी 2022
0
0
0

डाक्टर इर्फान अली उस घटना के बाद हवा खाने न जा सके, सीधे घर की ओर चले। रास्ते भर उन्हें संशय हो रहा था कि कहीं उन उपद्रवियों से फिर मुठभेड़ न हो जाये नहीं तो अबकी जान के लाले पड़े जायेंगे। आज बड़ी खैर

45

45.

11 फरवरी 2022
0
0
0

कई महीने बीत चुके, लेकिन प्रेमशंकर अपील दायर करने का निश्चय न कर सके। जिस काम में उन्हें किसी दूसरे से मदद मिलने की आशा न होती थी, उसे वह बड़ी तत्परता के साथ करते थे, लेकिन जब कोई उन्हें सहारा देने के

46

46.

11 फरवरी 2022
0
0
0

ज्ञानशंकर लखनऊ से सीधे बनारस पहुँचे, किन्तु मन उदार और खिन्न रहते। न हवा खाने जाते, न किसी से मिलते-जुलते। उनकी दशा इस समय उस पक्षी की-सी थी जिसके दोनों पंख कट गये हों, या उस स्त्री की-सी जो किसी दैवी

47

47.

11 फरवरी 2022
0
0
0

ज्ञानशंकर को बनारस आये दो सप्ताह से अधिक बीत चुके थे। संगीत-परिषद् समाप्त हो चुकी थी और अभी सामयिक पत्रों में उस पर वाद-विवाद हो रहा था। यद्यपि अस्वस्थ होने के कारण राय साहब उसमें उत्साह के साथ भाग न

48

48.

11 फरवरी 2022
0
0
0

गायत्री बनारस पहुँच कर ऐसी प्रसन्न हुई जैसे कोई बालू पर तड़पती हुई मछली पानी में जा पहुँचे। ज्ञानशंकर पर राय साहब की धमकियों का ऐसा भय छाया हुआ था कि गायत्री के आने पर वह और भी सशंक हो गये। लेकिन गायत

49

49.

11 फरवरी 2022
0
0
0

रात के आठ बजे थे। ज्ञानशंकर के दीवानखाने में शहर के कई प्रतिष्ठित सज्जन जमा थे। बीच में एक लोहे का हवनकुण्ड रखा हुआ था, उसमें हवन हो रहा था। हवनकुण्ड के एक तरफ गायत्री बैठी थी, दूसरी तरफ ज्ञानशंकर और

50

प्रेमाश्रम (भाग-6)

11 फरवरी 2022
0
0
0

50. श्रद्धा और गायत्री में दिनों-दिन मेल-जोल बढ़ने लगा। गायत्री को अब ज्ञात हुआ कि श्रद्धा में कितना त्याग, विनय, दया और सतीत्व है। मेल-जोल से उनमें आत्मीयता का विकास हुआ, एक-दूसरी से अपने हृदय की ब

51

51.

11 फरवरी 2022
0
0
0

बाबू ज्ञानशंकर गोरखपुर आये, लेकिन इस तरह जैसे लड़की ससुराल आती है। वह प्रायः शोक और चिन्ता में पड़े रहते। उन्हें गायत्री से सच्चा प्रेम न सही, लेकिन वह प्रेम अवश्य था जो शराबियों को शराब से होता है। उ

52

52.

11 फरवरी 2022
0
0
0

बाबू ज्वालासिंह को बनारस से आये आज दूसरा दिन था। कल तो वह थकावट के मारे दिन भर पड़े रहे, पर प्रातःकाल ही उन्होंने लखनपुरवालों की अपील का प्रश्न छेड़ दिया। प्रेमशंकर ने कहा– मैं तो आप ही की बाट जोह रहा

53

53.

11 फरवरी 2022
0
0
0

ज्यों ही दशहरे की छुट्टियों के बाद हाईकोर्ट खुला, अपील दायर हो गयी और समाचार पत्रों के कालम उसकी कार्यवाही से भरे जाने लगे। समस्या बड़ी जटिल थी। दंड प्राप्तों में उन साक्षियों को फिर पेश किये जाने की

54

54.

11 फरवरी 2022
0
0
0

गायत्री की दशा इस समय उस पथिक की सी थी जो साधु भेषधारी डाकुओं के कौशल जाल में पड़ कर लुट गया हो। वह उस पथिक की भाँति पछताती थी कि मैं कुसमय चली क्यों? मैंने चलती सड़क क्यों छोड़ दी? मैंने भेष बदले हुए

55

55.

11 फरवरी 2022
0
0
0

‘‘लाला प्रभाशंकर ने भविष्य-चिन्ता का पाठ न पढ़ा था। ‘कल’ की चिन्ता उन्हें कभी न सताती थी। उनका समस्त जीवन विलास और कुल मर्यादा की रक्षा में व्यतीत हुआ था। खिलाना, खाना और नाम के लिए मर जाना– यही उनके

56

56.

11 फरवरी 2022
0
0
0

बाल्यावस्था के पश्चात् ऐसा समय आता है जब उद्दण्डता की धुन सिर पर सवार हो जाती है। इसमें युवाकाल की सुनिश्चित इच्छा नहीं होती, उसकी जगह एक विशाल आशावादिता है जो दुर्लभ को सरल और असाध्य को मुँह का कौर स

57

57.

11 फरवरी 2022
0
0
0

इस शोकाघात ने लाला प्रभाशंकर को संज्ञा-विहीन कर दिया। दो सप्ताह बीत चुके थे, पर अभी तक घर से बाहर न निकले थे। दिन-के-दिन चारपाई पर पड़े छत की ओर देखा करते, रातें करवटें बदलने में कट जातीं। उन्हें अपना

58

58.

11 फरवरी 2022
0
0
0

होली का दिन था। शहर में चारों तरफ अबीर और गुलाल उड़ रही थी, फाग और चौताल की धूम थी, लेकिन लाला प्रभाशंकर के घर पर मातम छाया हुआ था। श्रद्धा अपने कमरे में बैठी हुई गायत्री देवी के गहने और कपड़े सहेज रह

59

59.

11 फरवरी 2022
0
0
0

मानव-चरित्र न बिलकुल श्यामल होता है न बिलकुल श्वेत। उसमें दोनों ही रंगों का विचित्र सम्मिश्रण होता है। स्थिति अनुकूल हुई तो वह ऋषितुल्य हो जाता है, प्रतिकूल हुई तो नराधम। वह अपनी परिस्थितियों का खिलौन

60

60.

11 फरवरी 2022
0
0
0

गायत्री के आदेशानुसार ज्ञानशंकर २००० रुपये महीना मायाशंकर के खर्च के लिए देते जाते थे। प्रेमशंकर की इच्छा थी कि कई अध्यापक रखे जायें, सैर करने के लिए गाड़ियाँ रखी जायँ, कई नौकर सेवा-टहल के लिए लगाये ज

61

61.

11 फरवरी 2022
0
0
0

लाला प्रभाशंकर को रुपये मिले तो वह रोये। गाँव तो बच गया, पर उसे कौन बिलसेगा? दयाशंकर का चित्त फिर घर से उचाट हो चला था। साधु-सन्तों के सत्संग के प्रेमी हो गये थे। दिन-दिन वैराग्य में रह होते जाते थे।

62

62.

11 फरवरी 2022
0
0
0

महाशय ज्ञानशंकर का भवन आज किसी कवि-कल्पना की भाँति अलंकृत हो रहा है। आज वह दिन आ गया है जिसके इन्तजार में एक युग बीत गया। प्रभुत्व और ऐश्वर्य का मनोहर स्वप्न पूरा हो गया है। मायाशंकर के तिलकोत्सव का श

63

उपसंहार

11 फरवरी 2022
0
0
0

दो साल हो गये हैं। सन्ध्या का समय है। बाबू मायाशंकर घोड़े पर सवार लखनपुर में दाखिल हुए। उन्हें वहाँ रौनक और सफाई दिखायी दी। प्रायः सभी द्वारों पर सायबान थे। उनमें बड़े-बड़े तख्ते बिछे हुए थे। अधिकांश

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए