जीवन में जब न तो कोई मार्ग दिखाई दे और न ही कोई मार्गदर्शक - उस समय केवल अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ सुननी चाहिए | जब साथ छोड़ दें सारी उमंगें और फीका पड़ जाए सारा उत्साह - उस समय केवल अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ सुननी चाहिए | क्योंकि हमारी सबसे बड़ी मार्गदर्शक तो हमारी अपनी अन्तरात्मा ही है | उमंग जिसका कभी साथ नहीं छोडती और उत्साह जिसका कभी फीका नहीं पड़ता | उमंग और उत्साह में भरी हमारी अपनी अन्तरात्मा हमें नित नई राह दिखाती रहती है, आवश्यकता है केवल उसके इंगित को समझ कर उस मार्ग पर चलने की | सभी का आज का दिन उमंग और उत्साह से युक्त हो...