अहोई अष्टमी
“ध्रियते लोकोऽनेन, वा धारयतीति धर्मः |”
श्रावण मास से ही समूचे हिन्दू समाज में व्रतोत्सव और पर्वों का उल्लासमय तथा श्रद्धा भक्ति से परिपूर्ण वातावरण बन जाता है | एक ओर नभ में उमड़ घुमड़ चल रहे मेघराज के उत्सवों के साथ श्रावण मास समर्पित होता है भगवान शंकर को, तो कर्म और बुद्धि के सन्तुलन तथा साधना के द्वारा जीवन में सफलता की ओर अग्रसर रहने का सन्देश देता हुआ भाद्रपद मास भी श्री कृष्ण जन्म महोत्सव, पजूसन और क्षमावाणी पर्व, अनन्त चतुर्दशी तथा श्राद्ध पर्वों से सम्पन्न होता है | भारतीय दर्शनों के अनुसार आत्मा कभी नष्ट नहीं होता – वह अजर अमर होता है – और यही कारण है कि दिवंगतों के प्रति शोक न मनाकर उनके प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित किये जाते हैं और इस का उत्सव होता है श्राद्ध पक्ष | उसके सम्पन्न होते ही आश्विन मास में भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाते हैं | तत्पश्चात विजया दशमी और शरद पूर्णिमा के साथ आश्विन मास सम्पन्न होता है तो करक चतुर्थी और अब 28 अक्तूबर को अहोई अष्टमी के साथ ही पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली तथा छठ पूजा के उत्सव आरम्भ हो जाते हैं | उसके पश्चात कार्तिक पूर्णिमा को होता है गुरुपर्व – सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव जी का जन्म महोत्सव – जिसे प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है | इस प्रकार श्रावण मास से न केवल कार्तिक मास तक बल्कि सूर्य के उत्तरायण होने तक पर्वों, उत्सवों तथा व्रतोपवासों का क्रम निरन्तर चलता रहता है | और ये सभी पर्व और उत्सव धार्मिक तथा आध्यात्मिक भावनाओं से ओत प्रोत होते हैं | यही तो है भारतीय दर्शन की विशेषता | क्योंकि परम सत्य के ज्ञान की ओर सभी की प्रवृत्ति होती है और धर्म इसी परम सत्य के ज्ञान का एक साधन माना जाता है तथा धर्म का अन्तिम लक्ष्य होता है प्राणिमात्र का कल्याण | निश्चित रूप से प्रत्येक व्यक्ति को अपने अपने धर्म का पालन करना चाहिए – जैसा कहा भी गया है “स्वधर्मे निधनं श्रेयं परधर्मे भयावह” | किन्तु मनुष्य मात्र के धर्म के मार्ग पर चलने की इसी लालसा के कारण बहुत से अन्धविश्वास भी पूर्ण निष्ठा और आस्था के साथ सोशल मीडिया पर परोसे जा रहे हैं |
धर्म का चरम लक्ष्य होता है संसार को हर प्रकार के ताप से मुक्त कर उसे अनन्त सुख की अन्तिम सीमा तक पहुँचाकर सदा के लिये आनन्दमय बना देना | जिस धर्म का लक्ष्य इतना पावन है, इतना विशाल है – उस धर्म में किसी प्रकार के अन्धविश्वास
के लिए स्थान ही नहीं रह जाता है |
अभी कल तक करवाचौथ के विषय में चन्द्र दर्शन न होने की स्थिति में किस प्रकार जल दिया जा सकता है इस विषय में विद्वानों के विचार जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | एक अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण जानकारी प्राप्त हुई कि यदि बादलों के कारण, कुहासे के कारण या वर्षा आदि के कारण चन्द्रमा के दर्शन न हो सकें तो भगवान शिव की जटाओं में जो अर्धचन्द्र शोभायमान है उसके दर्शन करके जल दिया जा सकता है – अथवा किसी कागज़ पर चन्द्रमा की आकृति बनाकर उसके दर्शन करके जल दिया जा सकता है | इसी प्रकार से एक और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई कि करवाचौथ के दिन किस राशि वाली महिला को किस रंग की साड़ी पहननी चाहिए | इसी प्रकार के बहुत से अन्धविश्वास लगभग सभी पर्वों के विषय में प्रसारित होते रहते हैं | यहाँ एक बात हम आप सभी से जानना चाहते हैं – क्या सनातनी संस्कृति में भगवान अर्थात परमात्मा किसी प्रकार के दिखावे से प्रसन्न होता है ? जहाँ तक हम समझते हैं भगवान तो भावों का भूखा होता है | किसी भी स्थिति में किसी भी स्थान पर यदि भावपूर्ण मन से सत्य निष्ठा और आस्था के साथ उसे पुकारा जाएगा तो निश्चित रूप से वह अपने भक्त के पास दौड़ा चला आएगा – और इस प्रकार की अनेकों कथाएँ हमारे पुराणों में उपलब्ध भी होती हैं | भोले बाबा
की जटाओं के चन्द्र को देखकर अथवा कागज़ पर बने चन्द्रमा के दर्शन करके अर्घ्य समर्पित करने में कोई बुराई नहीं है – लेकिन क्या हम पूर्ण श्रद्धा और आस्था युक्त मन से चन्द्रमा का स्मरण करके अर्घ्य नहीं समर्पित कर सकते ? क्या राशिविशेष की महिला किसी विशेष रंग की साड़ी धारण करेगी तभी उसका सुख सौभाग्य अखण्ड बनेगा ? एक बार विचार अवश्य करें इन बातों पर |
लेख हम लिख रहे थे अहोई अष्टमी के विषय में – प्रसंगवश बढ़ते धार्मिक अन्धविश्वासों की बात आ गई – क्योंकि इस प्रकार के अन्धविश्वास को प्रोत्साहित करना न तो सनातन संस्कृति में ही मान्य है और न ही भारतीय वैदिक दर्शन के अनुरूप है – जिसका एकमात्र लक्ष्य है कि समस्त प्रकार के दिखावे, ढोंग, आडम्बरों का त्याग करके अपनी बुद्धि से लोक कल्याणार्थ धर्म का पालन करते हुए परमात्मतत्व की उपलब्धि - तभी हमें सच्चा आनन्द और शान्ति प्राप्त हो सकती है | धर्म की उस भावना को स्मरण करके ही हम प्राणिमात्र का तथा स्वयं का भी कल्याण कर सकते हैं |
अस्तु ! करवाचौथ के चार दिन बाद दीपावली से आठ दिन पूर्व कार्तिक कृष्ण अष्टमी अहोई अष्टमी के रूप में मनाई जाती है | यह व्रत भी करवाचौथ की ही भाँति उत्तरी और पश्चिमी अंचलों का पर्व है और प्रायः ऐसी मान्यता है कि जिस दिन दीपावली हो उसी दिन अहोई अष्टमी का व्रत किया जाना चाहिए | इस वर्ष दीपावली गुरूवार चार नवम्बर की है इसलिए 28 अक्तूबर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा | अष्टमी तिथि 28 अक्तूबर को दिन में 12:49 के लगभग बालव करण और साध्य योग में उदय हो रही है जो 29 अक्तूबर को दिन में दो बजकर नौ मिनट तक रहेगी | इस प्रकार 28 अक्तूबर को पूर्णरूपेण शुद्ध तिथि में अहोई अष्टमी का व्रत और पारायण किया जाएगा | अधिकाँश महिलाएँ तारा देखकर व्रत का पारायण करती हैं | 28 अक्तूबर को सायं छह बजकर तीन मिनट के लगभग तारकदर्शन होने की सम्भावना है | जो लोग चन्द्रमा को जल देकर व्रत का पारायण करते हैं उनके लिए रात्रि 11:29 के लगभग चन्द्रमा के दर्शन होने की सम्भावना है | पूजन का शुभ मुहूर्त सायं 5:39 से 6:56 के मध्य है | साथ ही गुरूवार 28 अक्तूबर को प्रातः नौ बजकर बयालीस मिनट के लगभग चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र पर चला जाएगा और 29 अक्तूबर को 11:38 तक वहीं रहेगा – इस प्रकार इस वर्ष गुरु पुष्य नामक अमृतसिद्धि योग भी बन रहा है जो अत्यन्त शुभ माना जाता है |
इस दिन सभी माताएँ अपनी सन्तानों की दीर्घायु, सुख समृद्धि तथा मंगल कामना से सारा दिन उपवास रखकर सायंकाल अहोई माता की पूजा करके लोक परम्परा अथवा अपने अपने परिवार की परम्परा के अनुसार तारों अथवा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारायण करती हैं | उत्तर भारत में ही कई स्थानों पर नि:सन्तान माताएँ सन्तान प्राप्ति की कामना से भी इस
व्रत का पालन करती हैं | कुछ परिवारों में माता पिता दोनों ही सन्तान के सुख सौभाग्य की कामना से इस व्रत को करते हैं | इस व्रत में पूजा के समय अहोई अष्टमी व्रत से सम्बन्धित कथा सुनने की भी प्रथा है |
मूलतः सभी अष्टमी माँ दुर्गा को समर्पित होती हैं और अहोई माता भी शक्ति का ही एक रूप है जो समस्त कष्टों से परिवार की रक्षा करके सुख समृद्धि प्रदान करती हैं |
वैष्णव इस दिन बहुला अष्टमी मनाते हैं जो मुख्यतः राधा-कृष्ण को समर्पित है | माना जाता है कि वृन्दावन में स्थित राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड बहुला अष्टमी के दिन ही प्रकट हुए थे | अहोई अष्टमी की ही तरह इन कुण्डों के विषय में भी मान्यता
है कि नि:सन्तान लोग यदि आज के दिन अर्द्धरात्रि को (निशीथ काल में) इन कुण्डों में स्नान करते हैं तो उन्हें सन्तान की प्राप्ति होती है |
एक और बात, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के हर देश में जो भी धार्मिक कथाएँ कही सुनी या पढ़ी जाती हैं उन सबके पीछे कोई न कोई नैतिक शिक्षा अवश्य होती है | कथाओं के माध्यम से तथा धर्म की भावना से जो शिशाएँ जन साधारण को दी जाती हैं वह सहजगम्य होती हैं, इसीलिए सम्भवतः इस प्रकार की नैतिक कथाओं को पर्वों के साथ जोड़ा गया
होगा | अहोई अष्टमी की भी अलग अलग स्थानीय परम्पराओं – अलग अलग स्थानीय जीवन शैलियों तथा पारिवारिक प्रथाओं के आधार पर कई तरह की कहानियाँ प्रचार में हैं जिनको व्रत की पूजा के दौरान पढ़ा और सुना जाता है | यदि उन पर ध्यान दें तो पाएँगे कि उन सबमें तीन नैतिक शिक्षाएँ प्रमुख रूप से निहित हैं – एक ये कि कोई भी कार्य को भली भाँति सोच विचार कर करना चाहिए, बिना सोचे समझे किया गया कार्य अन्त में कष्ट का कारण बनता है | दूसरी ये कि जीव ह्त्या नहीं करनी चाहिए, यदि भूल से ऐसा हो भी जाए तो उसका पता चलने पर हृदय से उसके लिए पश्चात्ताप तथा प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए | तीसरी ये कि सभी जीवों में अपनी आत्मा मानते हुए सब पर स्नेह का भाव रखते हुए सबकी सेवा करनी चाहिए | हम सभी सोच विचार कर हर कार्य करते हुए, जीवमात्र के प्रति स्नेह का भाव रखते हुए तथा जीव ह्त्या से बचते हुए आगे बढ़ते रहें, साथ ही यदि किसी कारणवश तारे अथवा चन्द्रमा के दर्शन न भी हो पाएँ तो कोई बात नहीं – प्रकृति अपने रूप बदलती रहती है और हमें उसके इस परिवर्तन का स्वागत भी करना चाहिए | तारे अथवा चन्द्रमा के दर्शन न होने की स्थिति में अपने परिवार की प्रथा के अनुसार पूजा अर्चना आदि से निवृत्त होकर इनके उदय होने के समय के कुछ देर बाद इनका मन ही मन ध्यान करके अर्घ्य समर्पित कर सकते हैं | सभी माताओं तथा उनकी सन्तानों को अहोई अष्टमी और
बहुला अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...