17 अक्तूबर को करवाचौथ का व्रत था | करवाचौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ
दिन पूर्व यानी 21 अक्तूबर को कार्तिक कृष्ण अष्टमी अहोई अष्टमी के रूप में मनाई जाती है | यह व्रत भी करवाचौथ
की ही भाँति उत्तरी और पश्चिमी अंचलों का पर्व है और प्रायः ऐसी मान्यता है कि जिस दिन दीपावली हो उसी इन अहोई अष्टमी का
व्रत किया जाना चाहिए | इस वर्ष दीपावली रविवार 27 अक्तूबर की है इसलिए अहोई अष्टमी प्रथा के
अनुसार 20 तारीख को होनी चाहिए | लेकिन व्रत के पारायण के
समय अष्टमी तिथि का होना अनिवार्य है और 20 तारीख को पूरा
दिन ही सप्तमी तिथि है जो अगले दिन प्रातःकाल तक रहेगी | इसलिए 20 को अहोई अष्टमी का व्रत नहीं रखा जा सकता | 21 को
प्रातः 6:44 से 22 को सूर्योदय से
पूर्व 5:25 तक अष्टमी तिथि रहेगी | इसलिए अहोई अष्टमी का
व्रत इस वर्ष 21 अक्तूबर को रखा जाएगा और पारायण भी इसी दिन
सायंकाल को होगा |
इस
दिन सभी माताएँ अपनी सन्तानों की दीर्घायु, सुख समृद्धि तथा मंगल कामना से सारा दिन
उपवास रखकर सायंकाल अहोई माता की पूजा करके लोक परम्परा अथवा अपने अपने परिवार की परम्परा
के अनुसार तारों अथवा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारायण करती हैं | उत्तर
भारत में ही कई स्थानों पर नि:सन्तान माताएँ सन्तान प्राप्ति की कामना से भी इस
व्रत का पालन करती हैं | पूजा के समय अहोई अष्टमी व्रत से सम्बन्धित कथा सुनने की भी
प्रथा है | इस वर्ष सायं छह बजकर दस मिनट के लगभग तारों के दर्शन आरम्भ हो जाएँगे
| किन्तु फिर भी जो लोग चन्द्र दर्शन से इस व्रत का पारायण करना चाहते हैं उनके
लिए रात्रि 11:29
पर चन्द्रमा का उदय होगा |
मूलतः
सभी अष्टमी माँ दुर्गा को समर्पित होती हैं और अहोई माता भी शक्ति का ही एक रूप है
जो समस्त कष्टों से परिवार की रक्षा करके सुख समृद्धि प्रदान करती हैं |
वैष्णव
इस दिन बहुला अष्टमी मनाते हैं जो मुख्यतः
राधा-कृष्ण को समर्पित है | माना जाता है कि वृन्दावन में स्थित राधा कुण्ड और
श्याम कुण्ड बहुला अष्टमी के दिन ही प्रकट हुए थे | अहोई अष्टमी की ही तरह इन
कुण्डों के विषय में भी मान्यता है कि नि:सन्तान लोग यदि आज के दिन अर्द्धरात्रि
को (निशीथ काल में) इन कुण्डों में स्नान करते हैं तो उन्हें सन्तान की प्राप्ति
होती है |
एक
और बात, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के हर देश में जो भी धार्मिक कथाएँ
कही सुनी या पढ़ी जाती हैं उन सबके पीछे कोई न कोई नैतिक शिक्षा अवश्य होती है |
कथाओं के माध्यम से जो सीख लोगों को दी जाती है वह सहजगम्य होती है, इसीलिए
सम्भवतः इस प्रकार की नैतिक कथाओं को पर्वों के साथ जोड़ा गया होगा | अहोई अष्टमी
की भी अलग अलग स्थानीय परम्पराओं – अलग अलग स्थानीय जीवन शैलियों के आधार पर कई
तरह की कहानियाँ प्रचार में हैं जिनको व्रत की पूजा के दौरान पढ़ा और सुना जाता है |
यदि उन पर ध्यान दें तो पाएँगे कि उन सबमें दो नैतिक शिक्षाएँ प्रमुख रूप से निहित
हैं – एक ये कि कोई भी कार्य भली भाँति सोच विचार कर करना चाहिए, बिना सोचे समझे
किया गया कार्य अन्त में कष्ट का कारण बनता है | और दूसरी ये कि जीव ह्त्या नहीं
करनी चाहिए, यदि भूल से ऐसा हो भी जाए तो उसका पता चलने पर हृदय से उसके लिए
पश्चात्ताप तथा प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए |
हम सभी सोच विचार कर हर कार्य करते हुए तथा जीव ह्त्या से बचते हुए आगे
बढ़ते रहें, इसी भावना के साथ सभी माताओं तथा उनकी सन्तानों को अहोई अष्टमी और
बहुला अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/10/19/ahoi-ashtami-vrat/