आजकल ये बन्दर भी बड़े बत्तमीज हो गये हैं, बताओ हमारे ऊपर दो आलू फेंक कर मार दिए। पहले ये काम महिलाओं के होते थे। कोई व्यक्ति सज संवर कर सड़क पर जा रहा है। उसके ऊपर बिना देखे कूड़ा फेंक दिया। बाद में जेब से पैसे निकालो तो साथ में प्याज के छिलके निकलते थे। रुमाल निकालो तो केले का छिलका। बाजार में किसी महिला की सब्जी की पॉलीथिन फट जाती थी तो पूरा बाजार इकट्ठा हो जाता था। कोई आलू बीन कर भाभीजी को दे रहा है तो कोई बेंगन बीन कर। कई बार किसी घर से बड़े जोर की चीखने की आवाज सुनकर पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो जाता था। तब भाभीजी बताती थी कि उन्होंने कोई छिपकली या कॉकरोच देख लिया है। फिर शुरू होता था, कॉकरोच ढूंढो अभियान। जिसमें लगभग पूरे मोहल्ले का साथ मिलता था। कोई टार्च लेकर ढूंढ रहा है, कोई डण्डा लेकर। कोई पलंग के नीचे तो कोई कलेण्डर के पीछे। ये अभियान दस पन्द्रह मिनट से लेकर घण्टे भर तक चल जाया करता था। कॉकरोच मिले न मिले पर कई खोई हुई चीजें मिल जाती थीं। सोफे के नीचे से पच्चीस-पचास पैसे के सिक्के मिलते थे। पलंग के पीछे से पेन, कंघा आदि।
ऐसे ही अभियान में एक चोर मिल गया। जिसे लोगों ने पकड़ कर खूब पीटा। बाद में पता चला कि वो तो कोई शराबी था जो गेट खुला होने के कारण घर में घुस आया था और वहीं पर सो गया।
कई बार छत पर सूखते कपड़े बन्दर ले जाता था तो हल्ला मचता था - ले गया, ले गया, बन्दर कपड़े ले गया। फिर न जाने कहाँ से लोग सौ-दो सौ कपड़े दिखाने के लिए ले आते थे पर उनमें से कोई कपड़ा भाभीजी का नहीं होता था। कोई ठेला मोहल्ले में आता था तो उसे चारों तरफ से घेर लिया जाता था। फिर चीज खरीदने के नाम पर बातों का सिलसिला शुरू हो जाता था और ढाई किलो सामान खरीदने में बेचारे ठेले वाले के ढाई घंटे खराब कर दिए जाते थे। लेकिन इस सब में मोहल्ले के लोगों से ज्यादा ठेले वाले को मोहल्ले की जानकारी हो जाती थी।
आज एक हफ्ते बाद हमें पता चला कि जिसे हम बन्दर की कार गुजारी समझ रहे थे वो असल में भाभी जी का कारनामा था।