बालक चंट बुद्धि ने एक प्रश्न की व्याख्या इस प्रकार की जो आज के समय में बिल्कुल उपयुक्त बैठती है। यहाँ उसी की उत्तर पुस्तिका का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रश्न :- गुरु गोविन्द.......... दियो बताये।
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक से ली गयी हैं। जिसे हमारे विद्यालय प्रबंधक द्वारा जबरदस्ती कोर्स में लगाया गया है। यह पुस्तक जो सरकारी रेट पर 20-25 रुपये में मिल जाती है वही हमें 100 से 150 रुपये में लेनी पड़ती है। उक्त पुस्तक के प्रकाशक प्रबंधक महोदय के मुँह बोले मित्र हैं, जो उन्हें मोटा कमीशन पुस्तक विक्रय पर देते हैं।
व्याख्या :- प्रस्तुत पंक्तियों में रचियता का कहना है कि वैसे तो परीक्षा के समय सभी भगवान के मंदिर जाते हैं और प्रसाद बोलकर भी आते हैं। फिर भी अगर आपके सामने गुरु और भगवान दोनों खड़े हो तो पहले गुरू जी के पैर पकड़ने चाहिए क्योंकि ठेके पर नकल मास्टर जी ही कराते हैं। अगर हम गुरु के पैर नहीं पकड़ेगें अर्थात उनसे ट्यूशन आदि नहीं पढेगें तो वह हमारी टांग खींच देगें। क्योंकि इंटरनल में नम्बर गुरु जी ही दिलाते हैं। और जो उनसे ट्युशन नहीं पढ़ता उसके कम नम्बर आते हैं या फेल होने का भय भी रहता है। ऐसे गुरू घण्टालो के रहते निज गोविन्द यानी खुद भगवान भी आपकी बलिहारी यानी नैया पार नहीं लगा सकते।