गाँधी जी ने घोषणा की थी कि वह स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए विदेशी वस्तुओं की होली जलाएंगे। उन्होंने अपने सभी कार्यकर्ताओं को व्हाट्सएप कर दिया था। शहर में लोगों को जागरूक करने के लिए टीवी, अखबार आदि में अपील के विज्ञापन व समाचार भी छपवा दिए गए थे। निर्धारित समय पर शहर के सभी लोग बड़े उत्साह के साथ वहाँ इकट्ठा हुए, जो जलाने के लिए कुछ न कुछ विदेशी सामान अपने साथ लाए थे। कुछ तो ऐसे भी थे जो विदेशी की जगह भारतीय कंपनीयों का ही सामान उठा लाये थे, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था कौन सी चीज देशी है और कौन सी विदेशी। इन सब आंदोलनकारियों में ज्यादातर ने विदेशी कपड़े ही पहन रखे थे। कई के जूते, चश्मे व अन्य सामान भी विदेशी था। ज्यादातर लोग विदेशी कारों में विलायती कुत्तों के साथ बैठकर यहाँ आये थे। विदेशी सामान की होली जलते ही सबने सेल्फी लेना शुरू कर दिया और सोशल मीडिया पर अपडेट कर दिया, "यूज इंडियन प्रोडक्ट एंड प्राउड टू स्पीक हिन्दी।"
कई दशकों तक भारतीयों को समझाने के बाद भी जब लोग नहीं माने तो गाँधी जी ने भी अपने आप को न्यू इंडियन कल्चर के हिसाब से बदलने का फैसला कर लिया। अब गाँधी जी लिवाइस की जींस, आँखों पर रे वेन का चश्मा और विदेशी ब्रांडेड चीजे (घड़ी आदि) पहनने लगे थे। वो समझ गये थे कि आजादी के इतने साल बाद स्वदेशी से नहीं विदेशी से स्टेटस सिंबल बनता है और स्टेटस सिंबल देखकर ही लोग आपको घास डालते हैं। कुछ लोगों को उनके हे! राम कहने पर भी आपत्ति थी कि वो वर्ग विशेष का तुस्टीकरण कर रहे हैं या फिर हे! राम कहना साम्प्रदायिक है। इसलिए गाँधी जी ने इन सब विवादों से बचने व यूथ को टारगेट करने के लिए 'यो' बोलना शुरू कर दिया। अब गाँधी जी बिल्कुल टिपिकल इंडियन (जो आजकल का लेटेस्ट कल्चर था) बन चुके थे पर गाँधी जी की आत्मा अब भी उनसे बार-बार यही पूछती थी कि क्यों उन्होंने इतने सालों तक अंग्रेजीयत से संघर्ष किया ?, क्यों उन्होंने स्वदेशी व चरखे की बात की ? लेकिन गाँधी जी पर इसका कोई जबाव नहीं था कि कहाँ उनकी तपस्या में कोई कमी रह गई थी जो आज उनके सपनों के भारत का यह हाल हो गया है।