पुलिस के डण्डे से डर नहीं लगता साहब, मीडिया के डण्डे से डर लगता है जो वो मुँह में घुसेड़ के पूछते हैं,"आपको कैसा लग रहा है ?" छपरा में बाढ़ आई हुई थी। एक बाप अपनी बच्ची को बचाने के लिए नदी में कूदने वाला ही था कि मीडिया वालों ने बाप के मुँह में माईक घुसेड़ दिया,"ये जो बाढ़ आई हुई है आपको कैसा लग रहा है?" फिर वो किसी तरह अपने इंटरव्यू के दस-पन्द्रह मिनट पूरा करने के चक्कर में बाप को छोड़ा ही नहीं और उसकी बच्ची बाढ़ में बह गई।
एक आदमी को जिसके दोनों हाथों में ड्रिप व दवाई की थैलिया थीं, हॉस्पिटल के बाहर मीडिया वालों ने पकड़ लिया और फिर उसके मुँह में माईक घुसेड़ कर पूछा कि आप क्या कहना चाहते हैं इस माहौल के बारे में? उस आदमी का मरीज icu में भर्ती था इसलिए वो कुछ कहना नहीं चाहता था पर मीडिया वालों को अपनी trp बढानी थी तो दोनों में कबड्डी शुरू हो गई। रिपोर्टर व कैमरामैन उसे छोड़ना नहीं चाह रहे थे और तीमारदार उनसे बचने की कोशिश कर रहा था कि जल्दी से जल्दी अपने मरीज के पास दवाई लेकर पहुंच जाए। आदमी अजगर की पकड़ से तो छूट सकता है पर मीडिया की पकड़ से नहीं। दस-पन्द्रह मिनट तक माइक पकड़े हुए सवालों की बौछार तीमारदार पर होती रही फिर इस कबड्डी से किसी तरह बचकर जब वो अपने मरीज के पास पहुंचा तो डॉक्टर ने बताया ये तो दस मिनट पहले ही चल बसे। इस तरह मीडिया वालों को मरने वालों का नया आँकड़ा मिल गया।