ये आजकल के तथाकथित पशुप्रेमी इंसानियत के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। ये पशुप्रेमी दो प्रकार के मिलेंगे, एक जिन्हें टोटका बताया जाता है जैसे- शनिवार को बन्दरों को भोजन कराने से ग्रह शान्त होंगे। फिर ऐसे लोग शनिवार को बन्दरों को भरपेट खाना खिलाते हैं। उसके बाद पूरे सप्ताह बन्दर चाहें भूख से तड़पते रहें। इन पशुप्रेमीयों के कारण बन्दर इंसानों को खाने से जोड़कर देखने लगते हैं और कई बार इंसानों पर खाना न मिलने पर उन्हें काट भी लेते हैं।
दूसरे प्रकार के पशुप्रेमी किसी के कहने से नहीं बल्कि खुद अन्दर से पशुप्रेमी होते हैं। ये रोज कुत्तों को या दूसरे जानवरों को खाना खिलायेंगे। इनका जरूरत से ज्यादा पशुप्रेम ही लोगों के लिएआफत बनता जा रहा है।
हमारी संस्कृति में पशुप्रेम पर विशेष बल दिया गया है जैसे नाग पंचमी आदि साँपो की रक्षा करने का संदेश देते हैं लेकिन ये तथाकथित पशुप्रेमी केवल एक ही प्रजाति के जानवरों को प्रेम करेंगे जैसे- कोई कुत्ते को, कोई बिल्ली को या कोई पक्षीयों को, अन्य जीव जैसे छिपकली, कॉकरोच, मकड़ी आदि से इन्हें कोई मतलब नहीं होता। इन पशु प्रेमीयों का मांसाहारी होना समझ नहीं आता। पुराने जमाने के लोग घर में निकली काँतर को भी मारते नहीं थे बल्कि चिमटे से पकड़कर दूर फेंक आते थे। मक्खियों को मारने की जगह उनके लिए थोड़ा सा गुड़ गीला करके रख देते थे ताकि वो वहीं एक जगह बैठी रहें। एक और उदाहरण बताता हूँ, हमारे पड़ोस में एक विकट की कुत्ता प्रेमी महिला हैं। उनकी मोहल्ले वालों के अलावा कुत्ता पकड़ने वालों से भी एक-दो बार तू-तू, मैं-मैं हो चुकी है। एक दिन उन्हें गिलहरी का घोंसला घर के बाहर फेकते हुए देखा, जिसमें रखे गिलहरी के बच्चों को कौए खा गए।