बाहर गली में बच्चे खेल रहे थे और शोर मचा रहे थे,'लेके रहेगें आजादी, मच्छरों से आजादी, इन मक्खियों से आजादी।' वो ये बाते अपने बचपने में कह रहे थे या गम्भीरता से, पता नहीं पर कह बिल्कुल सही रहे थे। हम ऐसे मच्छरों को पनपने ही क्यों देते हैं, जो हमारे ही घर में रहते हैं और हमारा ही खून चूसने की कोशिश करते हैं।
बरसात का मौसम आते ही सरकार अभियान चलती है कि कहीं पानी इकठ्ठा न होने पाये। तो क्या हमें भी एक अभियान नहीं चलाना चाहिए उस विचार धारा के खिलाफ जिसमें ऐसे मच्छर पनपते हैं। यदि हम आज इस पर ध्यान नहीं देते तो कल कहीं ये हमारे लिये जान लेवा बीमारी न बन जाये।