छिछोरे लाल 30 साल बाद आज पुनः जवान हो गये थे। आँखों पर लाल चश्मा, पीली टीशर्ट, काली कार्गो पेंट। आखिर आज रिटायर्ड होने के बाद पुनः अपने पहले प्यार से मिलने का मौका मिला था। आज से 30 साल पहले वो उसी के साथ समय बिताया करते थे।उनका पहला थी पतंग। पतंग उड़ाने का उनके पास असीम ज्ञान था। बिना हवा के भी वो पतंग उड़ा लेते थे। पतंगों का उनके पास हमेशा भण्डार रहता था।
अपने पास कितनी भी पतंगे हो पर लूटी हुई पतंग का अपना अलग ही मजा होता है। कटी पतंग को देखते ही पतंग प्रेमी के अन्दर हमारे पूर्वज बन्दर की आत्मा आ जाती है और वो कुत्ते की तरह पतंग के पीछे दौड़ लगा देता है। जब तक की पतंग किसी के हाथ में न आ जाये पतंग प्रेमी की चील दृष्टि पतंग से कभी नहीं हटती चाहे उसकी हड्डियां शरीर से क्यों न हट जाये। एक रुपये की पतंग के पीछे अपना लाखों हजारों का नुकसान कराने का क्या गणित है इसे आज तक कोई वैज्ञानिक समझ नहीं पाया है। पतंग ही ऐसा खेल है जो अच्छा व बुरा एक साथ होता है। बच्चों को इसे खरीदने के लिए पैसे भी मिलते हैं और उड़ाने पर पिटाई भी हो जाती है।
बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में पतंग के लिए समान प्रेम दिखता है। पतंग की डोर हाथ में आते ही बूढ़े भी बच्चों की तरह गुलाटी मारने लगते हैं। आज के युग में पतंग घरों में ही घुसे रहने वाले प्राणियों को छत पर लाने का कार्य भी करती है। पतंग उड़ाने वाला इंसान अगर चार-पाँच पतंगे काट दे तो वो खुद भी हवा में उड़ने लगता है। पैसों से तंग आदमी भी इसे खरीद सकता है शायद इसीलिए इसका नाम पतंग रखा गया हो। कुछ लोगों को नहीं पता होगा पर पतंगों के नाम भी होते हैं जो उनके डिजाइन के बारे में बताते हैं जैसे- पटियल, अधल, तिरंगा, परी, बोतल, डण्डा, चाँद तारा, पेन, डुग्गा, ढपाल, कौआ, बगुला आदि।