परीक्षा का मौसम आते ही जगह-जगह शिक्षा की दुकानें लगने लगती हैं। कोई नकल के नाम पर, तो कोई पक्के तौर पर पास कराने के नाम पर ग्राहकों को अपने पास बुलाने की कोशिश करता है। शिक्षा के ठेकेदारों के अलावा अन्य लोग भी इस मौसम में सक्रिय हो जाते हैं। जिन लोगों ने सरकार से शिक्षा के ठेके ले रखे हैं वो तो साल भर लोगों को लूटते ही रहते हैं। कभी किताब के नाम पर, कभी ड्रेस के नाम पर तो कभी किसी और-और नाम पर। पर जिन लोगों को सरकार से ठेके नहीं मिल पाते वो कोचिंग सेंटर खोलकर बैठ जाते हैं। जो चीज आपको स्कूल या कॉलेज से नहीं मिलती वो यहाँ मिल जाती है यानि कि शिक्षा। लेकिन कुकरमुत्तों की तरह जगह-जगह खुल गए कोचिंग सेंटरों ने ये गारण्टी भी खत्म कर दी है। शहर की छोटी से छोटी गली व सुदूर इलाकों में भी कोई न कोई कोचिंग सेंटर चलता मिल जाएगा। इनमें भी सरकारी स्कूलों की तरह औपचारिक तौर पर शिक्षा प्रदान कर दी जाती है। आगे पढ़ने वाले का भाग्य। इनसे आगे बढ़ते हुए कुछ कोचिंग सेंटर शिक्षा की जगह छात्र-छात्राओं के मिलने की जगह बन गये हैं। इनका तो आदर्श वाक्य ही ये हो गया है कि मैं तुमसे मिलने आई कोचिंग जाने के बहाने। इन्हीं बहानों में युवाओं का भविष्य कहाँ जा रहा है सब देख ही रहे हैं।
जो लोग उपरोक्त किसी भी सुविधा का लाभ नहीं उठा पाते उनके लिए भी शिक्षा माफियाओं ने इंतजाम कर रखे हैं। उन्हें फर्जी डिग्री व मार्कशीट दिलवा दिये जाते हैं। अगर कोई हाय तौबा करने वाला हो तो उनके लिए नकली विश्वविद्यालय भी हैं। पर इनका पता लोगों को तब चल पाता है जब चिड़िया खेत चुग जाती है। शिक्षा की इस मैराथन में हर कोई भाग लेना चाहता है और हर किसी का लक्ष्य उस दौड़ को पूरा करना नहीं बल्कि उसमें जीतना है। इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े। अब लोग शिक्षा की गुणवत्ता नहीं बल्कि सँख्या (मार्कशीट में नम्बर) देखते हैं।