चुनावों में जो शौचालय बनाने का वायदा करते हैं वो हार का सामना करते हैं और जो वोटरों को फ्री में पिलाते हैं जीत जाते हैं। अफसरों को लोगों को खुले में जाने से रोकने और ज्यादा पीने से रोकने पर विरोध का सामना करना पड़ता है। इन अफसरों की वजह से सरकारें संकट में आ जाती हैं। कई बार अफसरों के तबादले करने पड़ते हैं। जनता सड़क के न बनने से इतनी नहीं भड़कती जितनी हाइवे पर ठेके बन्द करने से और खुले में शौच से रोकने पर भड़कती है।
बारातघर में एक बार को संडास न हो बाराती एजेस्ट कर लेते हैं पर बारात या डी जे पर शराब का इंतजाम न हो तो एजेस्ट करना मुश्किल हो जाता है। कई बार रंग में भंग पड़ते देर नहीं लगती।
रेल पटरियों पर सुबह सुबह लोग हल्का होने के लिए इकठ्ठा होते हैं। शाम को पटरियों पर पीने पिलाने के लिए इकट्ठा होते हैं।आदमियों की यारी ठेके पर और औरतों की दोस्ती की पहचान डिब्बा पार्टी (खेत/जंगल) में होती है। दोनों ही जगह बड़े आत्मीय झुंड देखने को मिलते हैं। जहाँ घर से लेकर दिल तक के सारे राज आपस में बयां कर दिए जाते हैं। नाली दोनों समूह की एकता का प्रतीक है क्योंकि नाली का सर्वाधिक प्रयोग सुलभ शौचालय के तौर पर किया जाता है। वहीं बेवड़े भी किसी न किसी नाली में पड़े मिलते हैं। दोनों ही जगह पानी बहुत जरूरी चीज है। नीट पीने वालों और पत्तों से पौछने वालों की बात अलग है।
कुछ महानुभावों का मानना है कि शराब पीने से सुबह प्रेशर अच्छा आता है। इस प्रकार यह कब्ज की अच्छी दवा हो सकती है। दवा से याद आया दोनों का ही वेग कोई माई का लाल दवा नहीं सकता।
शराब व संडास दोनों ही किसी में भेद नहीं करते। ये दोनों ही जात-पात, ऊँच-नीच कुछ नहीं देखते। कई बार शराब पीने से लोग मरते हैं। इसी प्रकार खुले में शौच से होने वाली बीमारी भी सभी को अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं। और अंत में
सुबह-सुबह जल्दी उठकर, घर से निकला वो मतवाला
कहाँ जाऊ अब किधर जाऊ, असमंजस में था वह भोला भाला
खुले में बैठा देखकर, उसको सब गाली देंगे
और इसी असमंजस में, वह पहुँच गया शौचाला
मोदी जी के भाव देखकर, डरता है करने वाला
सोच रहा है दिल ही दिल में, अब नहीं चलेगा यह साला
बिना लोटे के सुबह-सुबह की, बात कहीं पर नहीं बनती