ललुआ अपनी भैंस को पोस्त खिलाता लेकिन भैंस के बच्चों को चाऊमीन पसन्द थी। कई बार बच्चों के मुँह से चाऊमीन लटकी रह जाती। जिसे एक-दूसरे के मुँह से खींचने के लिए वो आपस में लड़ने लगते। अपने बच्चों की उछल कूद देखकर भैंस खूब खुश होती। वैसे तो भैंस ठण्डाई वाला दूध देती पर ललुआ जब भैंस को बॉर्नविटा खिलाता तो वह चॉकलेट वाला दूध देती। ललुआ को जिस फ्लेवर का दूध चाहिए होता वो वही चीज उस दिन भैंस को खिलाता। उसकी भैंस खा-खाकर गप्पा हो गई थी। कई लोग उसे गलती से हाथी समझ बैठते थे।
ललुआ अपनी भैंस को बहुत प्यार करता था। वो जब भी मेले में जाता वहाँ से भैंस के लिए गैस के गुब्बारे जरूर लाता और उन्हें भैंस के दोनों सींगो पर बाँध देता। भैंस गुब्बारे पकड़ने के लिए दिन भर उछलती रहती। इन दोनों का प्यार देखकर तबेले के बन्दर भैंस से जलते रहते और जलन के मारे उनके मुँह हमेशा लाल रहते पर तबेले की बला अपने सिर कौन ले यही सोचकर चुप रह जाते।