एक आतंकवादी के लिए आधी रात को अदालत खोल दी जाती है कुछ लोगों की अवैध वस्ती बचाने के लिए जज 10 बजे ही अदालत पहुंच जाते हैं। आधे घंटे ताला खुलने का इंतजार करते हैं व ताला खुलने के 10 मिनट बाद ही कार्यवाही पर रोक का आदेश जारी कर दिया जाता है। दिल्ली के ट्रेफिक व जैम के कारण अधिकारीयों तक ये आदेश पहुँचने में दो घंटे लग जाते हैं। अपने आदेश का समय पर पालन न होने के कारण अदालत इस पर गम्भीर चिंता व्यक्त करती है। लेकिन निर्भया कांड में कई वर्ष लगे थे। अगर कोई महिला अपने खिलाफ ज्यादती का मुकदमा लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँचती है तो उसे निचली अदालत फिर उच्च न्यायालय फिर हमारे पास आने को कहती है। फिर भी एक अपराधी इसलिए छूट जाता है क्योंकि उसकी उम्र 17 साल थी। लेकिन पुलिस एक 13 साल के बच्चे को जेल में डाल देती है क्योंकि उसने फेसबुक पर संविधान के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की थी। जब पुलिस की थू-थू व किरकिरी होती है तो पुलिस सोशल मीडिया पर की जाने वाली पोस्ट के लिए बच्चों के माँ-बाप की जिम्मेदारी तय कर देती है। फिर कोई 14 साल का बच्चा मुख्यमंत्री का अपमान जनक (मजाकिया) फोटो सोशल मीडिया पर डाल देता है तो पुलिस उसके माँ-बाप को पकड़ लाती है लेकिन 17 साल का बच्चा किसी का मर्डर भी कर दे तो उसके माँ बाप या रिश्तेदारों की कोई जबावदेही तय नहीं होती।