एक तरह सरकार ध्वनि प्रदूषण कम करने के प्रयास में लगी है। दूसरी तरफ जनता है जो उसके हर प्रयास को विफल कर रही है। कभी धर्म के नाम पर तो कभी अपनी खुशियों की दुहाई देकर शोर मचाती रहती है। मरीज व छोटे बच्चे इस शोर से परेशान हैं। बच्चों का पढ़ाई की जगह इस शोर में मन लग जाता है।
दिन की शुरुआत तो कबीर के मुर्गो से होती है जो दिन में कई बार बाग देते हैं। फिर भी इनके वंदो में न तो भाई चारा पैदा हो पाता है न ही इंसानियत आ पाती है। फिर मन्दिर में जोर-जोर से बजते लाऊड स्पीकर। कहीं जागरण हो तो पूरा डीजे लग जाता है साथ ही बड़े से बड़े स्पीकर। जागरण में कोई आपस में बातें कर रहा होता है तो कोई फोन में लगा होता है। वहाँ बैठा एक भी आदमी साथ में भजन न कराए पर पूरे मोहल्ले को पता चलना चाहिए जागरण हो रहा है।
त्यौहारों पर तो 24-24 घण्टे अखण्ड लाउडस्पीकर बजने जरूरी हैं। किसी की बारात निकलेगी तो इतना शोर होना चाहिए कि 10-10 किलोमीटर दूर तक के लोगो को पता चल जाये। भई! जो लोग तुन्हें जानते भी नहीं हैं उन सड़क चलते लोगों को भी तुम बता रहे हो मेरी शादी है। उन्हें क्या मतलब तुम्हारे इस शोर शराबे से। शादी के मौसम में तो आप सो भी नहीं सकते। एक बरात गयी तो दूसरी आ गयी। दूर-दूर से पूरे शहर के बैंड बाजों की आवाज कानों में पड़ती रहेगी।