पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह का वक्त। सूरज की मीठीकिरनें शबनम के फर्श पर जोत का समंदर लहरा रही थीं। नीचे से पत्तियों कीहरियाली अपना रंग उभारती हुई। रँगीन फूल झूमते हुए, मुन्ना सूरज की तरफ रुखकिए हुए खड़ी रही। जमादार गए, हाथ जोड़कर कहा, 'रानीजी, जय हो !'मुस्कुराती हुई मुन्ना चल दी। पहले पहरेदार को पार किया, दूसरे को किया, तीसरेको देखकर रुकी। दूसरी मंजिल पर, वहाँ एकांत था। पहरेदार भी खासा पट्ठा, पठान।
नाम भी रुस्तम। यह पहरा बुआ के वास के पास लगता था। कुछ आगे पिछवाड़ेवालाजीना, हमेशा थोड़ा प्रकाश। अंदर महल की कितनी ही दालाने, दूसरे-दूसरे महलोंसे, उस जीने की तरफ गई थीं। मुन्ना रुस्तम के सामने खड़ी हो गई। रुस्तम कुछ
देर तक खड़ा हुआ देखता रहा। फिर पूछा, "क्या है?"
"तुम्हारा नाम क्या है?" मुन्ना ने पूछा।
"रुस्तम।"
"मैं रानीजी के पास से आती हूँ, तुम्हें मालूम है?"
"हाँ।"
"तुम तरक्की चाहते हो?"
"मेरी बात मानो, रानीजी का काम करो। कौनसी तरक्की चाहते हो?"
"जमादारी।"
"बाद को मालूम होगा। यह बात किसी से कहना मत। कहो, नहीं कहूँगा।"
"नहीं कहूँगा।"
"यह जमादार कैसा आदमी हैं?"
"अच्छा।"
"अच्छा आदमी है, तो क्या जमादारी करोगे। कहो, बुरा है।"
"हमारा अफ़सर।"
"तुमको जगह अफ़सर की कहाँ से मिलेगी? इसी आदमी की जगह तुमको दी जाएगी। समझकर
कहो, चाहिए या नहीं?"
"चाहिए।" आवाज गिर गई।
मुन्ना एक कदम बढ़ी। कहा।"कहो, रानीजी से कुल बातें कही जायँ।"
खुश होकर रुस्तम ने कहा, "रानीजी से कुल बातें कही जायँ।"
"अच्छा, तलवार निकालकर कसम खाओ, कहो, हम रानीजी का साथ देंगे।"
रुस्तम तन गया। तलवार निकालकर क़सम खायी।
मुन्ना ने कहा, "तलवार हमें दे दो।"
इधर-उधर देखकर रुस्तम ने तलवार दे दी।
मुन्ना ने तलवार लेकर सलामी दी। कहा, "यह जमादार के साथ रानी और राजा की सलामी
है। अब तुम जमादार से छूट गए। कहो, हाँ।"
"हाँ।"
"यह लो अपनी तलवार।" रुस्तम को तलवार दे दी। कहा, "जैसी जमादार को सलामी मैंने
दी वैसी मुझे रानी कहकर तुम दो।"
रुस्तम ने वैसा ही किया। मुन्ना ने कहा, "तुम पास हो गए। याद रहे अब कल काम कीबात बतलाऊँगी और परसों काला चोर पकड़ाऊँगी। मुझे रानी समझना। जब जिसको रानीसमझने के लिए कहूँ, समझोगे। बाद को देखोगे, तुम्हारी मुराद पूरी हो गई। मतलबगठ गया।"रुस्तम खुश हो गया। मुन्ना बुआ के कमरे में गई।
बुआ बैठी थीं, मुन्ना सामने खड़ी हुई। कहा, "खड़ी हो जाओ।" बुआ बैठी रहीं।
मुन्ना ने कहा, "खड़ी हो जा।"
बुआ के आँसू आ गए, खड़ी हो गईं। मुन्ना ने कहा, "इधर आओ।"
बुआ चलीं, मुन्ना बरामदे की तरफ बढ़ी। पहुँचकर कहा, "मैं जो पहले थी, अब वह
नहीं। अब तुम्हारे लिए पहले मैं रानी हूँ। फिर तुम्हारी काम करनेवाली। पर काममैं दरअसल रानीजी का करती हूँ। बात तुम्हारी समझ में आई?"
बुआ सहमीं। आँखें फाड़कर मुन्ना को देखने लगीं।
मुन्ना ने कहा, "हाथ जोड़कर हमको नमस्कार करो।"
बुआ की त्योरियाँ चढ़ीं। मुन्ना ने कहा, "नमस्कार करो, नहीं तो सिपाही बुलाऊँगी।"
बुआ ने कहा, "हमारे भतीजे को बुला दो। हम घर चले जाएंगे।"
मुन्ना ने मुस्कराकर कहा, "तुम्हारा भतीजा राजा का दामाद है, अपनी स्त्री से सुन चुका है। समझ गया है, राजा का क्या सम्मान है। गाँठ बाँधो, वह तुमसे नहीं
मिल सकता। जाना चाहती हो तो तभी जा पाओगी जब रानी को सम्मान मिल जाएगा। तुमने सिखाने पर भी बात नहीं मानी। दासी का तुमने अपमान कराया, तुमको नहीं मालूम।
हाथ जोड़ो, हम रानी हैं।
बुआ फिर भी खामोश रहीं। मुन्ना ने कहा, "यह काम हम तुमसे ले लेंगे ! हाथ जोड़ो, नहीं तो सिपाही बुलाएँगे। वह जबरदस्ती जोड़ाएगा।"
बुआ ने हथेलियाँ जोड़ीं।
मुन्ना ने कहा, "सिर से लगाओ।"
बुआ ने सिर से लगाईं।
मुन्ना ने कहा, "दो दफ़े और।"
बुआ ने दो दफ़े और प्रणाम किया और वहीं गिर गईं।
मुन्ना दासी का काम करने लगी। पानी ले आई, मुँह में छींटे लगाए, फिर पंखा झलती रही। एक अरसे के बाद बुआ होश में आईं। लाज और नफरत से आँखें न मिला सकीं।
मुन्ना ने कहा, "तुम्हारी मौसी को समझाया जा चुका है, वे बैठी हैं। तुम इतना समझो कि तुम्हारी निगाह में हम जितने छोटे हैं, रानी की निगाह में तुम और छोटी हो। जब तक राह पर नहीं आतीं, रानी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगी। कहो, रानी जैसा-जैसा कहेंगी, करना मंजूर?"
बेदम होकर बुआ ने कहा, "मंजूर है।"
'तुमको तीन रोज तक इसी तरह प्रणाम करना होगा। अगर इंकार किया तो सख्ती होगी।"
लाचार होकर बुआ ने स्वीकार किया।
मुन्ना ने कहा, "दूसरे दिन तुमको सखी की तरह बागीचा दिखाने ले जाएंगे। तुमने
देखा है, पर तुमको बाग़ीचे के पेड़ों के नाम नहीं मालूम। बाद को एक साथ
नहाएँगे। तीसरे दिन क्या होगा, यह तुमसे बागीचे में कहेंगे। जब हमारी-तुम्हारी