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भाग 3

5 अगस्त 2022

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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रईस और साहब-सूबों से मिलने का भी सुभीता था, इसलिए साल में आठमहीने यहीं रहते थे। परिवार भी रहता था। राजकुमार इस समय वहीं पढ़ते थे। ये अपनी बहन से बड़े थे, पर अभी ब्याह न हुआ था। यह कोठी और सजी रहती थी।

बंगाल की इस समय की स्थिति उल्लेखनीय है। उन्नीसवीं सदी का परार्द्ध बंगाल और बंगालियों के उत्थान का स्वर्णयुग है। यह बीसवीं सदी का प्रारंभ ही था। लार्डकर्जन भारत के बड़े लाट थे। कलकत्ता राजधानी थी। सारे भारत पर बंगालियों कीअंग्रेजी का प्रभाव था। संसार-प्रसिद्धि में भी बंगाली देश में आगे थे। राजाराममोहनराय की प्रतिभा का प्रकाश भर चुका था। प्रिंस द्वारकानाथ ठाकुर काजमाना बीत चुका था। आचार्य केशवचंद्र सेन विश्वविश्रुत होकर दिवंगत हो चुके थे। श्रीरामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की अतिमानवीय शक्ति की धाक सारेसंसार पर जम चुकी थी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर की बंगला, माइकेल मधुसूदनदत्त के पद्य, बंकिमचंद्र चटर्जी के उपन्यास और गिरीशचंद्र घोष के नाटक जागरण के लिए सूर्य की किरणों का काम कर रहे थे। घर-घर साहित्य, राजनीति की चर्चा थी।

बंगाली अपने को प्रबुद्ध समझने लगे थे। अपमान का जवाब भी देने लगे थे। अखबारोंकी बाढ़ आ गई थी। रवींद्रनाथ के साहित्य का प्रचंड सूर्य मध्य आकाश पर आ रहाथा। डी. एल. राय की नाटकीय तेजस्विता फैल चली थी। सारे बंगाल पर गौरव छाया हुआथा। परवर्ती दोनों साहित्यिकों से लोगों के हृदयों में अपार आशाएँ बँध रहीथीं। दोनों के पद्य कंठहार हो रहे थे। जातीय सभा कांग्रेस का भी समादर बढ़ गया था। उस में जाति के यथार्थ प्रगति के भी सेवक आ गए थे।इसी समय लार्ड कर्जन ने बंग-भंग किया। राजनीति के समर्थ आलोचकों ने निश्चय किया कि इसका परिणाम बंगाल के लिए अनर्थकर है। बंगाल के स्थायी बंदोबस्त की जड़ मारने के लिए यह चाल चली गई है। यद्यपि लार्ड कर्जन का मूँछ मुड़ानेवाला फैशन बंगाल में जोरों से चल गया था-

मिलनेवाले कर्मचारी और जमींदार लाट साहब को खुश करने के लिए दाढ़ी-मूँछों से सफाचट हो रहे थे, फिर भी बंगभंगवाला धक्का सँभाले न सँभला। वे समझे कि चालाक अंगरेज किसी रोज उन्हें उनके अधिकार से उखाड़कर दम लेंगे। चिरस्थायी स्वत्व के मालिक बड़े-बड़े जमींदार ही नहीं, मध्य वित्त साधारण जन भी थे। इसलिए यह विभाजन की आग छोटे-बड़े सभी के दिलों में एक साथ जल उठी। कवियों ने सहयोगपूर्वक देश-प्रेम के गीत रचने शुरू किए। संवाद-पत्र प्रकाश्य और गुप्त रूप से उत्तेजना फैलाने लगे। जगह-जगह गुप्तबैठकें होने लगीं। कामयाबी के लिए विधेय अविधेय तरीके अख्तियार किए जाने लगे।

संघ-बद्ध होकर विद्यार्थी गीत गाते हुए लोगों को उत्साहित करने लगे। अंग्रेजोंके किए अपमान के जवाब में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रतिज्ञाएँ हुईं,लोगों ने खरीदना छोड़ा। साथ ही स्वदेशी के प्रचार के कार्य भी परिणत किए जानेलगे। गाँव-गाँव में इसके केंद्र खोले गए। कार्यकर्ता उत्साह से नयी काया में जान फूँकने लगे।विज्ञान की उस समय भी हिंदुस्तानियों के लिए काफी तरक्की हो चुकी थी, पर मोटरों की इतनी भरमार न थी। हवाई जहाज थे ही नहीं। तब कलकत्ते में बग्घियाँचलती थीं। बाद को मोटरें हो जाने पर भी रईसों का विश्वास था, बग्घी रईसों के अधिक अनुकूल है, इससे आबरू रहती है। राजा साहब ने कई शानदार बग्घियाँ रखी थीं, कीमती घोड़ों से अस्तबल भरा था।

 शराब और वेश्या का खर्च उन दिनों चरम सीमा परथा। माँस, मछली, सब्जी और फलों के गर्म और क्रीम और बर्फदार ठंढे इतने प्रकारके भोजन बनते थे कि खाने में अधिकांश का प्रदर्शन मात्र होता था; वे नौकरों केहिस्से में आकर भी बच जाते थे। फूल और सुगंधियों का खर्च अब शतांश भी नहींरहा। पुरस्कार इतने दिए जाते थे कि एक-एक जगह के दान से नर्तकियों और गवैयों का एक-एक साल का खर्च चल जाता था। आमंत्रित सभी राजे-रईस व्यवहार में हजारों के वारे-न्यारे कर देते थे। अगर स्वार्थ को गहरा धक्का न लगा होता तो ये जमींदार स्वदेशी आंदोलन में कदापि शरीक न हुए होते। इन्होंने साथ भी पीठ बचाकर दिया था।

 सामने आग में झुक जाने के लिए युवक-समाज था। प्रेरणा देने वाले थे राजनैतिक वकील और बैरिस्टर। आज की दृष्टि से वह भावुकता का ही उद्गार था। सन्सत्तावन के गदर से महात्मा गाँधी के आखिरी राजनीतिक आंदोलन तक, स्वत्व केस्वार्थ में, धार्मिक भावना ने ही जनता का रुख फेरा है। इसको आधुनिक आलोचक उत्कृष्ट राजनीतिक महत्त्व न देगा। स्वदेशी आंदोलन स्थायी स्वत्व के आधार परचला था। उससे बिना घरबार के, जमींदारों के आश्रय मे रहनेवाले, दलित, अधिकांशकिसानों को फ़ायदा न था। उनमें हिंदू भी काफी थे, पर मुसलमानों की संख्या बड़ीथी, जो मुसलमानों के शासनकाल में, देशों के सुधार के लोभ से या ज़मींदार  हिंदुओं से बदला चुकाने के अभिप्राय से मुसलमान हो गए थे। बंगाल के अब तक के निर्मित साहित्य में इनका कोई स्थान न था, उलटे मुसलमानी प्रभुत्व से बदलाचुकाने की नीयत से लिखे गए बंकिम के साहित्य में इनकी मुखालिफ़त ही हुई थी। शूद्र कही जाने वाली अन्य दलित जातियों का आध्यात्मिक उन्नयन, वैष्णव-धर्म केद्वारा जैसा, श्रीरामकृष्ण और विवेकानंद के द्वारा हुआ था, पर उनकी सामाजिक स्थिति में कोई प्रतिष्ठा न हुई थी, न साहित्य में वे मर्यादित हो सके थे।

ब्राह्मण समाज ने काफी उदारता दिखाई थी, आर्य-समाज का भी थोड़ा-बहुत प्रचारहुआ था, पर इनसे व्यापक फलोदय न हो पाया था। ब्राह्मण समाज क्रिश्चन होनेवालेबंगालियों के भारतीय-धर्म-रक्षण का एक साधन, एक सुधार होकर रहा। इसमें

सम्मिलित होनेवाले अधिकांश विलायत से लौटे उच्च-शिक्षित थे। मुख्य बात यह किपरिस्थितियों की अनुकूलता के बिना उचित राष्ट्रीय संगठन नहीं हो सकता, न होसका। हिंसात्मक जो भावना स्वतंत्रता की कुंजी के रूप से प्रचारित हुई, वह

संगठनात्मक राष्ट्रीय महत्त्व कम रखती थी। गांधीजी का असहयोग इसी कीप्रतिक्रिया है, पर इसकी एकता की अड़ और गहरे पहुँची थी।

अस्तु, इस समय गुप्त सभाओं का जैसा क्रम चला, वैसा और उतना सिराजउद्दौला केसमय अंगरेज़ों की मदद के लिए भी नहीं चला। कुछ ही दिनों में राजों, रईसों औरवकील-बैरिस्टरों से मिलने पर, राजा राजेंद्र प्रताप की समझ में आ गया कि देश

को साथ देना चाहिए। चिरस्थायी स्वत्व की रक्षा ही देश की रक्षा है, इस परउन्हें ज़रा भी संदेह नहीं रहा। बहुत जगह दावतें हुईं, बहुत बार प्रतिज्ञाएँकी गईं। वकील और बैरिस्टरों के समझाने से दूसरे-दूसरे ज़मींदारों की तरह राजाराजेंद्रप्रताप भी समझे, उन्हें कोई खतरा नहीं। जिस मदद के लिए वह बात दे चुकेहैं, पुलिस को उसकी खबर नहीं हो सकती, पुलिस उन्हें पकड़ नहीं सकती।

दूसरों की तरह राजेंद्रप्रताप ने भी दावत दी। कोठी सजी। कलकत्ता के और वहाँ आएहुए बंगाल के ज़मींदार आमंत्रित हुए। निमंत्रण-पत्र में लिखा गया, राजकुमारीके ब्याह की दावत है। अच्छे पाचक बुलाए गए। राजभोग पका। विलायत की कीमती

शराबें आईं और कलकत्ता की सुप्रसिद्ध गायिका-वेश्याएँ। विशाल अहाते मेंजमींदारों की बग्घियों का तांता लग गया। प्रचंड रोशनी हुई। आलीशान बैठक मेंराजे और जमींदार गद्दियों पर तकियों के सहारे बैठे। शराब ढलने लगी। गायिकाओं

के नृत्य और गीत होने लगे। कुछ ही समय में भोजन का बुलावा हुआ। राजसी ठाट केआसन लगे थे। सोने और चाँदी के बरतनों में भोजन लगाकर लाया गया। सबने प्रशंसाकरते हुए भोजन पाया। इशारे से बातचीत होती रही। सब-के-सब एकमत थे। भोजन के बादथोड़ी देर तक गाना सुनकर, सभी श्रेणियों के लोगों को इनाम देकर जमींदार लोग अपनी-अपनी कोठियों को रवाना हुए। गायिकाएँ भी गईं। केवल एक आदमी बैठा रहा। वह कलकत्ते का एक प्रसिद्ध बैरिस्टर है। उस समय कमरे में कोई न था। उसने राजेंद्रप्रताप से कहा, "हमको जगह चाहिए। आप लोगों के पास जगह की कमी  नहीं। वहाँ कार्यकर्ता छिपकर काम करेंगे। आप उनकी निगरानी रख सकते हैं।"

"जगह आप लोग देंगे, आदमी हम। आप में जो कलकत्ते के रहनेवाले हैं, वे अपनी कोठियों में जगह नहीं दे सकते। उनसे हम रुपया लेंगे और किराये की कोठियों में काम करेंगे।"

"हाँ।" राजेंद्रप्रताप को विश्वास था कि वे दो-चार को क्या, बीसियों आदमियोंको छिपा दे सकते हैं। गढ़ के भीतर पुलिस के आने तक वे आदमी बाहर निकाल दिए जासकते हैं, माल गहरे तालाब में फेंकवा दिया जा सकता है। पूर्वपुरुषों सेजमींदारों की दुस्साहसिकता की जो बातें वह सुन चुके हैं और खुद कर चुके हैं,उनके सामने ये नगण्य हैं।

"सारा देश साथ है।" बैरिस्टर ने कहा, "घबराइएगा नहीं। हमारे आदमी पकड़ जाएँगेतो अपने पर ही कुल जिम्मेवारी लेंगे। आपको पकड़ाएँगे नहीं। कोठी में भी पकड़ेजाएँगे तो उनका यही कहना होगा कि वे एकांत देखकर अपनी इच्छा से गए थे।"

राजा राजेंद्रप्रताप को विश्वास का बल मिला। बैरिस्टर कहते गए, "किसी तरह कीअनहोनी होती दिखे तो आप उन्हें जल्द सूचित कर दें।"

राजा साहब ने सम्मति दी। बैरिस्टर ने कहा, "जो आदमी वहाँ आपसे मिलेगा, वह आजसे चौथे दिन तारकनाथ का आदमी कहकर मिलेगा। उसका नाम प्रभाकर है। उसके साथ तीनआदमी और होंगे। सामान की व्यवस्था की हुई रहेगी; भीतर ले जाने, ले आने और भोजनपान का इंतजाम आप करा दीजिएगा, साथ इस तरह भेद न खुले, बहुत विश्वासी आदमी काम

में रहें जिनके जीवन की बागडोर आपके हाथ में हो। समझते हैं?""हाँ, हमारा संबंध तो आपको मालूम है।" राजा साहब मुस्कराये। बैरिस्टर साहब नेकुछ देर तक ऐसी ही बातचीत की, फिर बिदा हुए।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

5 अगस्त 2022
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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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