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भाग 7

5 अगस्त 2022

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा सामान और गुलशन कोलेकर जेट्टी के लिए गाड़ी पर बैठी। राजा साहब के साथ कुल सहूलियतें हैं।खुशी-खुशी चल दी। आदमियों से थानेदार साहब को भेद नहीं मालूम हो सका। फाटक केबाहर रास्ते पर भेस बदले हुए पुलिस के सिपाही थे, कुछ और आदमी। थानेदार निकलकरउल्टे रास्ते चले। काफी दूर निकल गए। फिर एक-एक छँटने लगे। थानेदाररेलवे-स्टेशन से डायमंड हारबर की तरफ रवाना हुए।जेट्टी से राजा साहब का स्टीमर लगा हुआ था। आने-जाने के सुभीते के लिएउन्होंने खरीदा था। अच्छा-खासा स्टीमर, दो-मंजिला। नीचे सामान लद चुका था।

सिपाही, खानसामे, बाबू, पाचक और खिदमतगार आ चुके थे। डेक की एक बगल लोहे केचूल्हों पर खाना पक रहा था। जाफरान और गर्म मसाले की खुशबू आ रही थी। ऊपरवालेडेक की सीढ़ी पर सशस्त्र पहरा लग चुका था। केबिन में और जहाज के सामने ऊपरवालेडेक पर ऊँचे गद्दे बिछ गए थे। अभी राजा साहब नहीं आए। एजाज की गाड़ी आई। गुलशनने उतरकर गाड़ी का दरवाजा खोला और कब्जा पकड़ा; सहारे के लिए बाँह की रेलिंगबन गई। एजाज उतरी। लोगों की आँखें जम गईं। रूप से हृदय भर गया। आज का पहनावामोरपंखी है। साड़ी का वही रंग, वही बूटे, फ़रमाइश से तैयार की हुई। ज़मीनसुनहरे तारों की। सिर के कुछ बाल मोर की चोटी की तरह उठे हुए; हर डाँड़ी परहीरे की कनियों के साथ नीलम बँधा हुआ। पैरों में कामदार मोती-जड़ी जूतियाँ।उतरकर एजाज मोर की ही चाल से चली। जेट्टी की एक बगल पुलिस का सिपाही खड़ा था।सलाम किया। जेट्टी और नीचेवाले डेक पर राजा के लोग खड़े थे। देखकर खुश हुए, परमुँह फेरकर दूसरे को सुनाकर गाली दी। एजाज दूर थी। चलती हुई पास आई। लोगों नेरास्ता निकाल दिया। डेक पर जाने की काठ की सीढ़ी लगा दी। उस डेक से दूसरे तलेकी सीढ़ी पर वह चढ़ने लगी। सिपाही ने रानी साहिबा को सशस्त्र सलामी दी। हाथउठाकर, एजाज ऊपर गई। गुलशन ने पूछा, "कहाँ रहिएगा?"

"केबिन में, जब तक राजा नहीं आते।""लोग अड़े हैं, कुछ उनका भी खयाल...?" कहते हुए गुलशन ने केबिन का दरवाजा

खोला।"अभी साड़ी और पहनावा देख रहे हैं," कहती हुई एजाज केबिन में चली गई, "जब आदमीको देखेंगे, तब तू ही ठहरेगी। इस पहनावे से तो नहीं घिसटते?" एजाज ने गुलशन कीसाड़ी का छोर खींचा। गुलशन मुस्करा दी। "अच्छा चलो, केबिन के सामनेवाली कुर्सीपर बैठो जरा देर।""मैं कहती हूँ, राजा साहब के आने पर डेक पर महफिल लगेगी।"

"तू राजा साहब बन जा, मैं शीशा और प्याली ले लूँ।"गुलशन भग गई। दूसरी तरफ से बाहर निकली और कुर्सी पर बैठ गई।

कोच-बाक्स की बग़ल में बैठे सिपाही ने पेटियाँ उठवाकर एजाज के केबिन में लगवादीं। चलते वक़्त की सलामी दी। एजाज ने गुलशन से बीस रुपए ले लेने के लिए कहा।5) खुद ले, 5) कोचमैन और साईस को दे, 5) डेक के पहरेदार को, 5) पुलिस के

सिपाही को।सिपाही के चले जाने पर गुलशन को भेजकर राजा साहब के एक खिदमदगार से मालूमकिया, राजा साहब और पुलिस के सिपाहियों को क्या इनाम मिला।जेट्टी पर जहाज के ठहरने का तीन मिनट समय रह गया, राजा साहब की गाड़ी आई।सिपाहियों और नौकरों पर अदबी सन्नाटा छा गया। रफ्तार के बढ़ने पर भी शोोगुलका नाम न रहा। शान के क़दम उठाते हुए जेट्टी से गुजरकर राजा साहब ने डेक परचढ़नेवाला पीतल का चिकना डंडा पकड़ा। एक बगल, साथ आए हुए सशस्त्र अर्दली औरसीढ़ी के पहरे दार ने खड़े होकर बंदूक की सलामी दी। राजा साहब सीढ़ी से चढ़े।ऊपर के डेक पर, जहाँ सीढ़ी खत्म होती है, एजाज खड़ी थी। उसके पीछे गुलशन। एजाजने ललित सलाम किया। राजा साहब ने हथेली थाम ली। दोनों साथ-साथ सामने बिस्तर कीओर बढ़े। गद्दे पर पहले एजाज ने पैर रखा। दोनों तकिए लेकर बैठे। राजा साहबअतृप्त आँखों से एजाज का खुलता हुआ रूप और पहनावा देखते रहे। जरा देर के लिएसेक्रेटरी आए। राजा साहब ने पुलिस के लिए कहकर जहाज खोल देने की आज्ञा दी।जेट्टी से बँधी हुई जहाज़ की मोटी रस्सियाँ और लोहे की साँकलें खोली गईं।जहाज़ घूमा। फिर हुगली नदी से होकर दक्षिण की ओर चला। ऊपर के पीछेवाले हिस्सेमें सेक्रेटरी, कुछ कर्मचारी और ऊँचे पदवाले के अफसर बैठे। एजाज हुगली मेंबँधे हुए अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और अमेरिकन बड़े-बड़े जहाज़ देख रही थी औरउनसे होनेवाले विशाल व्यापार पर अंदाजा लगा रही थी। मधुर दखिनाव के तेज झोंकेलग रहे थे। दिल को कोई रह-रहकर गुदगुदा रहा था। जहाज़ फोर्ट विलियम किले केपास आया। किनारे लड़ाई के दो जहाज़ बँधे थे। इनकी बनावट दूसरी तरह की थी। रंगपानी से मिलता हुआ। एजाज ने चाव से इन जहाजों को देखा। एक नजर हाईकोर्ट कीविशाल इमारत पर डाली। एडेन गार्डेन की याद आई, यहाँ हवाखोरी के लिए वह बहुत आचुकी है। यह एक शिकारगाह भी है। शाम को शहर के रईस बड़ी संख्या में आते हैं,टहलते हैं और बेण्ड सुनते हैं। जहाज़ तेजी से बढ़ने लगा।

राजा साहब ने घंटी बजायी। एक बेयरा आया।"लाल पानी," राजा साहब ने बेयरा से कहा।बेयरा शेम्पेन की बोतल, बर्फ, छोटा टंबलर और पेग ट्रेपर लाकर रख गया। गुलशनएजाज की बग़ल में बैठकर टंबलर में बर्फ और शेम्पेन मिलाने लगी। पाचक ब्राह्राणकटलेट, चाप और कबाब चाँदी की तश्तरियों पर रख गया। कहकर ट्रे पर ढक्कनदारचाँदी के गिलासों में पानी ले आया। रखकर तौलिया लेकर खड़ा रहा। गुलशन ने दोपेग भरे। एक हाथ में रखा, एक बढ़ाकर एजाज को दिया। एजाज ने पेग चूमर राजासाहब के हाथ में दिया, फिर अपना लिया। गुडलक हुआ। दोनों पीने लगे।प्रायः एक डजन पेग थे। ये पिया पेग एक ही बैठक में नहीं इस्तेमाल करते। गुलशनतीसरा और चौथा पेग तैयार करने लगी। पेग खत्म करके राजा साहब ने हाथ बढ़ाया।बेयरा ने पकड़ लिया। एजाज ने भी बढ़ाया।

गुलशन ने तीसरा दौर तैयार करके, चाँदी की पेग रखनेवाली रिकाब में लगाकर दोनोंके बीच में रख दिया। दोनों, मौसम, गंगा, शिवपुर के बगीचे, हवा आदि का जिक्रकरते हुए, साथ-साथ नाश्ता करने लगे।दूसरा दौर भी समाप्त हुआ; तीसरा भी हुआ। नशे का प्रभाव बढ़ने लगा। दोनों केहाथ धुला दिए गए। गिलोरी और सिगरेट की तश्तरियों को छोड़कर नौकर और कुल चीजेंउठा ले गए। फिर केबिन के पास के पर्दे, आड़ के लिए खोलकर, रेलिंग के डंडों केसाथ बाँधने लगे। कीमती हारमोनियम लाकर रख दिया। गुलशन को छोड़कर और सब बाहरनिकल गए।

"कुछ सुनने की तबियत हो रही है।" राजा साहब ने प्रेम से कहा।एजाज ने गुलशन की तरफ देखा। गुलशन ने पीकदान बढ़ाया। पान थूककर एजाज ने कहा,"तेज हवा है। आवाज उड़ जाएगी।" कहकर हारमोनियम खोला।"तुम्हारा गाना है, हारमोनियम हो, पियानो या सितार-इसराज, छाकर रहेगा।" राजासाहब ने सहृदय स्वर से बढ़ावा दिया। एजाज हिली।पर्दे पर उँगली रखी। कहा, "मयकशी के बाद आवाज पर काबू नहीं रहता।" कहकर स्वरनिकाला। राजा साहब तद्गतेनमनसा ध्यानावस्थित हुए।एजाज की मधुर आवाज निकली। जहाज-भर के लोग, नीचे और ऊपर के, कान लगाए रहे। गाना

शुरू हुआ।-"हर एक बात प' कहते हो तुम कि तू क्या है,कहो कि यह अंदाजेगुफ्तगू क्या है?जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा,कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है?रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?"लोगों पर सच्चा जादू चला। सभी ने दिल दे दिया, वही दिल जो हाथ से छूटकर मजबूतीसे हाथ पकड़ता है। छोटे-बड़े सभी उसके भक्त हो गए। कोयला-झोंकनेवाले एक झुक्कीझोंककर नीचे से डेक पर चढ़ आए। श्रम को हल्का कर लिया। सोचा, वह कौन-सा स्वरहै जो दिल पर अपनी पूरी-पूरी छाप लगा देता है? खड़े लोगों में क्षण-भर के लिएविषमता नहीं आई; किसी बड़प्पन के कारण या पैसा होने की वजह गायिका का कंठ इतनामधुर है, यह वे नहीं सोच सके; विरोध का क्षण ही मिट गया। उन पंक्तियों के लेखकमहाकवि गालिब समय के सताए हुए और गानेवाली एजाज समय की संस्तुत, फिर भी दोनोंमें साम्य ! यह किसी अधिकार की बात न होगी। अधिकार से वस्तु, विषय या बात इतनीसुंदर नहीं बनती, ऐसी पूरी नहीं उतरती। यह वह अधिकार है जहाँ अधिकार ढीला है।विलासी राजा एकटक उस सच्चे रूप और स्वर को देखते-समझते रहे। कुछ देर एजाज नेदम लिया। निगाह उठाई। भरा पेग उठाकर राजा साहब को दिया। खुद एक लौंग दबाई। दोकश खींचकर पीकदान में डाल दी और हारमोनियम संभाला।एक ठुमरी गाई :-

"जाने दे मोको सुनो सजनवा,काहे करत तुम नित नित मोसन रार,नहीं, नहीं मानूँगी तिहार।

छेड़ करत, नहीं मानत देखो री सखि,मेरी सुनै ना,बिंदा करत अब नित नित मोसन रार,

नहीं, नहीं मानूँगी तिहार।"अभी दुपहर नहीं हुई। भैरवी का वक्त पार नहीं हुआ। श्रीश राजा साहब को गंभीर,और चलते हुए जहाज़ के सिवा कोई आवाज न आती हुई देखकर एजाज समझ गई-लोग कान लगाए

हुए हैं। वह खुशी से भर गई।एजाज ने छेड़ा :

"यामिनी न येते जागाले ना केन

बेला होल मरि लाजे।

शरमे जड़ित चरणे केमने

चलिब पथेरि माझे।

आलोक - परशे मरमे मरिया

हेर लो शेफालि पड़िछे झरिया

कोनो मते आछे पराण धरिया

कामिनी शिथिल साजे।

निबिया बांचिल निशार प्रदीप

ऊषार बातास लागि,

नयनेर शशी गगनेर कोने

लुकाय शरण मागि।

पाखी डाकि बले गेल विभावरी,

वधू चले जले लइया गागरी,

आमिओ आकुल कवरी आवरि

केमने याइब काजे।"

रवींद्रनाथ का गीत; कलकत्ता का आधुनिक फैशन एजाज ने सच्चा अदा किया-वहीउच्चारण, वही अंग्रेजियत। राजा साहब पर और आधुनिक शिक्षित बंगालियों पर इसीस्कूल का सबसे अधिक प्रभाव है, रवींद्रनाथ के गानों में स्वर का सबसे अधिकमार्जन मिलता है। राजा साहब की आँखों के सामने गंगा के शुभ्र फेन की तरह गीतका अस्तित्व तैरने लगा।

एजाज ने हारमोनियम हटा दिया। एक पेग और उठाकर राजा साहब को दिया, एक खुद लिया।शराब, बातचीत और गाने के बीच एजाज देखती जाती है, मटियाबुर्ज पार हुआ-शाहवाजिद अली का कारागार, तेल का केंद्र बजबज पार हुआ, उलूबेड़िया पार हुई, कितनीही मिलें निकल गईं, जिनका अधिकांश मुनाफा विदेशियों के हाथ जाता है। एजाजअंग्रेजी जानती है, संवाद-पत्र पढ़ती है, दूर निष्कर्ष तक आसानी से पहुँच जातीहै, संपादक की टिप्पणी पर टिप्पणी लगा सकती है।गुलशन राजा साहब को सिगरेट और पान देती जाती है। गाना बंद करके एजाज ने सिगरेटके लिए उँगली बढ़ायी। गुलशन ने हीरे की पाइप में सिगरेट लगा दिया। एजाज पीनेलगी।"तुम्हारे नहाने, भोजन और आराम करने का वक्त हुआ।" राजा साहब ने कहा।"पूजा करने की बात छोड़ दी? " एजाज ने बड़ी-बड़ी आँखें मिलाईं।"वह दिल में होती रह गई।""उसने मिला भी दिया।"राजा खामोश हो गए। एजाज ने कहा, "तुम उठो। नहाना मत। तवालिया गर्म पानी से निचोड़कर बदन पोंछवा डालो, धोती बदल दो। शराब पर नहाना !"राजा साहब उठ गए। एजाज बैठी हुई, नदी की शुभ्र शोभा, श्याम तटभूमि देखती रही।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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5 अगस्त 2022
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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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भाग 25

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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भाग 26

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

5 अगस्त 2022
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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

5 अगस्त 2022
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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

5 अगस्त 2022
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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

5 अगस्त 2022
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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

5 अगस्त 2022
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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

5 अगस्त 2022
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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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भाग 35

5 अगस्त 2022
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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

5 अगस्त 2022
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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

5 अगस्त 2022
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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

5 अगस्त 2022
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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

5 अगस्त 2022
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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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