तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा सामान और गुलशन कोलेकर जेट्टी के लिए गाड़ी पर बैठी। राजा साहब के साथ कुल सहूलियतें हैं।खुशी-खुशी चल दी। आदमियों से थानेदार साहब को भेद नहीं मालूम हो सका। फाटक केबाहर रास्ते पर भेस बदले हुए पुलिस के सिपाही थे, कुछ और आदमी। थानेदार निकलकरउल्टे रास्ते चले। काफी दूर निकल गए। फिर एक-एक छँटने लगे। थानेदाररेलवे-स्टेशन से डायमंड हारबर की तरफ रवाना हुए।जेट्टी से राजा साहब का स्टीमर लगा हुआ था। आने-जाने के सुभीते के लिएउन्होंने खरीदा था। अच्छा-खासा स्टीमर, दो-मंजिला। नीचे सामान लद चुका था।
सिपाही, खानसामे, बाबू, पाचक और खिदमतगार आ चुके थे। डेक की एक बगल लोहे केचूल्हों पर खाना पक रहा था। जाफरान और गर्म मसाले की खुशबू आ रही थी। ऊपरवालेडेक की सीढ़ी पर सशस्त्र पहरा लग चुका था। केबिन में और जहाज के सामने ऊपरवालेडेक पर ऊँचे गद्दे बिछ गए थे। अभी राजा साहब नहीं आए। एजाज की गाड़ी आई। गुलशनने उतरकर गाड़ी का दरवाजा खोला और कब्जा पकड़ा; सहारे के लिए बाँह की रेलिंगबन गई। एजाज उतरी। लोगों की आँखें जम गईं। रूप से हृदय भर गया। आज का पहनावामोरपंखी है। साड़ी का वही रंग, वही बूटे, फ़रमाइश से तैयार की हुई। ज़मीनसुनहरे तारों की। सिर के कुछ बाल मोर की चोटी की तरह उठे हुए; हर डाँड़ी परहीरे की कनियों के साथ नीलम बँधा हुआ। पैरों में कामदार मोती-जड़ी जूतियाँ।उतरकर एजाज मोर की ही चाल से चली। जेट्टी की एक बगल पुलिस का सिपाही खड़ा था।सलाम किया। जेट्टी और नीचेवाले डेक पर राजा के लोग खड़े थे। देखकर खुश हुए, परमुँह फेरकर दूसरे को सुनाकर गाली दी। एजाज दूर थी। चलती हुई पास आई। लोगों नेरास्ता निकाल दिया। डेक पर जाने की काठ की सीढ़ी लगा दी। उस डेक से दूसरे तलेकी सीढ़ी पर वह चढ़ने लगी। सिपाही ने रानी साहिबा को सशस्त्र सलामी दी। हाथउठाकर, एजाज ऊपर गई। गुलशन ने पूछा, "कहाँ रहिएगा?"
"केबिन में, जब तक राजा नहीं आते।""लोग अड़े हैं, कुछ उनका भी खयाल...?" कहते हुए गुलशन ने केबिन का दरवाजा
खोला।"अभी साड़ी और पहनावा देख रहे हैं," कहती हुई एजाज केबिन में चली गई, "जब आदमीको देखेंगे, तब तू ही ठहरेगी। इस पहनावे से तो नहीं घिसटते?" एजाज ने गुलशन कीसाड़ी का छोर खींचा। गुलशन मुस्करा दी। "अच्छा चलो, केबिन के सामनेवाली कुर्सीपर बैठो जरा देर।""मैं कहती हूँ, राजा साहब के आने पर डेक पर महफिल लगेगी।"
"तू राजा साहब बन जा, मैं शीशा और प्याली ले लूँ।"गुलशन भग गई। दूसरी तरफ से बाहर निकली और कुर्सी पर बैठ गई।
कोच-बाक्स की बग़ल में बैठे सिपाही ने पेटियाँ उठवाकर एजाज के केबिन में लगवादीं। चलते वक़्त की सलामी दी। एजाज ने गुलशन से बीस रुपए ले लेने के लिए कहा।5) खुद ले, 5) कोचमैन और साईस को दे, 5) डेक के पहरेदार को, 5) पुलिस के
सिपाही को।सिपाही के चले जाने पर गुलशन को भेजकर राजा साहब के एक खिदमदगार से मालूमकिया, राजा साहब और पुलिस के सिपाहियों को क्या इनाम मिला।जेट्टी पर जहाज के ठहरने का तीन मिनट समय रह गया, राजा साहब की गाड़ी आई।सिपाहियों और नौकरों पर अदबी सन्नाटा छा गया। रफ्तार के बढ़ने पर भी शोोगुलका नाम न रहा। शान के क़दम उठाते हुए जेट्टी से गुजरकर राजा साहब ने डेक परचढ़नेवाला पीतल का चिकना डंडा पकड़ा। एक बगल, साथ आए हुए सशस्त्र अर्दली औरसीढ़ी के पहरे दार ने खड़े होकर बंदूक की सलामी दी। राजा साहब सीढ़ी से चढ़े।ऊपर के डेक पर, जहाँ सीढ़ी खत्म होती है, एजाज खड़ी थी। उसके पीछे गुलशन। एजाजने ललित सलाम किया। राजा साहब ने हथेली थाम ली। दोनों साथ-साथ सामने बिस्तर कीओर बढ़े। गद्दे पर पहले एजाज ने पैर रखा। दोनों तकिए लेकर बैठे। राजा साहबअतृप्त आँखों से एजाज का खुलता हुआ रूप और पहनावा देखते रहे। जरा देर के लिएसेक्रेटरी आए। राजा साहब ने पुलिस के लिए कहकर जहाज खोल देने की आज्ञा दी।जेट्टी से बँधी हुई जहाज़ की मोटी रस्सियाँ और लोहे की साँकलें खोली गईं।जहाज़ घूमा। फिर हुगली नदी से होकर दक्षिण की ओर चला। ऊपर के पीछेवाले हिस्सेमें सेक्रेटरी, कुछ कर्मचारी और ऊँचे पदवाले के अफसर बैठे। एजाज हुगली मेंबँधे हुए अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और अमेरिकन बड़े-बड़े जहाज़ देख रही थी औरउनसे होनेवाले विशाल व्यापार पर अंदाजा लगा रही थी। मधुर दखिनाव के तेज झोंकेलग रहे थे। दिल को कोई रह-रहकर गुदगुदा रहा था। जहाज़ फोर्ट विलियम किले केपास आया। किनारे लड़ाई के दो जहाज़ बँधे थे। इनकी बनावट दूसरी तरह की थी। रंगपानी से मिलता हुआ। एजाज ने चाव से इन जहाजों को देखा। एक नजर हाईकोर्ट कीविशाल इमारत पर डाली। एडेन गार्डेन की याद आई, यहाँ हवाखोरी के लिए वह बहुत आचुकी है। यह एक शिकारगाह भी है। शाम को शहर के रईस बड़ी संख्या में आते हैं,टहलते हैं और बेण्ड सुनते हैं। जहाज़ तेजी से बढ़ने लगा।
राजा साहब ने घंटी बजायी। एक बेयरा आया।"लाल पानी," राजा साहब ने बेयरा से कहा।बेयरा शेम्पेन की बोतल, बर्फ, छोटा टंबलर और पेग ट्रेपर लाकर रख गया। गुलशनएजाज की बग़ल में बैठकर टंबलर में बर्फ और शेम्पेन मिलाने लगी। पाचक ब्राह्राणकटलेट, चाप और कबाब चाँदी की तश्तरियों पर रख गया। कहकर ट्रे पर ढक्कनदारचाँदी के गिलासों में पानी ले आया। रखकर तौलिया लेकर खड़ा रहा। गुलशन ने दोपेग भरे। एक हाथ में रखा, एक बढ़ाकर एजाज को दिया। एजाज ने पेग चूमर राजासाहब के हाथ में दिया, फिर अपना लिया। गुडलक हुआ। दोनों पीने लगे।प्रायः एक डजन पेग थे। ये पिया पेग एक ही बैठक में नहीं इस्तेमाल करते। गुलशनतीसरा और चौथा पेग तैयार करने लगी। पेग खत्म करके राजा साहब ने हाथ बढ़ाया।बेयरा ने पकड़ लिया। एजाज ने भी बढ़ाया।
गुलशन ने तीसरा दौर तैयार करके, चाँदी की पेग रखनेवाली रिकाब में लगाकर दोनोंके बीच में रख दिया। दोनों, मौसम, गंगा, शिवपुर के बगीचे, हवा आदि का जिक्रकरते हुए, साथ-साथ नाश्ता करने लगे।दूसरा दौर भी समाप्त हुआ; तीसरा भी हुआ। नशे का प्रभाव बढ़ने लगा। दोनों केहाथ धुला दिए गए। गिलोरी और सिगरेट की तश्तरियों को छोड़कर नौकर और कुल चीजेंउठा ले गए। फिर केबिन के पास के पर्दे, आड़ के लिए खोलकर, रेलिंग के डंडों केसाथ बाँधने लगे। कीमती हारमोनियम लाकर रख दिया। गुलशन को छोड़कर और सब बाहरनिकल गए।
"कुछ सुनने की तबियत हो रही है।" राजा साहब ने प्रेम से कहा।एजाज ने गुलशन की तरफ देखा। गुलशन ने पीकदान बढ़ाया। पान थूककर एजाज ने कहा,"तेज हवा है। आवाज उड़ जाएगी।" कहकर हारमोनियम खोला।"तुम्हारा गाना है, हारमोनियम हो, पियानो या सितार-इसराज, छाकर रहेगा।" राजासाहब ने सहृदय स्वर से बढ़ावा दिया। एजाज हिली।पर्दे पर उँगली रखी। कहा, "मयकशी के बाद आवाज पर काबू नहीं रहता।" कहकर स्वरनिकाला। राजा साहब तद्गतेनमनसा ध्यानावस्थित हुए।एजाज की मधुर आवाज निकली। जहाज-भर के लोग, नीचे और ऊपर के, कान लगाए रहे। गाना
शुरू हुआ।-"हर एक बात प' कहते हो तुम कि तू क्या है,कहो कि यह अंदाजेगुफ्तगू क्या है?जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा,कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है?रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?"लोगों पर सच्चा जादू चला। सभी ने दिल दे दिया, वही दिल जो हाथ से छूटकर मजबूतीसे हाथ पकड़ता है। छोटे-बड़े सभी उसके भक्त हो गए। कोयला-झोंकनेवाले एक झुक्कीझोंककर नीचे से डेक पर चढ़ आए। श्रम को हल्का कर लिया। सोचा, वह कौन-सा स्वरहै जो दिल पर अपनी पूरी-पूरी छाप लगा देता है? खड़े लोगों में क्षण-भर के लिएविषमता नहीं आई; किसी बड़प्पन के कारण या पैसा होने की वजह गायिका का कंठ इतनामधुर है, यह वे नहीं सोच सके; विरोध का क्षण ही मिट गया। उन पंक्तियों के लेखकमहाकवि गालिब समय के सताए हुए और गानेवाली एजाज समय की संस्तुत, फिर भी दोनोंमें साम्य ! यह किसी अधिकार की बात न होगी। अधिकार से वस्तु, विषय या बात इतनीसुंदर नहीं बनती, ऐसी पूरी नहीं उतरती। यह वह अधिकार है जहाँ अधिकार ढीला है।विलासी राजा एकटक उस सच्चे रूप और स्वर को देखते-समझते रहे। कुछ देर एजाज नेदम लिया। निगाह उठाई। भरा पेग उठाकर राजा साहब को दिया। खुद एक लौंग दबाई। दोकश खींचकर पीकदान में डाल दी और हारमोनियम संभाला।एक ठुमरी गाई :-
"जाने दे मोको सुनो सजनवा,काहे करत तुम नित नित मोसन रार,नहीं, नहीं मानूँगी तिहार।
छेड़ करत, नहीं मानत देखो री सखि,मेरी सुनै ना,बिंदा करत अब नित नित मोसन रार,
नहीं, नहीं मानूँगी तिहार।"अभी दुपहर नहीं हुई। भैरवी का वक्त पार नहीं हुआ। श्रीश राजा साहब को गंभीर,और चलते हुए जहाज़ के सिवा कोई आवाज न आती हुई देखकर एजाज समझ गई-लोग कान लगाए
हुए हैं। वह खुशी से भर गई।एजाज ने छेड़ा :
"यामिनी न येते जागाले ना केन
बेला होल मरि लाजे।
शरमे जड़ित चरणे केमने
चलिब पथेरि माझे।
आलोक - परशे मरमे मरिया
हेर लो शेफालि पड़िछे झरिया
कोनो मते आछे पराण धरिया
कामिनी शिथिल साजे।
निबिया बांचिल निशार प्रदीप
ऊषार बातास लागि,
नयनेर शशी गगनेर कोने
लुकाय शरण मागि।
पाखी डाकि बले गेल विभावरी,
वधू चले जले लइया गागरी,
आमिओ आकुल कवरी आवरि
केमने याइब काजे।"
रवींद्रनाथ का गीत; कलकत्ता का आधुनिक फैशन एजाज ने सच्चा अदा किया-वहीउच्चारण, वही अंग्रेजियत। राजा साहब पर और आधुनिक शिक्षित बंगालियों पर इसीस्कूल का सबसे अधिक प्रभाव है, रवींद्रनाथ के गानों में स्वर का सबसे अधिकमार्जन मिलता है। राजा साहब की आँखों के सामने गंगा के शुभ्र फेन की तरह गीतका अस्तित्व तैरने लगा।
एजाज ने हारमोनियम हटा दिया। एक पेग और उठाकर राजा साहब को दिया, एक खुद लिया।शराब, बातचीत और गाने के बीच एजाज देखती जाती है, मटियाबुर्ज पार हुआ-शाहवाजिद अली का कारागार, तेल का केंद्र बजबज पार हुआ, उलूबेड़िया पार हुई, कितनीही मिलें निकल गईं, जिनका अधिकांश मुनाफा विदेशियों के हाथ जाता है। एजाजअंग्रेजी जानती है, संवाद-पत्र पढ़ती है, दूर निष्कर्ष तक आसानी से पहुँच जातीहै, संपादक की टिप्पणी पर टिप्पणी लगा सकती है।गुलशन राजा साहब को सिगरेट और पान देती जाती है। गाना बंद करके एजाज ने सिगरेटके लिए उँगली बढ़ायी। गुलशन ने हीरे की पाइप में सिगरेट लगा दिया। एजाज पीनेलगी।"तुम्हारे नहाने, भोजन और आराम करने का वक्त हुआ।" राजा साहब ने कहा।"पूजा करने की बात छोड़ दी? " एजाज ने बड़ी-बड़ी आँखें मिलाईं।"वह दिल में होती रह गई।""उसने मिला भी दिया।"राजा खामोश हो गए। एजाज ने कहा, "तुम उठो। नहाना मत। तवालिया गर्म पानी से निचोड़कर बदन पोंछवा डालो, धोती बदल दो। शराब पर नहाना !"राजा साहब उठ गए। एजाज बैठी हुई, नदी की शुभ्र शोभा, श्याम तटभूमि देखती रही।