प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत से हैं। श्री
रघुनाथजीवाली छत से, जल भरनेवाले कहारों से, दिलावर पानी चढ़वा लेता है। उसी जीने से दिन रहते-रहते नौकर और पाचक एक दफा बाहर की हवा खा आते हैं।
मुन्ना जमादार से मिली। जमादार के होश फाख्ता थे। राजा को बुआ के गायब होने की खबर नहीं दी गई।
मुन्ना को देखने पर साथी का बल मिला। रास्ता निकालने की सोची। पूछा, "क्या इरादा है?"
मुन्ना ने कहा, "बुआ लापता हैं, यह सबसे खतरनाक है।"
"क्या तअज्जुब, रुस्तम ने उड़ा दिया हो।" जमादार ने कहा।
"हो सकता है, मगर बात झूठ भी हो सकती है। पहले पता लगा लेना चाहिए। एक बात जँचती है। उधर एक आदमी रहता है। वह कोठी में ही रहता है। वह कौन है, उसका हाथ हो सकता है।"
हाँ," जमादार सँभले, "राजा का गुप्त रूप है, यह रामफल से सुना है। उन लोगों की आमदरफ्त दूसरी है। वहाँ पुजारीजी का हाथ है।"
"तुमको यह नहीं मालूम, रहनेवाला काला है या गोरा है?"
जमा.- "या एक है या तीन, नहीं।"
मुन्ना-- "एक दूसरी शाख है?"
जमा.- "हां।"
मुन्ना- "माई के लाल बहुत हैं।"
जमा..- "अब बचना कठिन है।"
मुन्ना- "जहाँ तक हो आँट पर न चढ़ो।"
जमा.- "कैची काटती हो?"
मुन्ना- "हमारे ही साथ सती होना है।"
जमा.- "तभी तो कहा, कैंची काटती है।"
मुन्ना- "बस, अब साथ न छोड़ो। अगर भगें तो साथ।"
जमा.- "रास्ता और क्या है? इतनी बड़ी चोरी के बाद गाँव में क्या मुँह
दिखावेंगे और क्या पुलिस के हाथ से बचेंगे?"
मुन्ना-"हमारा प्रेम ही ऐसा है। पति को खा गई।"
जमा.- "हमारा ही कौन कमजोर है?"
मुन्ना-. "इस आदमी का पता लगाना है। जमादार अब ताकत बाहर की आ गई है। खतरा
बहुत है। हमारे पास धन है, लेकिन इसको इस रूप में हटाकर हम बहुत दिन खा नहीं
पाएँगे। सहारा लेना है। कुछ मददगार बनाने हैं।"
जमा.- "हाँ।"
मुन्ना- "राजा का रवाना होना मतलब से खाली नहीं।"
जमा.- "कुछ लगाया?"
मुन्ना- "ख़ज़ांची की तरफ की कोई कार्रवाई होगी। इसका भी, जिसके लिए मैं कह
रही हूँ, कोई हाथ हो सकता है।"
जमा.- "हमारी हैसियत तो इतनी ही है। पहले तो यह कि नंबरी नोट चलाए नहीं
चलेंगे। दूसरे, इतना रुपया हज्म करनेवाला हमारा पेट नहीं।"
मुन्ना- "मगर रुपयों के साथ अब जान पर ही खेलना है, यानी जान रहते रुपए न
जायँ, और जायँ तो हम दुनिया भी दूर तक देख लें। इतने रुपयों से इतना भेद खुल
सकता है। सिर्फ पकड़ में नहीं आना।"
जमा.- "अब हमको बयान बदल देना है।"
मुन्ना- "हाँ, तभी बचाव है।"
जमा.- "संदूक गाड़ दिया गया। ताली फेंक दी गई। बीजक अपने पास ही है। उसमें
लिखा है। क्यों री, तू इतनी भी बँगला नहीं पढ़ी कि मालूम हो जाए कि
कितने-कितने के नोट हैं?"
मुन्ना- "यह मालूम हो जाएगा। दम कहाँ मिला? मगर खर्च बहुत होगा?