ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जवानी है। हरियाली का निखार। मुन्ना कोठी की बग़लवालेरास्ते से गुजर रही है। रुपया रखा है, दूर से निगरानी रखती है। कई दफे वहअँधेरी कोठरी देखती है। सदर की तरफवाले घाट की बग़ल से, किनारे-किनारे जो सड़कदूसरे घाट को जाती है, उसी पर टहलती हुई। प्रभाकर को दूसरे किनारे से कोठी कीतरफ चलते, फिर कोठी के भीतर चले जाते देखा। पेड़ों की आड़ है और सिंहद्वार सेदूर है। अंदर महलवाली दासी के लिए कोठी के दूसरे किनारे तक बढ़ जाना, अंदेशेके वक्त, स्वाभाविक है। उसकी प्रभाकर पर नज़र पड़ी कि तेजी आई। चौकन्नी हुई।
अपने में पूछा। किसी को उधर से जाते नहीं देखा। वहाँ जीना है, नहीं मालूम। कभीगई नहीं। कोठी का उधरवाला हिस्सा नहीं दिखा। प्रभाकर को किनारे से भीतर जाते देखा। खजांची अभी नहीं आया। आएगा, कुछ ठहरकर चलेगी, राह पर मिलेगी। पूछना और कामलेना है। छिपी भी है, देखती भी है। यहाँ से सिंहद्वार और वह रास्ता नहीं देखपड़ता। अनुमान है, वक्त पर लौट पड़ेगी। सजग है-खजांची लौट न जाए।खजांची बेचैन है। घटना घट चुकी। बीजक जमादार के हाथ पड़ा। परदा फ़ाश हुआ। बँधगए। सरकारी आदमी की शरण ली। काम कर रखने की ठानी। एजाज से बातचीत करानी है।
राज लेना है। निचले वर्ग की औरत से मदद चाहिए। मुन्ना आँख के सामने आई। सहारामिला। आखिरी हिम्मत बाँधी कि इस जाल से छुट जाएँ। सरकार की शिरकत के ख्याल ने पाया जमाया। जटाशंकर से मिलना आवश्यक है, खजांची यथासमय आए। खजाने की तिजोरियाँ खोलीं,बीजक देखे। जटाशंकर भी खड़े हुए देखते रहे। चपरासी के संदूक बंद करने पर
खजांची से जटाशंकर ने पूछा, "ठीक है?"
"ठीक है।" गंभीर अप्रसन्नता से ख़ज़ांची ने कहा। जटाशंकर सिपाही की गवाही तैयार कर रहे हैं। दोस्ती रही लेकिन बीजक छिन गया है। बस नहीं। फँसे हैं। बचकर चले।
जमादार काम ले गए, खजांची से उतरते-उतरते न सहा गया। कहा, "जमादार, क्या यह गवाही अलग से पेश होगी?"
सिपाही समझ गया। पूछा, "कैसी गवाही?" बातें इधर-उधर सुन चुका था। खजाने की बातचीत ने जड़ जमा दी। खजांची के सामने सिपाही ने कहा, "मैं समझ गया।" तेज पडकर खजांची ने कहा, "नहीं सुना? हमने कहा, ठीक है।"
"बादवाली बातें भी?" सिपाही ने फिर सवाल किया। जमादार ने कहा, "हम सधे होते तो पूछते क्यों? सवाल मत करो।"
मगर सिपाही का भूत न उतरा, शंका-समाधान न हुआ। छुटकारा भी न था। खजांची ने निकलते हुए धीरज दिया, सब लोग एक ही राह से गुजरेंगे। जहाँ आपकी गवाही होगी, वहाँ हम भी होंगे। सिपाही खड़ा रहा। जमादार और खजांची साथ निकले। रास्ते रास्ते निकल गए। सिंहद्वारवाले घाट से कुछ फासले पर एक कुंज में बातचीत करने लगे। मुन्ना ने देखा। छिपकर बातचीत सुनने के लिए, रास्ते के किनारे की मेंहदी की पेड़ों से बचती हुई पास पहुंची। खजांची से मिलने का मुकाम कुछ आगे है। जटाशंकर की नाड़ी
छूट रही थी। पूछा, "क्या खबर है?"
खजांची ने कहा, "अभी दो रोज़ मत बोलो।"
"तब तो हमारी नौकरी चली जाएगी।"
"तब और नहीं बचेगी। पहले की बातें भी हमसे बताओ।"
"आप यह बताइए कि आगे की कार्रवाई क्या होगी।" जटाशंकर ने पूछा।
मुन्ना समझ गई, इन दोनों का मेल मिल चुका है। कारण समझ में न आया। जमादार के
रपोट करने के विचार से डरी। पर जमी बैठी रही।
"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, जमादार।" खजांची ने लाचार होकर कहा।
"अब हमारे मान की बात नहीं।"
"जमादार, सिर्फ़ इस कोठे का धान उस कोठे गया है। दबा जाओ।"
"दबा कहाँ से जायँ?"
जमादार रिपोर्ट न कर दे, इस डर से मुन्ना निकली। मिलने की ठानी। मेंहदी के किनारे से सड़क पर आ गई।
एकाएक उसके पहुँचने पर दोनों त्रस्त हुए। उसने कहा, "सिपाही की ओर से मेरी गवाही होगी।"
खजांची सकपका गया। जटाशंकर अपने बीजक की ढाल से तलवार झेल जाने को तैयार था।
मुन्ना ने कहा, "मेरा हाल दोनों को मालूम है। हम तीनों का मिलना था। क्योंकि रानीजी हैं। रानी और राजा मिल गए। रुपया हमी लोगों में है, हमी लोगों का है।
मिल्लत से चलना है, क्योंकि हमको बचना है। सिपाही को हम समझा लेंगे। क्या कहते हो जमादार?"
जमादार का बीजक-बल घट रहा था। चुपचाप खड़े थे।
मुन्ना ने सोचा, परदाफाश हुआ तो बुरी हालत होगी, रिश्वत दे दी जाएगी तो अभी मामला दबा रहेगा। कहा, "रानीजी जल्द आज-कल में रुपया देनेवाली हैं। आप लोग रानी के तरफदार रहिए। यह काम इसीलिए किया गया है। राजा के कान में बात पड़ जाएगी तो बाँसों पानी चढ़ेगा। मामला बहुत बढ़ेगा। नौकरियाँ जाएंगी। पुलिस के हाथ गया तो सजा की नौबत आएगी। हमी लोग बँधेंगे। रानी और राजा को कुछ नहीं होगा। संगठन रहेगा तो मजे में चलेंगे, क्या कहते हैं?"
"इससे अच्छी और कौन-सी बात है?"।
जटाशंकर ने भी खजांची की बात दुहरायी।
मुन्ना ने कहा, "जमादार, अब तुम चलो, उस सिपाही से मैं बातचीत कर लूँगी। यह
बात हम तीनों की रही। रानी साहिबा से तुम मिल नहीं सकते।"
जमादार चलने को न हुए, फिर कुछ कहना चाहा, मुन्ना ने बीच में खुलकर कहा, "अब
चलो जल्द, यह मालूम नहीं-ये रानी साहिबा के क्या हैं और होंगे?"
जटाशंकर चले। रास्ते पर सोचा, 'राजा को बीजक लेकर न दिखायें। पहले का हाल कहना
होगा; नहीं मालूम, मामला पल्टा खाय। जाने दिया जाए।'