दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब चड्ढी गठगई।" बाहर निकलकर कहा, "अब, बेटो, साल-भर इनके सिर चढ़े घूमो। फिर यही बँधे यातुम। तुम न बँधोगे। यह फँसेगा नया थानेदार। अब चलो, शराब पिला दो, और जल्द इसहल्के से कुछ कमा लो।" ग़नी ने रुस्तम से कहा, "दाम दे दे। उस्ताद खरीदलेंगे।" रुस्तम ने पाँच रुपए का नोट उस्ताद कमर को दिया।कमर को मालूम था, एजाज शरीफ़ है, शहर में उसकी इज्जत है, गाने में लासानी,उसके खाते में दर्ज है- पहला नाम, इनाम भी देती जाती है हर महीने बीस रुपए।सोचा, अच्छे-खासे रईस की हैसियत उसकी, 400) महीने का अंग्रेजी-पढ़ा सिकत्तररखे है, यह थानेदार चपेट में आएगा। मामला जैसा भी हो, मालूम हो जाएगा। सोचता,लापरवाही से साथियों के साथ बढ़ता हुआ, देशी शराब की दुकान की तरफ मुड़ा औरभीतर घुसकर दो आदमियों से दो बोतलें खरीदी, तब सस्ती थीं। वहाँ से बाजार कीतरफ चला।एजाज, देखते-देखते मशहूर हो गई। वह एक बड़े तवायफ़ की बेटी है। शिक्षा क़ायदेसे हुई है। उर्दू, बंगला और अंग्रेजी अच्छी जानती है। गाने-बजाने की भीबड़े-बड़े उस्तादों से तालीम मिली है। नए -पुराने दोनों तरह के गाने जानती है।
बेजोड़ सुंदरी। गोराई काफी निखरी हुई। उँगलियाँ, हाथ, पैर, गला, नाक, आँखें,भौंहें, सब लंबी-लंबी, जैसे चंपे की कली। पहनावा भी वैसा ही लंबा।प्रांत-प्रांत और देश-देश का पहनावा करने वाली। उम्र 30 साल की होगी। साल-भरसे राजा राजेंद्र प्रताप की नौकर है। दो हजार महीना लेती है। साथ बाहर भी जातीहै और राजधानी भी। राजधानी में उसके लिए अलग बंगला है। कुछ महीनों से राजासाहब ने दूसरी महफिल का गाना रोक दिया है। कलकत्ते में उसकी अपनी आलीशान कोठीहै। चारों ओर लान, बगीचा। फौवारे लगे हुए। गुलाब और ऋतु-पुष्पों के पेड़।पत्थर की परियों की नंगी मूर्तियाँ। गाड़ी बरामदा। नीचे और ऊपर सजी हुईबैठकें। विभिन्न प्रकार के साज। सुंदर-सुंदर तैलचित्र। फाटक पर संतरियों कापहरा। दास और दासियाँ।गाड़ी-बरामदे की ऊपरवाली छत पर फलों के टब रखे हुए हैं। मेज पर दस्तरखान बिछाहुआ है। गुलाब की सजी फूलदानी रखी हुई है। गिलास में रोजेड बर्फ-मिला रखा है।अभी लाल फेन नहीं मिटा। सूरज डूब चुका है, फिर भी उजाला है। सड़क के आदमी देखपड़ते हैं। मंद-मंद दखिनाव चल रहा है। एक-एक झोंके से कविता आकर गले लगती है।एजाज बैठी हुई गिलास के फूटते हुए फेन के बुलबुले देख रही है। रसीली आँखों से,मालूम नहीं कौन-सा विचार लगा हुआ है। एक कनीज खड़ी हुई आज्ञा की प्रतीक्षा कररही है।
इसी समय यूसुफ फाटक पर देख पड़े। एजाज ने देखा, फिर आँखें फेर लीं। यूसुफ नेएजाज को नहीं देखा। संतरी के पास कुछ सिकंड के लिए खड़े हुए। मिलना चाहते हैं,कहा। संतरी ने सिर हिलाकर भीतर जाने का इशारा किया। यूसुफ निकल गए। पोटिकों सेबरामदे पर गए। कुर्सियाँ रखी थीं। एक बेयरा खड़ा था। आदर से बैठने के लिए कहा।यूसफ बैठे। बेयरा ने कार्ड माँगा। कार्ड यूसुफ के पास नहीं था। उन्होंने कहा,सरकारी काम है।रंडी सरकारी काम में आ सकती है, कोई बड़ा काम होगा, जो मर्दों का किया हुआनहीं पूरा हुआ, सोचता हुआ वह सिकत्तर के कमरे में गया। "खबर दी, एक साहबतशरीफ़ ले आए हैं," कार्ड माँगने पर कहा, "सरकारी काम है।"सेक्रेटरी का खास वक्त यही है, शाम के चार से रात के दस तक। इसी वक्त वह आफिसकरते हैं। पत्रों के जवाब लिखते हैं, मिलने वालों से बातचीत करते हैं। अपनेकमरे से उठकर बाहर आए। यूसुफ साहब से हाथ मिलाया। पूछा, "जनाब का नाम?""हाँ, एक है, मगर इस वक्त तो यही कि हम सरकारी।"
सेक्रेटरी कुछ सिकंड देखते रहे। पूछा, "क्या हुक्म है?""हम मालिका-मकान से मिलना चाहते हैं।""उस वक्त दूसरा भी कोई होगा?" "नहीं।""यह नहीं हो सकता। आपको अपना कुछ पता देना होगा अगर आप अपना नाम नहीं बतलानाचाहते। फिर किस सरकारी काम से यहाँ आने की जहमत गवारा की, फर्माना होगा औरमुझसे। मैं उनसे अर्ज करूँगा, फिर उनका जवाब आपको सुनाऊँगा।""यह ऐसा काम नहीं।""मान लीजिए, वह नौकर हैं, खातून की हैसियत से रहने की कैद है ।
"आप पहले फर्मा चुके हैं, कोई दूसरे रहेंगे तो मैं उनसे बातचीत कर सकता हूँ।फिर कहा, मैं आपसे कुल बातें कह दूँ, आप जवाब ला देंगे अपना नाम या पता बतानेके बाद। यह शायद किसी खास दरजे की खातून के बर्ताव में आता है?"गुस्ताखी मुआफ फर्माएं। रंडी का मकान समझकर कितने ही लुच्चे आते हैं। हमेंपेशबंदी रखनी पड़ती है। सरकारी काम की पाबंदी हमें कुबूल है, लेकिन वह कैसासरकारी काम है, यह आप उन्हीं से कहेंगे, मैं उनका सेक्रेटरी हूँ, मुझसे नहीं;मेरे सामने भी आपको कहना मंजूर नहीं। ऐसी हालत में भी आपको लुच्चा न समझकरसरकारी काम से आया हुआ अफसर समझूँ। मैंने कहा, वह नौकर हैं, खातून की तरह रहतीहैं। इस पर भी आपने एक तुर्रा कस दिया। एक भले आदमी की तरह इतना मझने कीतकलीफ भी आपको गवारा नहीं हुई कि जिन्होंने मालिका-मकान को नौकर रखा है,उन्हें उनकी बेपर्दगी पसंद न होगी, दोनों में नौकरी की शर्तें होंगी।""मैं समझा। अफसर को गाली आपने दी। अफसर क्या है, यह आपको अच्छी तरह मालूम
होगा। अफसर इस तरह नहीं आता, न यों जवाब देता है। वह अपनी जगह पर बुलाएगा औरनौकरी की कुल शर्तों को तोड़कर खातून साहिबा को चलकर मिलना होगा। उस वक्त हमकुछ ऐसी तैयारी ला देंगे कि खातून साहिबा उम्र-भर याद रखेंगी। हम कोई हैं औरदर्ज होकर आए हैं। लौटकर कुछ लिखेंगे और भेजेंगे। आप सिकत्तर हैं, इसलिए मिलसकते हैं, और हम सरकारी काम से आए हैं, इसलिए नहीं मिल सकते। आपको खौफ है,जैसे हम कोई चाकू लिए हुए हैं और उनकी नाक काट लेंगे।"यूसुफ की दहाड़ से सेक्रेटरी साहब दबे। कहा, "हमें जैसी हिदायत है, हमने आपसेअर्ज कर दी।"फिर सँभलकर बोले, "अफ़सर जब बुलाएँगे, तब लिखकर बुलाएँगे या अपने नाम से आदमीभेजकर। मेरी समझ में नहीं आता, अफसर का बुलावा खुफिया तौर से कैसे होगा। फिर,जवाब मुख्तार आम से भी दिया जा सकता है या इन्हीं को हाजिरी बजानी पड़ेगी?"
"आप यह नहीं समझे कि सरकार मुख्तार आम का पेश होना मंजूर कर भी सकती है औरनहीं भी। आप जैसी बातें कर रहे हैं, इनसे उलझन बढ़ती है। नतीजा साफ है, आपकेहक में कैसा होगा। तैयार रहिए।""हम इतना जानते हैं, कई हजार रुपए हम इनकम-टैक्स देते हैं; सरकार की निगाह मेंइसकी इज्जत है। फिर आपको कुल माजरा समझा दिया गया है। एक प्रोविन्शल मेरे साथभी है। अच्छी बात, अब मैं आपसे समझूँगा। तैयार रहिए। आप अपना भेद नहीं बतानाचाहते, मैं कहता हूँ, बगैर कुछ भेद दिए आप बचकर नहीं निकल सकते।"थानेदार घबराए। फिर हिम्मत बाँधकर कहा, "हम जब यहाँ आए, समझिए, रत्ती-रत्तीहाल मालम करके। हम अंधे नहीं। सच, आपके मकान का ठाठ आपकी हैसियत बयान कर रहा
है। मगर हमारी बात मानिएगा तभी फायदा उठाइएगा, सरकार के यहाँ नेकनामी लिखीजाएगी।""जब तक हमें इसका गुमाँ भी न होगा कि आप कौन हैं, हम आपके साथ लगे-लगाएरहेंगे। उधर हमारे पैर तभी उठ सकते हैं जब हमें कुछ राज मिल जाएगा।""इस तरह से मिलने एक ही महकमे के आदमी आते हैं। नाम वह भी नहीं बताएँगे,सिर्फ काम बतला जाएँगे। कर दिया तो नेकनामी, न किया या धोखा दिया तो इसकी सज़ाहै। समझिए-हम-पुली...।" "आप जो काम बतला जाएँगे, उसका हासिल मालूम करने के लिए आप ही आएँगे या कोईदूसरे?"
"हमीं आयँगे; मुमकिन, और आदमी हमारे साथ हों। बाद को, गिरह पड़ गई तो बड़ेसाहब भी आ सकते हैं।"सेक्रेट्री उठकर अपने कमरे में गया। दिन, तारीख, मास, साल, समय और पुली के नामसे कही हुई उस आदमी की कुल बातें उसकी शक्ल के वर्णन के साथ लिख लीं। एकसिपाही को बुलाकर कहा, "तुम दो-तीन छिपे तौर से इस आदमी का हाल मालूम करो,
पूरा पता ला सके तो इनाम मिलेगा। आदमी बरामदे में बैठा है। कोई छेड़ न करना।"फिर बाईजी के पास खबर भेजी कि जरूरी काम से मिलना है। एजाज ने बुला भेजा।सिकत्तर साहब गए। उसने मेज़ की बगलवाली कुर्सी पर बैठाला। सिकत्तर बैठकर एक-एककरके कुल बातें संक्षेप में सुना गए।एजाज कुछ देर तक सोचती रही। फिर पूरे इतमीनान से कहा, "सिकत्तर साहब, एक राजऔर लीजिए। कहिए, वह बातचीत करने के लिए तैयार हैं अगर उस बातचीत में राजा साहबका नाम नहीं आया। गुलाबबाड़ी में एक मेज़ और दो कुर्सियाँ डलवा दीजिए।"नौकर से कहकर सिकत्तर यूसुफ के पास आए। कहा, "बाईजी आपसे बातचीत करेंगी, शर्तएक रहेगी, आप राजा साहब के बारे में कोई बात न उठाएँगे।""हम किसी शर्त पर बातचीत न करेंगे," यूसुफ ने पुतलियाँ पलटकर कहा।सिकत्तर फिर एजाज के पास गए। सुनकर एजाज ने कहा, "आप समझे? - उन्हीं की गरदननापी जाएगी। हमारा और इनका कहना लिख लीजिएगा। हम नीचे चलते हैं। लिखकर सभ्यता
से उन्हें भेज दीजिए; गुलशन ले आएगी। आदमियों से कह दीजिएगा, होशियारी रखें।"एजाज गुलाबबाड़ी में आकर बैठी। सिकत्तर ने लिखकर यूसुफ से आकर कहा, "सरकार कीफतह रही। गुलाबबाड़ी में हैं। तशरीफ ले चलिए।" गुलशन की तरफ हाथ उठाकर कहा,"यह ले जाएगी।"गुलशन यूसुफ को ले चली। गुलाबबाड़ी में एजाज ने नसीम को कीमती साड़ी पहनाकरबैठाला था। बगीचे की शोभा देखते हुए यूसुफ चले। अंधेरा हो आया था। कुछ दूर एकगैस की बत्ती जल रही थी।