मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर में खोंसे हुए है।
अनानास के झाड़ की बगल में मौलसिरी का बड़ा पेड़ है, तने के चारों ओर कमर-भरऊँचा पक्का गोल चबूतरा बँधा हुआ है। दायीं ओर कुछ दूर तालाब, पीछे और बायीं ओरऊँची चारदीवार, सामने कोठी; वही जगह जहाँ प्रभाकर रहता है। मुन्ना देर तक बैठीहुई बरामदे पर आँख गड़ाए हुए बुआ को फूल-पत्तियों की बातचीत में बहलाए रही।
प्रभाकर के बरामदे पर एक चिड़िया न दिखी। बुआ से उसने कहा, "कैसा समय है?"
"बहुत अच्छा।"
"क्या चाहता है जी?"
"बहुत कुछ।"
"सबसे पहले क्या?"
"हमको लाज लगती है। हमरा जी कुछ नहीं चाहता। जब भाग फूट गया, तब चाह कैसा?"
"यह तो हमारे लिए भी है। लेकिन न जाने क्यों, चाहना पड़ा, भाग को जगाना पड़ा।"
बुआ का ब्राह्राणत्व ज़ोर मारने को था, मगर सँभल गईं। कहा, "जैसा कहा जाता है,
वैसा करती ही हूँ।"
"हमको रानीजी की हैसियत से कहना पड़ता है। तुम यह समझ चुकी कि पीछा नहींछूटता। तुमको ऐसा करना चाहिए कि पीछा छुड़ाकर मर्द भागे।"
"अच्छा नहीं जान पड़ता। परमात्मा के घर जाना है। जी को बेपरदगी पसंद नहीं। लाजबड़ी चीज है। दूसरा जबर्दस्ती खोलता है तो बचाव की जगह रहती है।"
"तुमने दिल दे दिया। यह दिल मर्द को न दो। लेने लगोगी तो मालूम होगा कि वहतुम्हारा नहीं। या तो वह तुम पर है या तुम उस पर। आज तक मर्द को ही तुमने अपनेऊपर पाया होगा। अब उल्टा नजर आएगा। बचत की और जगह मिलेगी। मर्द झुका रहेगा।"बुआ को बल मिला। पूछा, "क्या मर्द के पीछे लगना होगा?"
"हाँ, और वह इतना बड़ा मर्द है कि यहाँ उससे बड़ा मर्द नहीं।"
"वह कौन है?"
"वह राजा है। वही यह अपमान कराता है। आज तुमको रानी का सम्मान दिया जाएगा। साथसिपाही रहेंगे। यह न समझना कि तुम रानी नहीं, बुआ हो। कभी यह न जाहिर करना किकिसी मतलब से तुम गई हो। तुम्हारे साथ सब पुलिस के सिपाही रहेंगे। खूब यादरहे, कहना, मैं रानी। तुमको कोई पहचान न पाएगा। मैं साथ रहूँगी, लेकिन दूर। जोसिपाही बहुत पास रहेगा, उसको अपना जिगरी मत समझना।"
"हमको डर लगता है।"
"हम कई आदमी साथ रहेंगे। डर की कोई बात नहीं। कहो, क्या कहोगी।"
"मैं रानी।"
"हाँ।"
संध्या की छाया पड़ने लगी। मुन्ना ने बरामदे की तरफ देखा, कोई नहीं देख पड़ा।बुआ को साथ लेकर लौटी। हवा और सुहानी हो गई। बुआ को पहले शंका थी, मगर हृदय केकपाट जैसे खुल गए; जान पड़ा, संसार में धर्म का रहस्य कुछ नहीं-सब ढोंग है।
बुआ को टहलने के लिए छत पर छोड़कर मुन्ना सिपाही के पास गई और उस तरफ जाने के लिए कहा।
सिपाही ने कहा, "वह देख, बरामदे का दरवाजा बंद है। वहाँ, माल की निगरानी करनेवाला जाता है।"
"वहाँ कोई रहता नहीं?"
"नहीं।"
"तुमको और कुछ मालूम हुआ?"
"हाँ, जमादार ने सबको हाज़िर रहने के लिए कहा है, और यह खबर है कि रानीजी ने
इनाम भेजा है, सब सिपाही इस कोठी के आ जाएंगे, तब दिया जाएगा।"