पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। राजा ने रख लिया।खुशामद करने में कमाल हासिल, तरक्की कर गए।कोठी के सामने पुराना फव्वारा है। अब नहीं चलता। चारों तरफ से क्का होज।दीवार पर बैठे थे। मुन्ना गुजरी।दोनों ने एक-दूसरे को देखा। मुन्ना ने छींटा जमाया, "एक घोड़ा फेर रही हूँ।
"वाह रे मेरे सवार ! कौन घोड़ा?"
"एक हिंदुस्तानी घोड़ा है।"
जमादार जटाशंकर झेंपे। गुस्सा आया। पर सँभलकर कहा, "और घोड़ी बंगाली है?"
मुन्ना को भी बुरा लगा। बदलकर कहा, "जब हमसे बातचीत करो, रानी समझकर करो।"
जटाशंकर सकपका गए। क्रोध में आकर कहा, "क्या कहा?"
"कह रही हूँ, तुम्हारी नौकरी नहीं रहेगी। पहले रानीजी की सलामी दो।" तिनककर मुन्ना ने कहा।
जटाशंकर ने रानीजी की सलामी दी। फिर ताव में आए। कहा, "मैं राजा हूँ, राजा की सलामी दे।"।
"तुम गँवार हो," मुन्ना ने कहा, "मैं रानी हूँ, रानी; रानी राजा को सलामी देती हैं? जवाब में चूमती हैं। तुम मुझको चूमो।"
जटाशंकर ने सोचा, "रानी और राजा का खेल कर रही है।" प्रेम बढ़ गया। चूमने के लिए मुँह बढ़ाया कि गाल पर मुन्ना का चाँटा पड़ा। जटा शंकर चौंककर हाथ-भर उछल गया। साथ ही मुन्ना ने कहा, "रानी का तुम्हारे लिए यही जवाब होगा। रही बात राजा को सलामी देने की; तुम्हें मालूम होना चाहिए कि हम सिपाही नहीं; हम प्रणाम करते हैं।" मुन्ना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया, कहा, "इस तरह; अब तुमसे फिर कहती हूँ, मेरे साथ रानीजी का मान है, उन्होंने दिया है, इसको अंग्रेजी
में आनर कहते हैं; राजा ने तुमको मान नहीं दिया, तुम अपनी तरफ से राजा का मान लेते हो। रानी का मान पहले तुमसे लिया जाएगा। हम जब आएँगे, तुम उठकर खड़े हो जाओगे और हाथ जोड़कर रानीजी की जय कहोगे। तभी हम रानीजी का आनर वहाँ चढ़ा
सकेंगे।"
"कहाँ?"
"वहीं जहाँ हम काम करते हैं?"
"हम रानीजी से पूछ लें।"
"और किस रानीजी से तुम पूछोगे? रानी का मान है यहाँ, तुमको यह बतलाया जा चुका है, वहाँ तुम जाओगे, दासी से कहोगे, खबर भेजोगे, तुमको जवाब नहीं मिलेगा, बिनामान की रानी जवाब क्या देंगी? तुम इतना नहीं समझते, रानीजी का मान दूसरी केसाथ तभी बांधा जाता है जब कोई उनका पानी उतारता है। जहाँ हम काम करते हैं,वहाँ की उस औरत ने रानीजी का मान घटाया है, उसका मान घटाया जाएगा। तुमसे यहभेद बतला दिया गया। अब बताओ, तुम साथ दोगे, या नहीं।"
"रानीजी के मान बढ़ाने में क्यों साथ नहीं देंगे?""अच्छा, अब रानीजी का मान हम रानीजी को देते हैं। अब हम हम हैं। अब हमको तुमचाहो तो चूम लो।"।जटाशंकर फिर चूमने के लिए लपके। पकड़कर चूमने लगे, तो मुन्ना ने उनके होंठोंके भीतर जीभ चला दी और कहा, "तुमने हमारा थूक चाटा। हमारी जात कहार की है। अबहम गढ़-भर में कहेंगे। तुम कौन बाँभन हो?"जटाशंकर सूख गए। सोचा, "यह कुल चकमा उनकी जाति मारने के लिए था। कल से कोईपानी नहीं पिएगा।" बहुत डरे। देवता की याद आई कि उन्होंने न बचाया। सोचा,ब्रह्मा की लड़ाई में काम आ गए होते तो अच्छा होता।मुन्ना टकटकी बाँधे हुए पं. जटाशंकर मिश्र के बदलते हुए मनोभाव देखती रही।पंडितजी ब्रह्मा की लड़ाई में नहीं मरे, इसलिए डरे। कहा, "तू मुझे अपना गुलामसमझ, जो कहेगी, करूँगा; थूक चाटने को कहे तो चाटूँगा, मगर किसी से कह मत।"
मुन्ना की रग-रग में घणा भर गई। समझ गई, यह आदमी प्रणयी नहीं हो सकता। यह धोखादेगा। इसको उतारकर रखना चाहिए। खुलकर कहा, "तुम जब तक हमारी बात मानोगे, हमकिसी से नहीं कहेंगे।"हाथ जोड़कर जटाशंकर ने कहा, मंजूर।""हमारे यहाँ" मुन्ना ने कहा, "घोड़ा-घोड़ी दोनों को घोड़ा कहते हैं। उसी को हम
फेर रहे हैं, यही कहा था। कारण भी समझा दिया।"
प्रसन्न होकर जटाशंकर ने कहा, "हाँ, अब समझ में आ गया।"
"तो उस घोड़ी का अपमान करने के लिए एक घोड़ा चाहिए।"
"हाँ।"
"वह घोड़ा तुम बनोगे या मैं?"
जटाशंकर फिर जगे। आँखें लाल हुई देखकर मुन्ना ने कहा, "गाल पर पड़े तमाचेवालीबात कहूँ या होंठों के अंदर गई जीभवाली?"
जटाशंकर फिर ठंढे हो गए।
मुन्ना ने कहा, "हम इसी तरह घोड़ा फेरते हैं, उसको भी फेरते हैं, तुमको भी।
बोलो, घोड़ा बनोगे?"
"बनना ही पड़ेगा।"
"तो तीन रोज़ लगातार उसी तरह हाथ जोड़कर रानीजी की जय कहोगे। तीसरे दिन अंदरके बगीचेवाले तालाब में दिन के दस बजे जब वह नहाने जाएँगी, तब...समझे?"
"अंदर के बगीचे में मर्द के जाने की मुमानियत है।"
"तो, उसको तुम्हारे पास भेज दें?"
जमादार जटाशंकर बहुत हैरान हुए। कहा, "अच्छा, जाएंगे।"
मुन्ना ने कहा, "जमादार, तभी तुमको मालूम होगा। हम तुमको नमस्कार करते हैं,
तुम्हारी सेवा करते हैं, पर तुमको खुश नहीं कर पाते, हमारे छूने से तुम्हारी जाति मारी जाती है। तुम हमें चूमोगे, इससे कुछ नहीं होगा, पर हम तुम्हें चूमेंगे, इससे तुम्हारा धर्म जाता रहेगा। कोई चूमना ऐसा भी है जिसमें दोनों के होंठ न मिलें? अच्छा, तुम भी ब्राह्राण हो, यह भी ब्राह्राण है; तुम इसके पास जाओगे तो तुमको मालूम होगा कि तुमसे यह और कितनी बड़ी ब्राह्राण है। उस दिन रानीजी के सामने इसका तेज देखकर दासियाँ हैरान हो गईं।"
जटाशंकर ने कहा, "अच्छा मुन्ना, मेरी स्त्री गुजर गई है। तू मेरी स्त्री, और यही मैं तुझे समझूँगा। जा, तू गढ़-भर में कह दे कि मेरा-तेरा थूक एक हो गया।" मुन्ना खिल गई। "यह मर्द है, जमादार, तुम मेरे मर्द। मैं कुछ समझकर तुम्हारे पास आई थी। औरत का प्यार जल्द समझ में नहीं आता। मैं भी बेवा हूँ, बेवा ही यहाँ दासी बनकर आ पाती हैं। मैं तुम्हारी दासी, तुम्हें मैं अपना ही रक्खूँगी। जैसा कहा है, वैसा करो; तालाब में जाओ; मैं दूसरा पेच लड़ाऊँगी। तुम्हारा एक अपमान होगा; सह जाओ। इस औरत के लिए भगवान् हैं। यह नेक है।"