दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं। जहाँ तक निगाह जाती है,यही जाल बिछा हुआ है। लुभानेवाली जितनी चीजें हैं, सभी खून से रँगी हुईं।जितने सिपाही हैं, सबके जोड़े मिलाए हुए। बाहरवाले नहीं पहचान सकते। एक तरह केतीन-चार भी। उन्हीं की तरह यह इमारत, जमींदारी, हीरे-मोती,जवाहरात, चमक-दमक,रूप-रंग- कुल बनावटी। इनकी असली सूरत कुछ और है। यह स्वर्ग दिखता हुआ दृश्यनरक है। ये राजे-महाराजे राक्षस। ये देवी-देवता पत्थर के, काठ के, मिट्टी के।
रामफल बैठा हुआ था। दिलावर ने कहा, "चलो बदलो!"
"कैसे? क्या बात है?" जितना ही विश्वास करके रामफल ने देखा, उतनी हीअविश्वासवाली जहरीली ज्योति आँखों से निकली।
"अब तुम हम, हम तुम। हमारी जैसी दाढ़ी रक्खो। चलो, एक देवता आए हैं, कोई साधुहैं, ले आना है, दामाद की तरह रखना है। खास राजा की बात है, दीवार भी न सुने।
वह भी उस काल-कोठरी में कभी-कभी दर्शन देंगे। जल्द चलो।"
"क्या बात है?"
"चल जल्द। बात तो दुनिया भर की जानता है।"
रामफल उठा। दोनों राजा की ओर से रखे गए सिपाहियों के नाई की ओर चले।
नाई फुरसत में था। कहा, "पालागो, रामफल महाराज, राम-राम दिलावर साहब।"
रामफल ने आशीर्वाद दिया। दिलावर ने राम-राम की।
रामफल ने कहा, "दाढ़ी बहुत बढ़ गई है, खुजला रही है, इसके बराबर कर दो, मूँछें
भी। किनारे छाँट दो।"।
"वाह महाराज," नाई ने कहा, "हम समझे, आप शौक बुझाते हुए पितरों को भूल गए!
लेकिन परमात्मा की कृपा है। बैठ जाइए। धन्य हूँ मैं।"
रामफल बैठे। नाई ने दिलावर की जैसी दाढ़ी-मूँछें बना दीं। फिर दिलावर से पूछा,
"आपका, साहब, कौन-सा फ़ैशन होगा? आजकल तो कर्ज़न फ़ैशन की चाल है।"
"वह, काम पूरा होने पर, सराध में जैसे। इसने काम अधूरा छोड़ रखा है। इसकी जैसी
थी, वैसी ही बना दो। अभी दाढ़ी के बाल कुछ छोटे हैं, खैर नोकदार बना दो। नाक
के नीचेवाले बाल सफाचट कर दो।"
नाई गंभीर हो गया। दिलावर बैठे। रामफल तल्लीन होकर शीशा देखते रहे।
बाल बन जाने पर दोनों तालाब में स्नान करने गए। दिलावर ने लुंगी पहनी। दोनों
चले। बाहर के फाटक पर प्रभाकर बैठा हुआ ऊब रहा था। दिलावर ने रामफल को दिखाया,
कहा, आप हैं। रास्ते में उसने अच्छी तरह समझा दिया था।
उसकी बात प्रभाकर ने नहीं सुनी। दिलावर के रूप में रामफल को देखकर उसको धुकचा
लगा। पर उसको अपने काम से काम था। दिलावर ने कह दिया था कि उसी का नामबतलाएगा।
रामफल ने प्रभाकर को बाहर बुलाया। कहा, "चलिए, आप लोगों को दूकान में अच्छीतरह भोजन करा दें। रात को ले चलेंगे। अभी रास्ता साफ नहीं है। वहाँ आप लोगोंकी जगह दुरुस्त की जाएगी। बैठने-लेटने के पलंग-बिस्तर-मशहरी, मेज़-कुर्सी आदिलाने-लगाने पड़ेंगे। तब तक चलिए, बाज़ार की सैर कीजिए।"
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"हमारा नाम है दिलावर।"
बाज़ार में राजा की ही व्यवस्था थी। सामान वहीं रखा था। आदमी इधर-उधर टहलतेथे। प्रभाकर को देखकर सब इकट्ठे हो गए।
एक दर्जी ने पूछा, "सिपाहीजी, आप कौन हैं?"
दिलावर ने कहा, "उस्ताद हैं, जैसे आप ख़लीफ़ा।"।
"गवैये हैं?" एक दूसरे ने पूछा।
"हाँ, नचनिये भी हैं, आजकल तो तबले का बोलबाला है। वह आ गई है न? बिरादरों कीआमदरफ्त हो चली है। रात को ठनकेगा।"
ख़लीफ़ा झेंपे। पर बड़ों का प्रभाव रखते थे, खामोशी से रख लिया।
दिलावर प्रभाकर और उसके साथियों को लेकर एक दुकान में गया। इच्छानुसार भोजनकराया। जिस घर में सामान था, वहाँ विश्राम के लिए ले जाकर पूछा, "बाबू, आपकाकौन-कौन-सा सामान है, हमें दिखा दीजिए। हम वक्त पर उठवा ले जाएंगे।"
दूसरे कमरे में सामान बंद था। ताली जिसके पास थी, वह आदमी बाहर था। प्रभाकरजानता था। कहा, "सामान की कोई चिंता नहीं, जब चलेंगे, सामान भी लिवाते चलेंगे।"।
दिलावर-नामधारी को टोह न मिली कि कैसा आदमी है, कैसा सामान है।