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भाग 11

5 अगस्त 2022

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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं। जहाँ तक निगाह जाती है,यही जाल बिछा हुआ है। लुभानेवाली जितनी चीजें हैं, सभी खून से रँगी हुईं।जितने सिपाही हैं, सबके जोड़े मिलाए हुए। बाहरवाले नहीं पहचान सकते। एक तरह केतीन-चार भी। उन्हीं की तरह यह इमारत, जमींदारी, हीरे-मोती,जवाहरात, चमक-दमक,रूप-रंग- कुल बनावटी। इनकी असली सूरत कुछ और है। यह स्वर्ग दिखता हुआ दृश्यनरक है। ये राजे-महाराजे राक्षस। ये देवी-देवता पत्थर के, काठ के, मिट्टी के।

रामफल बैठा हुआ था। दिलावर ने कहा, "चलो बदलो!"

"कैसे? क्या बात है?" जितना ही विश्वास करके रामफल ने देखा, उतनी हीअविश्वासवाली जहरीली ज्योति आँखों से निकली।

"अब तुम हम, हम तुम। हमारी जैसी दाढ़ी रक्खो। चलो, एक देवता आए हैं, कोई साधुहैं, ले आना है, दामाद की तरह रखना है। खास राजा की बात है, दीवार भी न सुने।

वह भी उस काल-कोठरी में कभी-कभी दर्शन देंगे। जल्द चलो।"

"क्या बात है?"

"चल जल्द। बात तो दुनिया भर की जानता है।"

रामफल उठा। दोनों राजा की ओर से रखे गए सिपाहियों के नाई की ओर चले।

नाई फुरसत में था। कहा, "पालागो, रामफल महाराज, राम-राम दिलावर साहब।"

रामफल ने आशीर्वाद दिया। दिलावर ने राम-राम की।

रामफल ने कहा, "दाढ़ी बहुत बढ़ गई है, खुजला रही है, इसके बराबर कर दो, मूँछें

भी। किनारे छाँट दो।"।

"वाह महाराज," नाई ने कहा, "हम समझे, आप शौक बुझाते हुए पितरों को भूल गए!

लेकिन परमात्मा की कृपा है। बैठ जाइए। धन्य हूँ मैं।"

रामफल बैठे। नाई ने दिलावर की जैसी दाढ़ी-मूँछें बना दीं। फिर दिलावर से पूछा,

"आपका, साहब, कौन-सा फ़ैशन होगा? आजकल तो कर्ज़न फ़ैशन की चाल है।"

"वह, काम पूरा होने पर, सराध में जैसे। इसने काम अधूरा छोड़ रखा है। इसकी जैसी

थी, वैसी ही बना दो। अभी दाढ़ी के बाल कुछ छोटे हैं, खैर नोकदार बना दो। नाक

के नीचेवाले बाल सफाचट कर दो।"

नाई गंभीर हो गया। दिलावर बैठे। रामफल तल्लीन होकर शीशा देखते रहे।

बाल बन जाने पर दोनों तालाब में स्नान करने गए। दिलावर ने लुंगी पहनी। दोनों

चले। बाहर के फाटक पर प्रभाकर बैठा हुआ ऊब रहा था। दिलावर ने रामफल को दिखाया,

कहा, आप हैं। रास्ते में उसने अच्छी तरह समझा दिया था।

उसकी बात प्रभाकर ने नहीं सुनी। दिलावर के रूप में रामफल को देखकर उसको धुकचा

लगा। पर उसको अपने काम से काम था। दिलावर ने कह दिया था कि उसी का नामबतलाएगा।

रामफल ने प्रभाकर को बाहर बुलाया। कहा, "चलिए, आप लोगों को दूकान में अच्छीतरह भोजन करा दें। रात को ले चलेंगे। अभी रास्ता साफ नहीं है। वहाँ आप लोगोंकी जगह दुरुस्त की जाएगी। बैठने-लेटने के पलंग-बिस्तर-मशहरी, मेज़-कुर्सी आदिलाने-लगाने पड़ेंगे। तब तक चलिए, बाज़ार की सैर कीजिए।"

"तुम्हारा नाम क्या है?"

"हमारा नाम है दिलावर।"

बाज़ार में राजा की ही व्यवस्था थी। सामान वहीं रखा था। आदमी इधर-उधर टहलतेथे। प्रभाकर को देखकर सब इकट्ठे हो गए।

एक दर्जी ने पूछा, "सिपाहीजी, आप कौन हैं?"

दिलावर ने कहा, "उस्ताद हैं, जैसे आप ख़लीफ़ा।"।

"गवैये हैं?" एक दूसरे ने पूछा।

"हाँ, नचनिये भी हैं, आजकल तो तबले का बोलबाला है। वह आ गई है न? बिरादरों कीआमदरफ्त हो चली है। रात को ठनकेगा।"

ख़लीफ़ा झेंपे। पर बड़ों का प्रभाव रखते थे, खामोशी से रख लिया।

दिलावर प्रभाकर और उसके साथियों को लेकर एक दुकान में गया। इच्छानुसार भोजनकराया। जिस घर में सामान था, वहाँ विश्राम के लिए ले जाकर पूछा, "बाबू, आपकाकौन-कौन-सा सामान है, हमें दिखा दीजिए। हम वक्त पर उठवा ले जाएंगे।"

दूसरे कमरे में सामान बंद था। ताली जिसके पास थी, वह आदमी बाहर था। प्रभाकरजानता था। कहा, "सामान की कोई चिंता नहीं, जब चलेंगे, सामान भी लिवाते चलेंगे।"।

दिलावर-नामधारी को टोह न मिली कि कैसा आदमी है, कैसा सामान है।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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भाग 26

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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