जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हुआ मुस्कराता रहा; जमादारपास आए तो डाँटकर कहा, "तुम बदमाश हो, रानीजी ने तुम्हें बरखास्त किया है। अबम जमादार हैं। हमको उसी तरह सलाम करो और हमारे पहरे पर रहोगे। इसी वक्त चलेजाओ, आँख से ओझल हो जाओ।" रुस्तम कुर्सी पर बैठा हुआ आराम से टांगें हिलानेलगा। मुसलमान की पूरी शान में आकर कहा, "अब तुमको मालूम होगा कि सिपाही परक्या आफ़त गुजरती है जब वह अफसर और जमादार को सलाम करता है।"जमादार के मुँह में जैसे ताला पड़ गया। वह हक्के-बक्के हो गए।"उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।" राजाराम ने डपटकर कहा। "उठ, नहीं तो ठोंकता हूँअभी।"
"तू, नीम-बदमाश है, इसका साथी है, वहाँ तू क्यों गया?"
"तुझको पकड़ने। मैं गवाह हूँ।"
"तू गवाह है, बदमाश, नंगी नहा रही थी, तब तू देख रहा था या नहीं? और बहुत कुछ
किया है, तुम दोनों ने।"
"हमको सब मालूम है।" नेपथ्य से मुन्ना ने कहा।
"तो फिर अब तुम्हीं फैसला कर दो।" जमादार ने काँपते हुए कहा। मुन्ना चुप हो गई
! रुस्तम ने कुर्सी नहीं छोड़ी।
"बदमाश कहीं का। फैसला कर दो !"
राजाराम कुर्सी के पास आ गया, "उठता है या नहीं?"
तुराब तंबू का पहरेदार था। दोमंज़िले की खिड़की से नीचे को देखते हुए कहा,
"खबरदार, राजाराम, मैं भी गवाह हूँ। तुम दोनों बदमाश हो। जमादार-रुस्तम
पकड़नेवाले हैं। मैं उनके साथ था।"
"तुम यहाँ से क्यों गए?" राजाराम ने पूछा।
"तुम यहाँ से क्यों गए?" तुराब ने डाँटा।
"हम बदमाश पकड़ने गए।"
"बदमाश पकड़ने नहीं गए, बदमाशी करने गए। उस बगीचे के अंदर मर्द के जाने काहुक्म नहीं, यह सबको मालूम है। तुम गए। जमादार-रुस्तम भीतर नहीं गए।"
इसी समय मुन्ना आ गई। कहा, "रानीजी का फैसला सबको मंजूर होगा।"
सबने समस्वर से कहा, "हाँ, होगा।"
मुन्ना ने कहा, "राजाराम आपस में लड़ो नहीं, अपना काम करो।" फिर जमादार सेकहा, "जटाशंकर, इधर आओ।"
जटाशंकर को उसी जगह ले गई जहाँ पहली बातचीत हुई थी। रुस्तम मुस्कराता हुआ बैठा
रहा। तुराब ने कहा, "भाई, आपकी किस्मत खुल गई। हमारा ही पहला सलाम है।" रुस्तम
ने टाँगें हिलाते हुए कहा, "हमको याद रहेगा।" राजाराम ने जमादार को डिसमिस हुआजानकर पहरे की वर्दी पहनते और तलवार बाँधते हुए कहा, "लेकिन जमादार का कोईकसूर नहीं।"
"जमादार तो हम हैं," रुस्तम ने स्वर चढ़ाकर कहा, "हमारा कौन-सा क़सूर है?"
अड़गड़े में पहुँचकर मुन्ना ने कहा, "जटाशंकर, क्या तुम अब भी हमको चाहते हो?"
जटाशंकर राँड की तरह रोने लगे।
"एक बात" मुन्ना ने कहा, "तुम मुझे चाहते हो या जमादारी?"
"अरी, बड़ी बेइज्जती हुई; हमारी जमादारी रहने दे।"
"अब तुम समझे, हम समझ जाते हैं, कौन कैसा है। तुम हमारी तरह उतर नहीं सकते, यहतुम्हारा खयाल था; मगर तुम इतना उतर जाओगे कि यहाँ जमना दुश्वार होगा। जब किसीको पकड़ो तब उसी को पकड़े रहो, यह क़ायदा है। तुम समझे थे, मैं तुम्हारी रखेलीकी तरह रहूँगी; अपनी स्त्री बनाकर तुम मुझको खुश किए रहोगे। मैं जैसी औरत हूँ,मैं तुम्हें रखवाले की ही तरह रख सकती हूँ; मगर राजा ही बनाए रहती। यह न समझनाकि मैं गरीब हूँ। मैंने कहा, मैं रानी है। तुम्हारा यह खयाल कि एक औरत कोरखेली बनाकर रहनेवाला वैसा ही ब्राह्राण है जसे तुम, बिलकुल गलत है। हमारे दिलमें ब्राह्राण का सम्मान है, पर चैतन्यदेव-जस ब्राह्राण का, जो बाद को वैष्णवहो गए, और सबको अपनी तरह का आदर दिया। मैं वैष्णव हूँ। तुम पर मुझे प्यार नहींहोता, दया आती है। तुम इतने बड़े मूर्ख हो कि अपनी तरफ से कुछ समझ नहीं सकते।
खजाने का जो जमादार होगा, कुछ दिनों में उसकी जान की आफत आएगी।"
जमादार काँपे। आँखों से तरह-तरह की शंकाएँ, भय, उद्वेग, पाप, अत्याचार,
क्षुद्रता, हृदयहीनता आदि निकल पड़ी। राज लेने के लिए मित्र बनने की कोशिश
करते हुए कहा, "क्यों?"
"तुम हमारे आदमी हो?"
जमादार की जान चोटी पर आ गई। कहा, "अब जो कुछ भी हो, हम हुजूर के आदमी हैं।"
"अब तुम समझे। अच्छा बताओ, अगर खज़ाने का रुपया चुरा गया हो?"
जटाशंकर को जान पड़ा, वज्र टूटा; धड़ाम से गिर पड़े, "अब सही-सही मरा।-मुझको
भगा दो। दया करो, दया करो, देवी, कहीं का नहीं रहा।"
"यही रुपया तुमको देना चाहती हैं, लेकिन तुमको हमारी जाति और हमारी दासता लेनी
पड़ेगी।"
"हमको रुपया नहीं चाहिए।" तनकर जटाशंकर ने कहा।
"यही तुम्हारा बड़प्पन है। हम इसी को प्यार करते हैं। मेरे प्यारे, मुझे चूम
लो।" मुन्ना ने जीभ लपलपायी।
जटाशंकर को जान पड़ा, काल है। खज़ाने की चोरी की बात सोचते हुए तनकर
सिपाहियाने स्वर से कहा, "गलत बात है,; ख़ज़ाने की चोरी नहीं हो सकती।"
"क्यों?"
"अब तू ही बता," कहकर फिर उन्होंने एक कड़ी निगाह गाड़ी।
"यह जो जमादार बना है, इसी ने चुरवाया है, यह रानी का प्यारा।"
"झूठ बात, हम रपोट करेंगे।"
"क्यों रपोट करोगे?"
"यही तू जो कुछ कहती है।"
"तुमको और तुम्हारे पहरेदार को ये दूसरे पहरेदार पकड़े हुए हैं कि तुम लोगबदमाश हो। मैं इनकी गवाही गुजार दूँगी। तुम ठोंके जाओगे, नौकरी से भी हाथधोओगे।"
"हम कहेंगे, खजाना चुराने का इसने जाल किया है। हमसे पहले ऐसा ऐसा कह चुकीहै।"
"खजाना चुरा गया है, तुम्हें इसका क्या पता? अगर न चुरा गया हो?"
जमादार ने करुण दृष्टि से देखा। मुन्ना ने कहा, "अच्छा लाख-दो लाख दे दिए जाएं
तो तुम क्या करो?"
"हम खज़ाने में रखा देंगे।"
"कैसे?"
जमादार फिर हक्के-बक्के हुए।
मुन्ना ने कहा, "जमादारी चाहते हो तो चलो, बैठो, लेकिन याद रक्खो, जिस दिनखजानची आएगा, उस दिन तुम्हारा कोई कर्म बाकी नहीं रहेगा। बात मानोगे तोबचे-बचाये चले जाओगे। चोरी और छिनाले का भेद तब तक नहीं खुल सकता जब तक रानी
का मान वापस नहीं आ जाता।"
"रुस्तम की वर्दी पहनकर रुस्तम की जगह पहरा दो और रुस्तम को जमादार मानो।"
कहकर मुन्ना नए गढ़ की तरफ चली।
जमादार जटाशंकर ख़ज़ाने आए। वहाँ से मालखाने गए। रुस्तम की वर्दी पहनी। बाक़ीरहा थोड़ा समय पहरा देने लगे।
पहरा बदला। दूसरे सिपाही आए। बात फैली कि रुस्तम जमादार हो गया। रानीजी नेबनाया है। जमादार और राजाराम बदमाशी में पकड़े गए हैं।
जटाशंकर मुँह दिखाने लायक न रह गए। कुल सिपाही बराबरी का दावा करने लगे औरउन्हीं के दिल से कसूरवार करार देने लगे।
राजाराम भी मुरझाया था। फुर्सत के वक्त एकांत में जमादार से बातचीत करता हुआराज लेने लगा, "जमादार, बड़ा अपमान हुआ। अब तुम सिपाही हो, रुस्तम जमादार।
हुक्म राजा का नहीं। माजरा समझ में नहीं आता।"
जमादार ने पूछा, "तुमको क्या जान पड़ता है?"
"या तो तुम फँसे थे, इस औरत ने झूठमूठ हमको भी फँसाया या बुआ की तौहीन की गईऔर करनेवाला मुसलमान, इसमें राजा की राय हरगिज़ नहीं मालूम देती। बुआ राजा कीमान्य की मान्य हैं।"
"इसके बाद इस मुसलमान का हाल क्या होता है, देखना। राजा एक मुसलमान तवायफ लिएही पड़े रहते हैं। इनके यहाँ बस इतना ही संबँध है। रानी का हाथ है, ऐसा हमारा विचार है। यह भी संभव है कि खजाने की चोरी रानी ने करायी है। बोलो मत, इसमें बड़ा भारी भेद है। किसी को मालूम नहीं हो सका। रुस्तम का आगे चलकर बुरा हाल होगा। तुमको हम दूसरी जगह बदलने की कोशिश करेंगे।" बात आग की तरह फैली।