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भाग 14

5 अगस्त 2022

13 बार देखा गया 13

जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हुआ मुस्कराता रहा; जमादारपास आए तो डाँटकर कहा, "तुम बदमाश हो, रानीजी ने तुम्हें बरखास्त किया है। अबम जमादार हैं। हमको उसी तरह सलाम करो और हमारे पहरे पर रहोगे। इसी वक्त चलेजाओ, आँख से ओझल हो जाओ।" रुस्तम कुर्सी पर बैठा हुआ आराम से टांगें हिलानेलगा। मुसलमान की पूरी शान में आकर कहा, "अब तुमको मालूम होगा कि सिपाही परक्या आफ़त गुजरती है जब वह अफसर और जमादार को सलाम करता है।"जमादार के मुँह में जैसे ताला पड़ गया। वह हक्के-बक्के हो गए।"उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।" राजाराम ने डपटकर कहा। "उठ, नहीं तो ठोंकता हूँअभी।"

"तू, नीम-बदमाश है, इसका साथी है, वहाँ तू क्यों गया?"

"तुझको पकड़ने। मैं गवाह हूँ।"

"तू गवाह है, बदमाश, नंगी नहा रही थी, तब तू देख रहा था या नहीं? और बहुत कुछ

किया है, तुम दोनों ने।"

"हमको सब मालूम है।" नेपथ्य से मुन्ना ने कहा।

"तो फिर अब तुम्हीं फैसला कर दो।" जमादार ने काँपते हुए कहा। मुन्ना चुप हो गई

! रुस्तम ने कुर्सी नहीं छोड़ी।

"बदमाश कहीं का। फैसला कर दो !"

राजाराम कुर्सी के पास आ गया, "उठता है या नहीं?"

तुराब तंबू का पहरेदार था। दोमंज़िले की खिड़की से नीचे को देखते हुए कहा,

"खबरदार, राजाराम, मैं भी गवाह हूँ। तुम दोनों बदमाश हो। जमादार-रुस्तम

पकड़नेवाले हैं। मैं उनके साथ था।"

"तुम यहाँ से क्यों गए?" राजाराम ने पूछा।

"तुम यहाँ से क्यों गए?" तुराब ने डाँटा।

"हम बदमाश पकड़ने गए।"

"बदमाश पकड़ने नहीं गए, बदमाशी करने गए। उस बगीचे के अंदर मर्द के जाने काहुक्म नहीं, यह सबको मालूम है। तुम गए। जमादार-रुस्तम भीतर नहीं गए।"

इसी समय मुन्ना आ गई। कहा, "रानीजी का फैसला सबको मंजूर होगा।"

सबने समस्वर से कहा, "हाँ, होगा।"

मुन्ना ने कहा, "राजाराम आपस में लड़ो नहीं, अपना काम करो।" फिर जमादार सेकहा, "जटाशंकर, इधर आओ।"

जटाशंकर को उसी जगह ले गई जहाँ पहली बातचीत हुई थी। रुस्तम मुस्कराता हुआ बैठा

रहा। तुराब ने कहा, "भाई, आपकी किस्मत खुल गई। हमारा ही पहला सलाम है।" रुस्तम

ने टाँगें हिलाते हुए कहा, "हमको याद रहेगा।" राजाराम ने जमादार को डिसमिस हुआजानकर पहरे की वर्दी पहनते और तलवार बाँधते हुए कहा, "लेकिन जमादार का कोईकसूर नहीं।"

"जमादार तो हम हैं," रुस्तम ने स्वर चढ़ाकर कहा, "हमारा कौन-सा क़सूर है?"

अड़गड़े में पहुँचकर मुन्ना ने कहा, "जटाशंकर, क्या तुम अब भी हमको चाहते हो?"

जटाशंकर राँड की तरह रोने लगे।

"एक बात" मुन्ना ने कहा, "तुम मुझे चाहते हो या जमादारी?"

"अरी, बड़ी बेइज्जती हुई; हमारी जमादारी रहने दे।"

"अब तुम समझे, हम समझ जाते हैं, कौन कैसा है। तुम हमारी तरह उतर नहीं सकते, यहतुम्हारा खयाल था; मगर तुम इतना उतर जाओगे कि यहाँ जमना दुश्वार होगा। जब किसीको पकड़ो तब उसी को पकड़े रहो, यह क़ायदा है। तुम समझे थे, मैं तुम्हारी रखेलीकी तरह रहूँगी; अपनी स्त्री बनाकर तुम मुझको खुश किए रहोगे। मैं जैसी औरत हूँ,मैं तुम्हें रखवाले की ही तरह रख सकती हूँ; मगर राजा ही बनाए रहती। यह न समझनाकि मैं गरीब हूँ। मैंने कहा, मैं रानी है। तुम्हारा यह खयाल कि एक औरत कोरखेली बनाकर रहनेवाला वैसा ही ब्राह्राण है जसे तुम, बिलकुल गलत है। हमारे दिलमें ब्राह्राण का सम्मान है, पर चैतन्यदेव-जस ब्राह्राण का, जो बाद को वैष्णवहो गए, और सबको अपनी तरह का आदर दिया। मैं वैष्णव हूँ। तुम पर मुझे प्यार नहींहोता, दया आती है। तुम इतने बड़े मूर्ख हो कि अपनी तरफ से कुछ समझ नहीं सकते।

खजाने का जो जमादार होगा, कुछ दिनों में उसकी जान की आफत आएगी।"

जमादार काँपे। आँखों से तरह-तरह की शंकाएँ, भय, उद्वेग, पाप, अत्याचार,

क्षुद्रता, हृदयहीनता आदि निकल पड़ी। राज लेने के लिए मित्र बनने की कोशिश

करते हुए कहा, "क्यों?"

"तुम हमारे आदमी हो?"

जमादार की जान चोटी पर आ गई। कहा, "अब जो कुछ भी हो, हम हुजूर के आदमी हैं।"

"अब तुम समझे। अच्छा बताओ, अगर खज़ाने का रुपया चुरा गया हो?"

जटाशंकर को जान पड़ा, वज्र टूटा; धड़ाम से गिर पड़े, "अब सही-सही मरा।-मुझको

भगा दो। दया करो, दया करो, देवी, कहीं का नहीं रहा।"

"यही रुपया तुमको देना चाहती हैं, लेकिन तुमको हमारी जाति और हमारी दासता लेनी

पड़ेगी।"

"हमको रुपया नहीं चाहिए।" तनकर जटाशंकर ने कहा।

"यही तुम्हारा बड़प्पन है। हम इसी को प्यार करते हैं। मेरे प्यारे, मुझे चूम

लो।" मुन्ना ने जीभ लपलपायी।

जटाशंकर को जान पड़ा, काल है। खज़ाने की चोरी की बात सोचते हुए तनकर

सिपाहियाने स्वर से कहा, "गलत बात है,; ख़ज़ाने की चोरी नहीं हो सकती।"

"क्यों?"

"अब तू ही बता," कहकर फिर उन्होंने एक कड़ी निगाह गाड़ी।

"यह जो जमादार बना है, इसी ने चुरवाया है, यह रानी का प्यारा।"

"झूठ बात, हम रपोट करेंगे।"

"क्यों रपोट करोगे?"

"यही तू जो कुछ कहती है।"

"तुमको और तुम्हारे पहरेदार को ये दूसरे पहरेदार पकड़े हुए हैं कि तुम लोगबदमाश हो। मैं इनकी गवाही गुजार दूँगी। तुम ठोंके जाओगे, नौकरी से भी हाथधोओगे।"

"हम कहेंगे, खजाना चुराने का इसने जाल किया है। हमसे पहले ऐसा ऐसा कह चुकीहै।"

"खजाना चुरा गया है, तुम्हें इसका क्या पता? अगर न चुरा गया हो?"

जमादार ने करुण दृष्टि से देखा। मुन्ना ने कहा, "अच्छा लाख-दो लाख दे दिए जाएं

तो तुम क्या करो?"

"हम खज़ाने में रखा देंगे।"

"कैसे?"

जमादार फिर हक्के-बक्के हुए।

मुन्ना ने कहा, "जमादारी चाहते हो तो चलो, बैठो, लेकिन याद रक्खो, जिस दिनखजानची आएगा, उस दिन तुम्हारा कोई कर्म बाकी नहीं रहेगा। बात मानोगे तोबचे-बचाये चले जाओगे। चोरी और छिनाले का भेद तब तक नहीं खुल सकता जब तक रानी

का मान वापस नहीं आ जाता।"

"रुस्तम की वर्दी पहनकर रुस्तम की जगह पहरा दो और रुस्तम को जमादार मानो।"

कहकर मुन्ना नए गढ़ की तरफ चली।

जमादार जटाशंकर ख़ज़ाने आए। वहाँ से मालखाने गए। रुस्तम की वर्दी पहनी। बाक़ीरहा थोड़ा समय पहरा देने लगे।

पहरा बदला। दूसरे सिपाही आए। बात फैली कि रुस्तम जमादार हो गया। रानीजी नेबनाया है। जमादार और राजाराम बदमाशी में पकड़े गए हैं।

जटाशंकर मुँह दिखाने लायक न रह गए। कुल सिपाही बराबरी का दावा करने लगे औरउन्हीं के दिल से कसूरवार करार देने लगे।

राजाराम भी मुरझाया था। फुर्सत के वक्त एकांत में जमादार से बातचीत करता हुआराज लेने लगा, "जमादार, बड़ा अपमान हुआ। अब तुम सिपाही हो, रुस्तम जमादार।

हुक्म राजा का नहीं। माजरा समझ में नहीं आता।"

जमादार ने पूछा, "तुमको क्या जान पड़ता है?"

"या तो तुम फँसे थे, इस औरत ने झूठमूठ हमको भी फँसाया या बुआ की तौहीन की गईऔर करनेवाला मुसलमान, इसमें राजा की राय हरगिज़ नहीं मालूम देती। बुआ राजा कीमान्य की मान्य हैं।"

"इसके बाद इस मुसलमान का हाल क्या होता है, देखना। राजा एक मुसलमान तवायफ लिएही पड़े रहते हैं। इनके यहाँ बस इतना ही संबँध है। रानी का हाथ है, ऐसा हमारा विचार है। यह भी संभव है कि खजाने की चोरी रानी ने करायी है। बोलो मत, इसमें बड़ा भारी भेद है। किसी को मालूम नहीं हो सका। रुस्तम का आगे चलकर बुरा हाल होगा। तुमको हम दूसरी जगह बदलने की कोशिश करेंगे।" बात आग की तरह फैली।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

5 अगस्त 2022
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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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भाग 26

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

5 अगस्त 2022
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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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