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भाग 37

5 अगस्त 2022

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर कहारों और पहरेदार को हटाकर दरवाजा खोलकर प्रभाकर को ले गई। पंखे से समझ गई, रानी साहिबा उसी बैठके में हैं। बड़ेवाले में ले गई। प्रभाकर ने देखा, एजाजवाले बँगले से यह आलीशान और खुशनुमा है। बड़ी बैठक है।

छप्परखाट बड़ी, मेजें बड़ी। आईने बड़े, फूलदानियाँ बड़ी। दरवाजे बड़े। झूलें बड़ी। सनलाइट की बत्तियाँ भी बड़ी। अधिक प्रकाश, अधिक स्निग्धता, अधिक ऐश्वर्य, अधिक सजावट। संगमरमर का फर्श, खुला हुआ, हिंदूपन के चिह्न। दीवारों और छतों पर अत्यंत सुंदर चित्रकारी। प्रभाकर को चाँदी की कुर्सी पर बैठालकर पास एक सोने के डंडेवाली गद्दीदार कुर्सी रख दी। प्रभाकर साधारण दृष्टि में बड़प्पन लिए हुए देखता रहा। मुन्ना रानी साहिबा के कमरे में गई। हाथ जोड़कर खबर दी।

रानी साहिबा ने हार पहना देने के लिए कहा। फिर दूसरी दासी से घंटे भर में भोजन ले आने के लिए कहा।

हार पहनाकर मुन्ना ने कहा, "रानीजी आ रही हैं। जूतियों की मधुर चटक सुन पड़ी।

प्रभाकर ने देखा, एक सुश्री सुंदरी आ रही थीं। समझकर कि रानी हैं, उठकर खड़े हो गए। हाथ जोड़े। रानी साहिबा ने म्लान नमस्कार किया। अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गईं। मेहमानदारी के विचार से आँचल गले में डाल लिया था।

प्रभाकर की ऐसी कुर्सी थी कि सनलाइट का प्रकाश मुँह पर पड़ता था। रानी साहिबा मुँह देखकर बहुत खुशी हुई।

हवा के साथ बाहर के बागीचे से फूलों की खुशबू आ रही थी। उनके आने पर उस बैठक में पंखा चलने लगा।

"आपका शुभ नाम?" रानी ने पूछा।

"जी, मुझको प्रभाकर कहते हैं।"

"आप यहाँ हैं, हमको न मालूम था। कितने दिनों से हैं?"

"यह आप राजा साहब से..." प्रभाकर सहज लाज से झेंपे।

"आपका इधर राजा साहब के बँगले जाना नहीं हुआ?"

"जा चुका हूँ।"

"उसको देखा होगा?"

"जी, हाँ।"

रानीजी को एक धक्का लगा। सँभालने लगीं। कहा, "हम मँज गए हैं। उससे भी मिले?"

"जी, हाँ, मिले।"

रानी साहिबा झेंपी। कहा, "बाजार का अच्छा माल है। राजा साहब खरीदेंगे तो अच्छा देखकर।"

प्रभाकर खामोश रहे। जब्त करते रहे। कहा, "आदमी की पहचान मुश्किल है।"

"हाँ।" रानी साहिबा ने कहा, "हमने देखा है, कलकत्ते में, मगर फूटी आँख। तारीफ थी। उससे क्या काम?"

"तरफदार बनाना।"

"आप दमदार हैं। गला बतलाता है। पहले किसी से बातचीत ऐसी ही मिल्लतवाली रहेगी, फिर, दिल में जम गया तो फायदे की सोची।"

शराफ़त-भरे बड़प्पन से प्रभाकर सिर झुकाये रहे। हल्का मजाक किया, "राजा साहब को चाहिए था, पहले आपसे मिलाते।"

"हम खुद मिल लिए। राजा साहब का कुसूर हट गया।" 

"जी।"

रानी साहिबा ने पूछा, "आप सिगरेट-पान शौक फ़रमाते हैं?"

"पान खा लूँगा।"

मुन्ना एक बग़ल खड़ी थी। रानी साहिबा ने देखा, वह गिलौरीवाली तश्तरी उठा लायी।

प्रभाकर के सामने मेज पर रख दी। प्रभाकर ने पान खाए। मुन्ना हटकर अपनी जगह खड़ी हो गई।

"आप कब तक कलकत्ता रवाना होंगे?" रानी साहिबा ने पूछा।

"दो ही दिन में, अभी समय का निश्चय, नहीं किया। ज़रूरी काम है।"

"कैसा काम आपके सिपुर्द है, क्या आप बतलाएँगे?"

"अभी नहीं। काम आपके फायदे का है।"

"आपकी हम क्या मदद कर सकते हैं?"

"सहयोग।"

"यह तो यों भी है। आप हमारे घर हैं। आपको नहीं मालूम, हम ऐसी हालत में आपके दोस्त रहेंगे या दुश्मन।"

"सही।"

"आपकी हमारी बातचीत पक्की, मगर राजा साहब से हमारा भेद न खुले।"

"हम ऐसा काम नहीं करते। भेद एक ही है हमारा। उससे आपको फ़ायदा होगा। आप अपनी परिचारिका से समझ लें, जो हमको ले आई है। फिर हमारे काम से, जो हर तरह नेकचलनी का है, आप मददगार हों; राजा साहब भी हैं; आपकी और उनकी पटरी इस तरह बैठ जाएगी।"

"मदद की सूरत क्या हो?"

"आपके यहाँ हमारे केंद्र हैं, देशी कारोबार बढ़ाने के; आप महिला होने के कारण उनकी स्वामिनी; गृहलक्ष्मी शब्द का उपयोग आप ही लोगों के लिए होता है; आप उसकी चारुता बढ़ाने, प्रसार करने में सहायता करें। देश में विदेशी व्यापारियों के कारण अपना व्यवसाय नहीं रह गया। हम उन्हीं के दिए कपड़े से अपनी लाज ढकते हैं; उन्हीं के आईने से मुँह देखते हैं; उन्हीं के सेंट, पौडर, लेवेंडर, क्रीम लगाते हैं; उन्हीं के जूते पहनते हैं; उन्हीं की दियासलाई से आग जलाते हैं।

ब्राह्राण की आग गईं; क्षत्रिय का वीर्य गया; वैश्य का व्यापार चौपट हुआ। यह सब हमको लेना है। इसी के रास्ते हम हैं। बंगभंग एक उपलक्ष्य है। दूसरे प्रांत अभी बहुत नाग्रत नहीं, तो कांग्रेस में सभी हैं, यह स्वदेशीवाला भाव हमको

घर-घर फैलाना है। आप गृहलक्ष्मी तभी हैं। इस समय रानी होकर भी दासी हैं। आपके घर की तलाशी ली जाएगी तो अधिकांश माल विदेशी होगा। आप इसी में हमारी मदद करें।

आपकी सहानुभूति भी हमारे लिए बहुत है।" मुन्ना खुश हो गई। रानी साहिबा दासी हैं, उसको बहुत अच्छा लगा। उसमें रानी का सही स्वत्व आया। वह तन गई।

प्रभाकर कहते गए, "और यहीं से इस उलझन का खात्मा नहीं हो जाता। अर्थशास्त्र की उलझनदार बड़ी-बड़ी बातें हैं, दूसरे मुल्कों से हमारे क्या संबंध रह गए हैं, हम कितने फायदे और कितने घाटे में रहते हैं, बैंक क्या हैं, कारोबार की क्या

दशा है, यह सब एक मुद्दत की पढ़ाई के बाद समझ में आता है। राज्य और राजस्व बिगड़ा हुआ है। इस प्रकार कभी हमारा उत्थान नहीं हो सकता। जाति की नसों में राजनीतिक खून दौड़ाकर एक राजनीतिक जातीयता लाने में कितना श्रम चाहिए, इसका अनुमान आप लगा सकती हैं। मैं आपका एक ऐसा ही सेवक हूँ।"

रानी साहिबा को जान पड़ा, उनका पहला अस्तित्व स्वप्न हो गया है। दूसरा जीवन से उबलता हुआ। देखो, वे मुन्ना से छोटी पड़ गई हैं। मगर उनको बुरा नहीं लग रहा।

हृदय के बंद-बंद खुल गए हैं। मुन्ना खड़ी मुस्करा रही है।

रानी साहिबा ने कहा, "हम आपसे सहमत हैं। आप जैसा कहेंगे, हम करेंगे।"

प्रभाकर सोचते रहे। कहा, "इसकी मार्फत हम ख़बर भेजेंगे और भेजते रहेंगे।"

मुन्ना की तरफ इशारा किया। और कहते गए, "हर एक की अपनी सुविधा होती है। दूसरे की आज्ञा वह अपनी सुविधा को छोड़कर नहीं मान सकता या मान सकती। इसका अनुभव महीने-दो-महीने साथ रहने पर हो जाता है। फिर हमारे बहुत तरह के काम हैं, कौन किस योग्य, इसकी पहचान की जाती है।"

"आप इसकी मार्फत खबर भेज दीजिएगा, और काम बढ़ाते रहिएगा। आज यहीं भोजन कीजिए।

काफी वक्त हो गया। आपको अपनी जगह जाना है।" यह कहकर रानी साहिबा उठीं और अपने पहलेवाले कमरे में गईं। प्रभाकर ने उठकर बिदा किया। पाचक थाली एक मेज से लगा गया था।हाथ-मुँह धुलाकर भोजन से निवृत्त करके मुन्ना प्रभाकर को उसी तरह उनकी कोठी पर

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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भाग 26

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

5 अगस्त 2022
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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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