सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की। कई ड्योढ़ियाँ। हरड्योढ़ी पर पहरेदार। कितने ही मंदिर, उद्यान, मैदान, तालाब, प्राचीर, कचहरी। दोनों ओर आम-लगी सीधी तिरछी, चौड़ी-सँकरी सजी सड़कें। पीपल के नीचे चबूतरा, देवता। इक्के-दुक्के आदमी आते और जाते हुए। भयंकर अट्टालिका। पीछे की तरफ कुछ गिरी हुई। फिर भी विशाल उद्यान की ऊँची प्राचीर से सुरक्षित। भीतर भी रक्षा का अंतराल उठा हुआ। निकासों पर पहरे। पुरखों के सदी-सदी के जरीन वस्त्र, बासन, तंबू, राजगृह के अनेकानेक साधन, माल-असबाब, कागजात और खजाना रहता है। कितने ही कमरों में, दालानों में, बड़ी-बड़ी बैठकों में, आदम-आकार की गची काठ की सैकड़ों पेटियाँ हैं, भीतर से कुफ्ल लगा हुआ। नीचे, सिंह द्वार पर, लोहे के बड़े-बड़े संदूकों में राजकोष है। बंदूक का पहरा। 5-6 बड़े-बड़े आँगन। पीछे, दक्षिण की ओर, एक अहाते में कुल-देवता रघुनाथजी का मंदिर। दूसरी ओर, ऊपर की मंजिल पर, कई अच्छे कमरों के एक अंत:पुर में बूढ़ी मौसी के साथ बुआ रहती हैं। बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ, प्राकार, उद्यान और सरोवर दिखते हैं। सूर्य की किरणों में चमकती हुई हरियाली।
प्रात: और संध्या की स्निग्ध वायु। रात में तारों से भरा आकाश। चाँद, चाँदनी, सूनापन। बुआ विधवा हैं, मौसी भी विधवा। बुआ की उम्र पच्चीस होगी। लंबी सुतारवाली बँधी पुष्ट देह। सुढर गला, भरा उर। कुछ लंबे माँसल चेहरे पर छोटी-छोटी आँखें; पैनी
निगाह। छोटी नाक के बीचो-बीच कटा दाग। एक गाल पर कई दाँत बैठे हुए। चढ़ती जवानी में किसी बलात्कारी ने बात न मानने पर यह सूरत बनायी, फिर गांव छोड़कर भग खड़ा हुआ। इज्जत की बात, ज्यादा फैलाव न होने दिया गया। बुआ की देह जितनी सुंदर है, चेहरा उतना ही भयंकर। वह जागीर दार खानदान की लड़की नहीं, मान्य की मान्य हैं। बुआ के भतीजे का भाग। गरीब थे। जागीरदार को लड़की ब्याहनी थी। लड़का ढूँढा। वह पसंद आए। बुला लिया। बच्चे थे।
पढ़ाया-लिखाया। उठना-बैठना, बातचीत, रईसी के अदब और करीने सिखलाए। फिर निबाह के लिए एक अच्छी खासी जमींदारी लड़की के नाम खरीदकर उनके साथ ब्याह कर दिया। ब्याह पर दामाद साहब का लंबा कुनबा आ धमका। बुआ इसी में हैं बहुत निकट की। जब भी बंगाल के प्रतिष्ठित प्रायः सभी ब्राह्मण और कायस्थ पहले के युक्तप्रांत के रहने वाले हैं, पर वे बंगाली हो गए हैं; यह जागीरदार-परिवार आदि से युक्त प्रांतीयता की रक्षा कर रहा है। आने पर, समधिन-साहिबा यानी राजकुमारी की माँ रानी साहिबा ने बुआ को बुलाया; अपनी सोलह कहारोंवाली गद्दीदार पालकी भेज दी। साथ वर्दी पहने चार सशस्त्र सिपाही। खिड़की के कब्जे पकड़ने के लिए दोनों बगल दो नौकरानियाँ। विधवा बुआ विधवा के श्वेत स्वच्छ वस्त्र से गईं। रानी साहिबा नयी अट्टालिका में रहती थीं। बड़े तख्त पर ऊँची-ऊँची गद्दियाँ बिछी थीं। ऊपर स्वच्छ चादर, कितने ही तकिए लगे हुए। सामने ऊँची चौकी पर पीकदान रखा हुआ। बगल में पानदान। विशाल कक्ष। साफ सुथरा। संगमरमर का फर्श। दीवारों और छत पर अति-सुंदर चित्रकारी। बीच में श्वेत प्रस्तर की मेज पर चीनी फूलदानी में सुगंधित पुष्प। हाथ से खींचे जाने वाले पंखे की रस्सी, दीवार में किए छेद से बाहर निकालकर ह्वील पर चढ़ायी हुई। तीन घंटे दिन और तीन घंटे रात की ड्यूटी पर चार पंखा-बेयरर लगे हुए। पंखा चल रहा है। तख्त की बगल में एक गद्दीदार चौकी रखी हुई है बुआ के बैठने के लिए।
जागीरदार साहब कुलीन हैं। साथ ही राजसी ठाट के धनिक। इनके यहाँ मान्यों की वह मान्यता नहीं रहती जो दूसरी जगह रहती है। यद्यपि इसका मुख्य कारण घमंड है, फिर भी ये अपनी बचत का रास्ता निकाले रहते हैं। इनका कहना है कि राज्य की मुहर रघुनाथजी के नाम है, हम उनके प्रधान कर्मचारी हैं। हमारे सिर पर केवल रघुनाथजी ही रहते हैं; दूसरे अगर इस राज्य की हद में हमारे सिर हुए तो वही जैसे इस राज्य के राजा बन गए; इससे रघुनाथजी का अपमान होता है। इस आधार पर जल्सों में जागीरदार साहब के मान्यों के आसन उनके पीछे ही रखे जाते हैं, हल्के आसनों पर, बगल में भी नहीं।
आने पर बुआ की सेवा के लिए रानी साहिबा ने एक बाँदी भेजी, नाम मुन्ना। रानी साहिबा की प्रायः दस दासियों में एक मुन्ना भी। पाँच छः साल से नौकर। हाल का ब्याह, खातिरदारी कसरत पर और कुछ इस उद्देश्य से भी कि ऐसा दूसरा नहीं कर
सकता, इतना सुख कहीं भी नहीं। मुन्ना की उतनी ही उम्र है जितनी बुआ की। उतनी ऊँची नहीं, पर नाटी भी नहीं। चालाकी की पुतली। चपल, शोख। श्याम रंग। बड़ी-बड़ी आँखें। बंगाल के लंबे-लंबे बाल। विधवा, बदचलन, सहृदय। प्रायः हर प्रधान सिपाही की प्रेमिका। भेद लेने में लासानी। कितने ही रहस्यों की जानकार। प्रधान-अप्रधान नायिका, दूती, सखी। रानी साहिबा ने जब-जब रंडी रखने के जवाब में पति को प्रेमी चुनकर झुकाया, तब-तब मुन्ना ने प्रधान दूती का पाठ अदा किया। उसी से रानी साहिबा को खबर मिली, बुआ की नाक कटी है, गाल पर दाँतों के दाग हैं। अनुगामिनी सहचरी बनाने का इतना साधन काफी है। रानी साहिबा ने समधिन को बुलाया। मुन्ना की जबान बंगला है। असल में इसका नाम है मोना या मनोरमा। बुआ इलाहाबाद की ठेठ देहाती बोलती हैं। मुन्ना ने अपनी सरल सुबोध बंगला में रानी साहिबा से मिलने के करीने कई दफे समझाए, पर बुआ की समझ में कुछ न आया। फिर बुआ की मान्य के मान्य के संबंध में युक्तप्रांत की बँधी धारणा थी, उसमें परिवर्तन हिंदूपन से हाथ धोना था। मुन्ना के सश्रद्ध रानी साहिबा के उच्चारण से बुआ अपने बड़प्पन को दबाकर खामोश रह जाती थीं, सोचती थीं, धर्म के अनुसार रानी साहिबा में और मुन्ना में उनके समक्ष कौन-सा फर्क है? जो काम उनके लिए मुन्ना करती है, वही रानी साहिबा भी पुण्य के संचय के लिए कर सकती हैं। जो कुछ उन्होंने सीखा, वह है बंगाली ढंग से साड़ी पहनना, मशहरी लगाना, तकिए का सहारा लेना, बंगाली भाजियों को पूर्वापर विधि से खाना। यह भी इसलिए कि उनसे कहा गया था कि उनकी बहू अर्थात् राजकुमारी बिना इसके उनसे मिलेंगी नहीं, जब वह आएंगी तब इसी वेश में रहना होगा, उनके जल-पान के लिए ऐसी ही भाजियाँ देनी होंगी, थाली इसी तरह लगाई जाएगी; नहीं तो वह भाग जाएँगी, एक क्षण के लिए नहीं ठहर सकतीं।