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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022

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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की। कई ड्योढ़ियाँ। हरड्योढ़ी पर पहरेदार। कितने ही मंदिर, उद्यान, मैदान, तालाब, प्राचीर, कचहरी।  दोनों ओर आम-लगी सीधी तिरछी, चौड़ी-सँकरी सजी सड़कें। पीपल के नीचे चबूतरा, देवता। इक्के-दुक्के आदमी आते और जाते हुए। भयंकर अट्टालिका। पीछे की तरफ कुछ गिरी हुई। फिर भी विशाल उद्यान की ऊँची प्राचीर से सुरक्षित। भीतर भी रक्षा का अंतराल उठा हुआ। निकासों पर पहरे। पुरखों के सदी-सदी के जरीन वस्त्र, बासन, तंबू, राजगृह के अनेकानेक साधन, माल-असबाब, कागजात और खजाना रहता है। कितने ही कमरों में, दालानों में, बड़ी-बड़ी बैठकों में, आदम-आकार की गची काठ की सैकड़ों पेटियाँ हैं, भीतर से कुफ्ल लगा हुआ। नीचे, सिंह द्वार पर, लोहे के बड़े-बड़े संदूकों में राजकोष है। बंदूक का पहरा। 5-6 बड़े-बड़े आँगन। पीछे, दक्षिण की ओर, एक अहाते में कुल-देवता रघुनाथजी का मंदिर। दूसरी ओर, ऊपर की मंजिल पर, कई अच्छे कमरों के एक अंत:पुर में बूढ़ी मौसी के साथ बुआ रहती हैं। बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ, प्राकार, उद्यान और सरोवर दिखते हैं। सूर्य की किरणों में चमकती हुई हरियाली। 

प्रात: और संध्या की स्निग्ध वायु। रात में तारों से भरा आकाश। चाँद, चाँदनी, सूनापन। बुआ विधवा हैं, मौसी भी विधवा। बुआ की उम्र पच्चीस होगी। लंबी सुतारवाली बँधी पुष्ट देह। सुढर गला, भरा उर। कुछ लंबे माँसल चेहरे पर छोटी-छोटी आँखें; पैनी

निगाह। छोटी नाक के बीचो-बीच कटा दाग। एक गाल पर कई दाँत बैठे हुए। चढ़ती जवानी में किसी बलात्कारी ने बात न मानने पर यह सूरत बनायी, फिर गांव छोड़कर भग खड़ा हुआ। इज्जत की बात, ज्यादा फैलाव न होने दिया गया। बुआ की देह जितनी सुंदर है, चेहरा उतना ही भयंकर। वह जागीर दार खानदान की लड़की नहीं, मान्य की मान्य हैं। बुआ के भतीजे का भाग। गरीब थे। जागीरदार को लड़की ब्याहनी थी। लड़का ढूँढा। वह पसंद आए। बुला लिया। बच्चे थे। 

पढ़ाया-लिखाया। उठना-बैठना, बातचीत, रईसी के अदब और करीने सिखलाए। फिर निबाह के लिए एक अच्छी खासी जमींदारी लड़की के नाम खरीदकर उनके साथ ब्याह कर दिया। ब्याह पर दामाद साहब का लंबा कुनबा आ धमका। बुआ इसी में हैं बहुत निकट की। जब भी बंगाल के प्रतिष्ठित प्रायः सभी ब्राह्मण और कायस्थ पहले के युक्तप्रांत के रहने वाले हैं, पर वे बंगाली हो गए हैं; यह जागीरदार-परिवार आदि से युक्त प्रांतीयता की रक्षा कर रहा है।  आने पर, समधिन-साहिबा यानी राजकुमारी की माँ रानी साहिबा ने बुआ को बुलाया; अपनी सोलह कहारोंवाली गद्दीदार पालकी भेज दी। साथ वर्दी पहने चार सशस्त्र सिपाही। खिड़की के कब्जे पकड़ने के लिए दोनों बगल दो नौकरानियाँ। विधवा बुआ विधवा के श्वेत स्वच्छ वस्त्र से गईं। रानी साहिबा नयी अट्टालिका में रहती थीं। बड़े तख्त पर ऊँची-ऊँची गद्दियाँ बिछी थीं। ऊपर स्वच्छ चादर, कितने ही तकिए लगे हुए। सामने ऊँची चौकी पर पीकदान रखा हुआ। बगल में पानदान। विशाल कक्ष। साफ सुथरा। संगमरमर का फर्श। दीवारों और छत पर अति-सुंदर चित्रकारी। बीच में श्वेत प्रस्तर की मेज पर चीनी फूलदानी में सुगंधित पुष्प। हाथ से खींचे जाने वाले पंखे की रस्सी, दीवार में किए छेद से बाहर निकालकर ह्वील पर चढ़ायी हुई। तीन घंटे दिन और तीन घंटे रात की ड्यूटी पर चार पंखा-बेयरर लगे हुए। पंखा चल रहा है। तख्त की बगल में एक गद्दीदार चौकी रखी हुई है बुआ के बैठने के लिए।

जागीरदार साहब कुलीन हैं। साथ ही राजसी ठाट के धनिक। इनके यहाँ  मान्यों की वह मान्यता नहीं रहती जो दूसरी जगह रहती है। यद्यपि इसका मुख्य कारण घमंड है, फिर  भी ये अपनी बचत का रास्ता निकाले रहते हैं। इनका कहना है कि राज्य की मुहर रघुनाथजी के नाम है, हम उनके प्रधान कर्मचारी हैं। हमारे सिर पर केवल रघुनाथजी ही रहते हैं; दूसरे अगर इस राज्य की हद में हमारे सिर हुए तो वही जैसे इस राज्य के राजा बन गए; इससे रघुनाथजी का अपमान होता है। इस आधार पर जल्सों में जागीरदार साहब के मान्यों के आसन उनके पीछे ही रखे जाते हैं, हल्के आसनों पर, बगल में भी नहीं।

आने पर बुआ की सेवा के लिए रानी साहिबा ने एक बाँदी भेजी, नाम मुन्ना। रानी साहिबा की प्रायः दस दासियों में एक मुन्ना भी। पाँच छः साल से नौकर। हाल का ब्याह, खातिरदारी कसरत पर और कुछ इस उद्देश्य से भी कि ऐसा दूसरा नहीं कर

सकता, इतना सुख कहीं भी नहीं। मुन्ना की उतनी ही उम्र है जितनी बुआ की। उतनी ऊँची नहीं, पर नाटी भी नहीं। चालाकी की पुतली। चपल, शोख। श्याम रंग। बड़ी-बड़ी आँखें। बंगाल के लंबे-लंबे बाल। विधवा, बदचलन, सहृदय। प्रायः हर प्रधान सिपाही की प्रेमिका। भेद लेने में लासानी। कितने ही रहस्यों की जानकार। प्रधान-अप्रधान नायिका, दूती, सखी। रानी साहिबा ने जब-जब रंडी रखने के जवाब में पति को प्रेमी चुनकर झुकाया, तब-तब मुन्ना ने प्रधान दूती का पाठ अदा किया। उसी से रानी साहिबा को खबर मिली, बुआ की नाक कटी है, गाल पर दाँतों के दाग हैं। अनुगामिनी सहचरी बनाने का इतना साधन काफी है। रानी साहिबा ने समधिन को बुलाया। मुन्ना की जबान बंगला है। असल में इसका नाम है मोना या मनोरमा। बुआ इलाहाबाद की ठेठ देहाती बोलती हैं। मुन्ना ने अपनी सरल सुबोध बंगला में रानी साहिबा से मिलने के करीने कई दफे समझाए, पर बुआ की समझ में कुछ न आया। फिर बुआ की मान्य के मान्य के संबंध में युक्तप्रांत की बँधी धारणा थी, उसमें परिवर्तन हिंदूपन से हाथ धोना था। मुन्ना के सश्रद्ध रानी साहिबा के उच्चारण से बुआ अपने बड़प्पन को दबाकर खामोश रह जाती थीं, सोचती थीं, धर्म के अनुसार रानी साहिबा में और मुन्ना में उनके समक्ष कौन-सा फर्क है? जो काम उनके लिए मुन्ना करती है, वही रानी साहिबा भी पुण्य के संचय के लिए कर सकती हैं। जो कुछ उन्होंने सीखा, वह है बंगाली ढंग से साड़ी पहनना, मशहरी लगाना, तकिए का सहारा लेना, बंगाली भाजियों को पूर्वापर विधि से खाना। यह भी इसलिए कि उनसे कहा गया था कि उनकी बहू अर्थात् राजकुमारी बिना इसके उनसे मिलेंगी नहीं, जब वह आएंगी तब इसी वेश में रहना होगा, उनके जल-पान के लिए ऐसी ही भाजियाँ देनी होंगी, थाली इसी तरह लगाई जाएगी; नहीं तो वह भाग जाएँगी, एक क्षण के लिए नहीं ठहर सकतीं। 

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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भाग 35

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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