shabd-logo

भाग 12

5 अगस्त 2022

16 बार देखा गया 16

दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर हिम्मत बाँधी और खड़ा हो गया।

"रुस्तम, क्या ग़लती की?" जमादार ने गंभीर होकर पूछा।

रुस्तम का पारा चढ़ गया। गुस्से से कहा, "हम इसका जवाब देंगे इसी कुर्सी परबैठकर।" यह कहकर रुस्तम चला।

जमादार ने खजाने के सिपाही से कहा, "इसको पकड़ लो।"

तलवार निकालकर खजाने का सिपाही बढ़ा। रुस्तम को जैसे किसी ने बाँध लिया।

जमादार ने कहा, "तुम कितना बड़ा कसूर कर रहे हो, तुम्हारी समझ में आ रहा है?

अभी मुआफी है। फिर उधर नहीं, इधर से निकल जाना होगा और हमेशा के लिए।''

रुस्तम के जी में आ रहा था, भगकर मालखाने के पहरे पर चला जाए और दो रोज किसीतरह गुज़ार दे, लेकिन पैर नहीं उठ रहे थे।

जमादार ने कहा, "इधर आओ।"

रुस्तम ने देखा, कदम जमादार की ही तरफ उठ रहा है, दूसरी तरफ नहीं। वह चला।

जमादार अपनी कोठरी में गए। रुस्तम भी पीछे-पीछे।

"जमादार, मुसलमान हूँ, लेकिन पैर पकड़ता हूँ। मैं ऐसा आदमी नहीं था। मुझसे छलकिया गया।"

"किसने किया?"

रुस्तम की ज़बान बंद हो गई। होंठों पर उँगली रखकर इशारे से समझाया कि बोल नहींफूट रहा।

जमादार ने कहा, "अच्छा, लो राजा को और बोलो।"

रुस्तम पर जैसे कूड़ा पड़ा। एक चीख निकली।

जमादार ने कहा, "अच्छा, तुम खजाने के पहरे में रहो, खजाने का पहरा हम मालखानेभेज देंगे।"

"जमादार, खाना-खराब न करो। हमारी तरक्की होनेवाली है।"

"कैसी?"

"हमको जमादारी मिलेगी।"

"अरे बेवकूफ, तेरी नौकरी जाएगी।"

रुस्तम घबराया। जमादार ने कहा, "जब तुम्हारी तरक्की होगी, सिफ़ारिश हम करेंगे,तरक्की राजा देंगे।"

'रानीजी देनेवाली हैं, उनका एक काम करना है।"

"रानीजी किसी राज-काज में दस्तन्दाजी कर सकती हैं? राज्य की मुहर पर उनका नामभी है?"

रुस्तम को मालूम हुआ, वह नौकरी भी गई। कहा, "जमादार, गरीब आदमी हूँ, पेट से नमारिएगा।"

"कुल बातें बता दो। किसने तुमसे कहा?"

मुन्ना के स्मरणमात्र से रुस्तम के सिर पर माया-जाल छा गया। फिर न बोल सका,

जैसे उसकी सत्ता ही गायब हो गई।

जमादार ने पूछा, "कुछ इशारा?"।

"व...रोज...।"

"अच्छा, तुम अपने पहरे पर जाओ, तुमको कुछ नहीं होगा अगर तुम सिपाही रहोगे।"

थोड़ी देर बाद मुन्ना आई। जटाशंकर का जी मरोड़ खाकर रह गया। मुन्ना को उसीकिनारे देखकर उठे, गए और हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

"जमादार, कभी मत भूलिए कि मुन्ना छिनी है, यहाँ रानी हैं। बातें जाती हैं। हमभी भला-बुरा करते-कराते हैं। राजा रहेंगे तो रानी भी रहेंगी, नहीं तो रंडीरहेगी। जो रानी का सम्मान रंडी को दिलाता है, वह राजा नहीं, भंड़वा है।

तुम्हारी स्त्री रानी में हैं, रंडी में नहीं। वहाँ जाओगे, तो रंडी को राजदोगे। राजा अब राजा नहीं क्योंकि उसकी रानी कहाँ हैं?"

जमादार को अक्षर-अक्षर सत्य जान पड़ा। पर घबराए कि राजा की तौहीन हुई। सोचा,रुस्तम इससे कह आया। कहा, "क्या वह चला गया?"

"वह कौन?" मुन्ना ने डाँटकर पूछा।

जमादार सहम गए। उस पर उनका सम्मान न चढ़ा। मुन्ना समझ गई कि उसका आनर पकड़ागया। चलने को हुई तो मालूम हुआ, जमादार से जुड़ गई है। कहा, "राजा से पूछ सकतेहो कि रंडी को रानी का सम्मान क्यों दिया जाता है? हम कह चुके कि रानी का मानछिना है। वह मान रानी का आदमी छीनेगा तभी रानी रानी है। फिर दूसरा सँवारेगा।

जब ऐसा होगा, रानी के तरफदार रानी को मान देते फिरेंगे। अब वह रानी का आदमीहै, इसलिए राजा का भी है। तुम्हारा सम्मान रानी के आदमी ने नहीं किया, मैंनेकिया। तुम कल वचन दे चुके थे, आज पाल न सके। हमने कह दिया था, थोड़ा-सा अपमानसह जाओ; पर तुम नहीं मान सके। तुम मर्द नहीं, इतर हो। तुमने हमारा आदमी बिगाड़दिया। हम तुमसे पूछते हैं, रानी का अपमान तुम करोगे? तुमने देखा है रानी को?

बोलो, नहीं तो ठोंकती हूँ अभी लौटकर। तुमसे कहा कि तुम दर्ज हो गए। रानी कीडायरी में तुम लिख गए कि रानी का अपमान किया। आज तुम राजा से कहोगे तो क्याहोगा? हम कल लिखा चुके।"

जमादार का थूक सूख गया। कहा, "हमसे खता हुई।"

"यह बताओ, इस रंडी को देखा है या नहीं?"

"देखा है।"

"सलामी दी?"

"हाँ, दी।"

"वह किसकी सलामी है?"

"रानीजी की।

"वह रानी है?"

"नहीं।"

"तुम इस राजा के बच्चे से पूछ सकते हो कि रानी की सलामी इसको क्यों दी जातीहै?"

जमादार चुप रहे।

"यही तलवार राजा को मारने के काम में खोल सकते हो?"

"नहीं।"

"लेकिन कोई अगर उस पर चढ़ जाए और राजा कहे-?"

"रानी पर?"

"जिसके पास हम रहते हैं, यहाँ नहीं, वहाँ।"

जमादार का सिर झुक गया।

"इसी को मान कहते हैं। यह मान मर्द ने छीन लिया है। यह सिपाही जो मान देता है,

वही मान उस सिपाही को दो और अपनी ड्योढ़ी पर; नहीं तो समझ जाओ कुल बातों के

साथ पहले ही पेश किए जाओगे।"

जमादार का सिर न उठा। मुन्ना ने फिर कहा, "बोलो, क्या मंजूर है? "

"डयोढ़ी पर एक दूसरा सिपाही भी रहता है, वह देखेगा।"

"हर सिपाही से तुम्हारी तौहीन करायी जाएगी, जूते लगाए जाएंगे और निकालकर बाहरकर दिए जाओगे।"।

जमादार के आँसू आ गए। कहा, "मंजूर है।"

मुन्ना चली, पीछे-पीछे जमादार। समझ गए कि खिड़की के रास्ते निकलकर रुस्तम इससेकह आया। भेद खुल जाने पर क्या होगा, सोचकर घबराए। चारा न था। चारों तरफ से गसेहुए थे। ड्योढ़ी पर मुन्ना खड़ी हो गई। कहा, "खड़े रहो।"

सिपाही अपने जमादार की बेइज्जती देखकर हुक्म पाने के लिए देखता रह गया। मुन्नाने सिपाही से पूछा, "यह कौन है?"

सिपाही जैसे बीच से टूट गया। तलवार की मूठ के लिए हाथ बढ़ाया, पर हाथ बँध गया।

मुन्ना ने डाँटकर पूछा, "यह कौन है?"

सिपाही ने कहना चाहा, 'जमादार', पर जीभ ऐंठ गई। मुन्ना ने कहा, "रानीजी कीसलामी लाओ।"

जमादार ने हाथ का इशारा किया। सिपाही ने तलवार निकालकर रानीजी की सलामी दी।

सिपाही को मालूम हुआ, एक नया जोश उसमें भर गया।

मुन्ना ने कहा, "यह बदमाश है। इसने रानीजी की तौहीन की।"

सिपाही क्रोध से जमादार को देखने लगा।

मुन्ना ने कहा, "सिपाही, कुछ मत बोलो, रानीजी मुआफ़ करना भी जानती हैं। अभीदेखो और समझो।"

मुन्ना मालखाने में रुस्तम के पास गई। कहा, "तुम्हारी तौहीन हुई इसलिए आज हीतुम जमादार बनाए जाओगे। अपनी वर्दी उतारो।" सिपाही ने उतार दी। मुन्ना नेवर्दी पहनी। कहा, "चलो।" सिपाही डरा। पर हिम्मत बाँधकर चला। दोनों नीचे

ख़ज़ाने के पहरे पर आए। मुन्ना को देखकर सिपाही और जमादार दोनों घबराए जैसेराज्य उलट गया हो। मुन्ना ने तलवार को सलामी दी, कहा, "यह रानीजी की सलामी,"

फिर जमादार की सलामी दी, कहा "यह जमादार की सलामी।"

फिर ख़जाने के सिपाही से कहा, "अब इसको देखो।" रुस्तम की तरफ उँगली उठाई।

रुस्तम काला पड़ गया था, झुका हुआ टूटा जा रहा था जैसे कोई बोझ सँभाला नसँभालता हो।

मुन्ना ने कहा, "यही पाप है रानीजी पर चढ़ाया हुआ। इसी को मारना है।"

फिर कहा, "सिपाही अब यह है, वर्दी वहाँ मिलेगी।"

रुस्तम पूरी शक्ति से लिपटकर खड़ा हो गया।

ख़ज़ाने के सिपाही से मुन्ना ने कहा, "जब तक यह पाप नहीं मारा जाता, यह बात

किसी से न कहना। कहने पर अच्छा न होगा।"

रुस्तम को तलवार देकर मुन्ना ने कहा, "यह शक्ति लो और पहरे पर चलो, हम आतेहैं। अभी रानीजी का काम बाकी है। रानीजी की निगाह में अब तुम्हीं जमादार हो।"रुस्तम ने तलवार ले ली और चला गया। मुन्ना ने जमादार को देख कर कहा, 'सिपाही,इधर आओ।"

जमादार ने कहा, "हद हो गई।" खज़ाने के सिपाही की त्योरियाँ चढ़ीं। पर कुछ कहतेन बना। मुन्ना ने कहा, "वह सिपाही ही था। उसकी भी तौहीन हुई। तुम भी कुछ करचुके होगे। रानीजी कुछ नहीं, क्यों?"

"इधर जाओ" कहकर मुन्ना आगे बढ़ी। जमादार पीछे-पीछे चले। दूसरी मंजिल के

सदरवाले जीने के पास मुन्ना ने जमादार से कहा, "घंटे भर बाद बगीचे में आओ।

छिपे रहना। वह औरत इस मुसलमान के बच्चे से फँसी है। देख लो। साथ गवाह भी लेतेआना इसी सिपाही को। खजाने का सदर फाटक बंद कर देना, यहाँ कौन है? लेकिन कुछकहना मत। तुम नहानेवाली सीढ़ी की दीवार की बग़ल में छिपे रहना और अपने आदमी कोउसी तरफ के आम के पेड़ पर चढ़ा देना। तुम पहले आना। उस आदमी को आधे घंटे बादउतरने को कहना।"

मालखाने में आकर रुस्तम से कहा, "यहाँ तो कोई आता-जाता नहीं। यह जमादार इस औरतसे फँसा है। यह नहाने जाएगी। नहाते वक्त मुझे भेज देगी। तभी दोनों अपना कामकरेंगे। मैं तुझे भेजूँगी। लेकिन गवाह ले जाना तंबूवाले पहरेदार को। खिड़की केपास उसको छिपा देना। वह कुछ कहे नहीं। फैसला रानीजी करेंगी। वह गवाही देगा।

जमादार लौटेगा तो वह देखेगा ही। खिड़की से आवाज दे देना, देख लिया।""बिना देखे?""अरे गधा बाद को तो देखेगा। निकलेगा कहाँ से? और राह नहीं।

तंबूवाले को समझा देना।"

39
रचनाएँ
चोटी की पकड़
0.0
उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
1

चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
7
1
0

सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

2

भाग 2

5 अगस्त 2022
0
0
0

मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

3

भाग 3

5 अगस्त 2022
0
0
0

ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

4

भाग 4

5 अगस्त 2022
0
0
0

राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

5

भाग 5

5 अगस्त 2022
0
0
0

दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

6

भाग 6

5 अगस्त 2022
0
0
0

यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

7

भाग 7

5 अगस्त 2022
0
0
0

तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

8

भाग 8

5 अगस्त 2022
0
0
0

पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

9

भाग 9

5 अगस्त 2022
0
0
0

राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

10

भाग 10

5 अगस्त 2022
0
0
0

पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

11

भाग 11

5 अगस्त 2022
0
0
0

दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

12

भाग 12

5 अगस्त 2022
0
0
0

दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

13

भाग 13

5 अगस्त 2022
0
0
0

मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

14

भाग 14

5 अगस्त 2022
0
0
0

जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

15

भाग 15

5 अगस्त 2022
0
0
0

बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

16

भाग 16

5 अगस्त 2022
0
0
0

कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

17

भाग 17

5 अगस्त 2022
0
0
0

राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

18

भाग 18

5 अगस्त 2022
0
0
0

रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

19

भाग 19

5 अगस्त 2022
0
0
0

मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

20

भाग 20

5 अगस्त 2022
0
0
0

यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

21

भाग 21

5 अगस्त 2022
0
0
0

भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

22

भाग 22

5 अगस्त 2022
0
0
0

प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

23

भाग 23

5 अगस्त 2022
0
0
0

ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

24

भाग 24

5 अगस्त 2022
0
0
0

खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

25

भाग 25

5 अगस्त 2022
0
0
0

डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

26

भाग 26

5 अगस्त 2022
0
0
0

मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

27

भाग 27

5 अगस्त 2022
0
0
0

मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

28

भाग 28

5 अगस्त 2022
0
0
0

रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

29

भाग 29

5 अगस्त 2022
0
0
0

मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

30

भाग 30

5 अगस्त 2022
0
0
0

रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

31

भाग 31

5 अगस्त 2022
0
0
0

रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

32

भाग 32

5 अगस्त 2022
0
0
0

घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

33

भाग 33

5 अगस्त 2022
0
0
0

प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

34

भाग 34

5 अगस्त 2022
0
0
0

कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

35

भाग 35

5 अगस्त 2022
0
0
0

जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

36

भाग 36

5 अगस्त 2022
0
0
0

चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

37

भाग 37

5 अगस्त 2022
0
0
0

आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

38

भाग 38

5 अगस्त 2022
0
0
0

प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

39

भाग 39

5 अगस्त 2022
0
0
0

यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए