दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर हिम्मत बाँधी और खड़ा हो गया।
"रुस्तम, क्या ग़लती की?" जमादार ने गंभीर होकर पूछा।
रुस्तम का पारा चढ़ गया। गुस्से से कहा, "हम इसका जवाब देंगे इसी कुर्सी परबैठकर।" यह कहकर रुस्तम चला।
जमादार ने खजाने के सिपाही से कहा, "इसको पकड़ लो।"
तलवार निकालकर खजाने का सिपाही बढ़ा। रुस्तम को जैसे किसी ने बाँध लिया।
जमादार ने कहा, "तुम कितना बड़ा कसूर कर रहे हो, तुम्हारी समझ में आ रहा है?
अभी मुआफी है। फिर उधर नहीं, इधर से निकल जाना होगा और हमेशा के लिए।''
रुस्तम के जी में आ रहा था, भगकर मालखाने के पहरे पर चला जाए और दो रोज किसीतरह गुज़ार दे, लेकिन पैर नहीं उठ रहे थे।
जमादार ने कहा, "इधर आओ।"
रुस्तम ने देखा, कदम जमादार की ही तरफ उठ रहा है, दूसरी तरफ नहीं। वह चला।
जमादार अपनी कोठरी में गए। रुस्तम भी पीछे-पीछे।
"जमादार, मुसलमान हूँ, लेकिन पैर पकड़ता हूँ। मैं ऐसा आदमी नहीं था। मुझसे छलकिया गया।"
"किसने किया?"
रुस्तम की ज़बान बंद हो गई। होंठों पर उँगली रखकर इशारे से समझाया कि बोल नहींफूट रहा।
जमादार ने कहा, "अच्छा, लो राजा को और बोलो।"
रुस्तम पर जैसे कूड़ा पड़ा। एक चीख निकली।
जमादार ने कहा, "अच्छा, तुम खजाने के पहरे में रहो, खजाने का पहरा हम मालखानेभेज देंगे।"
"जमादार, खाना-खराब न करो। हमारी तरक्की होनेवाली है।"
"कैसी?"
"हमको जमादारी मिलेगी।"
"अरे बेवकूफ, तेरी नौकरी जाएगी।"
रुस्तम घबराया। जमादार ने कहा, "जब तुम्हारी तरक्की होगी, सिफ़ारिश हम करेंगे,तरक्की राजा देंगे।"
'रानीजी देनेवाली हैं, उनका एक काम करना है।"
"रानीजी किसी राज-काज में दस्तन्दाजी कर सकती हैं? राज्य की मुहर पर उनका नामभी है?"
रुस्तम को मालूम हुआ, वह नौकरी भी गई। कहा, "जमादार, गरीब आदमी हूँ, पेट से नमारिएगा।"
"कुल बातें बता दो। किसने तुमसे कहा?"
मुन्ना के स्मरणमात्र से रुस्तम के सिर पर माया-जाल छा गया। फिर न बोल सका,
जैसे उसकी सत्ता ही गायब हो गई।
जमादार ने पूछा, "कुछ इशारा?"।
"व...रोज...।"
"अच्छा, तुम अपने पहरे पर जाओ, तुमको कुछ नहीं होगा अगर तुम सिपाही रहोगे।"
थोड़ी देर बाद मुन्ना आई। जटाशंकर का जी मरोड़ खाकर रह गया। मुन्ना को उसीकिनारे देखकर उठे, गए और हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
"जमादार, कभी मत भूलिए कि मुन्ना छिनी है, यहाँ रानी हैं। बातें जाती हैं। हमभी भला-बुरा करते-कराते हैं। राजा रहेंगे तो रानी भी रहेंगी, नहीं तो रंडीरहेगी। जो रानी का सम्मान रंडी को दिलाता है, वह राजा नहीं, भंड़वा है।
तुम्हारी स्त्री रानी में हैं, रंडी में नहीं। वहाँ जाओगे, तो रंडी को राजदोगे। राजा अब राजा नहीं क्योंकि उसकी रानी कहाँ हैं?"
जमादार को अक्षर-अक्षर सत्य जान पड़ा। पर घबराए कि राजा की तौहीन हुई। सोचा,रुस्तम इससे कह आया। कहा, "क्या वह चला गया?"
"वह कौन?" मुन्ना ने डाँटकर पूछा।
जमादार सहम गए। उस पर उनका सम्मान न चढ़ा। मुन्ना समझ गई कि उसका आनर पकड़ागया। चलने को हुई तो मालूम हुआ, जमादार से जुड़ गई है। कहा, "राजा से पूछ सकतेहो कि रंडी को रानी का सम्मान क्यों दिया जाता है? हम कह चुके कि रानी का मानछिना है। वह मान रानी का आदमी छीनेगा तभी रानी रानी है। फिर दूसरा सँवारेगा।
जब ऐसा होगा, रानी के तरफदार रानी को मान देते फिरेंगे। अब वह रानी का आदमीहै, इसलिए राजा का भी है। तुम्हारा सम्मान रानी के आदमी ने नहीं किया, मैंनेकिया। तुम कल वचन दे चुके थे, आज पाल न सके। हमने कह दिया था, थोड़ा-सा अपमानसह जाओ; पर तुम नहीं मान सके। तुम मर्द नहीं, इतर हो। तुमने हमारा आदमी बिगाड़दिया। हम तुमसे पूछते हैं, रानी का अपमान तुम करोगे? तुमने देखा है रानी को?
बोलो, नहीं तो ठोंकती हूँ अभी लौटकर। तुमसे कहा कि तुम दर्ज हो गए। रानी कीडायरी में तुम लिख गए कि रानी का अपमान किया। आज तुम राजा से कहोगे तो क्याहोगा? हम कल लिखा चुके।"
जमादार का थूक सूख गया। कहा, "हमसे खता हुई।"
"यह बताओ, इस रंडी को देखा है या नहीं?"
"देखा है।"
"सलामी दी?"
"हाँ, दी।"
"वह किसकी सलामी है?"
"रानीजी की।
"वह रानी है?"
"नहीं।"
"तुम इस राजा के बच्चे से पूछ सकते हो कि रानी की सलामी इसको क्यों दी जातीहै?"
जमादार चुप रहे।
"यही तलवार राजा को मारने के काम में खोल सकते हो?"
"नहीं।"
"लेकिन कोई अगर उस पर चढ़ जाए और राजा कहे-?"
"रानी पर?"
"जिसके पास हम रहते हैं, यहाँ नहीं, वहाँ।"
जमादार का सिर झुक गया।
"इसी को मान कहते हैं। यह मान मर्द ने छीन लिया है। यह सिपाही जो मान देता है,
वही मान उस सिपाही को दो और अपनी ड्योढ़ी पर; नहीं तो समझ जाओ कुल बातों के
साथ पहले ही पेश किए जाओगे।"
जमादार का सिर न उठा। मुन्ना ने फिर कहा, "बोलो, क्या मंजूर है? "
"डयोढ़ी पर एक दूसरा सिपाही भी रहता है, वह देखेगा।"
"हर सिपाही से तुम्हारी तौहीन करायी जाएगी, जूते लगाए जाएंगे और निकालकर बाहरकर दिए जाओगे।"।
जमादार के आँसू आ गए। कहा, "मंजूर है।"
मुन्ना चली, पीछे-पीछे जमादार। समझ गए कि खिड़की के रास्ते निकलकर रुस्तम इससेकह आया। भेद खुल जाने पर क्या होगा, सोचकर घबराए। चारा न था। चारों तरफ से गसेहुए थे। ड्योढ़ी पर मुन्ना खड़ी हो गई। कहा, "खड़े रहो।"
सिपाही अपने जमादार की बेइज्जती देखकर हुक्म पाने के लिए देखता रह गया। मुन्नाने सिपाही से पूछा, "यह कौन है?"
सिपाही जैसे बीच से टूट गया। तलवार की मूठ के लिए हाथ बढ़ाया, पर हाथ बँध गया।
मुन्ना ने डाँटकर पूछा, "यह कौन है?"
सिपाही ने कहना चाहा, 'जमादार', पर जीभ ऐंठ गई। मुन्ना ने कहा, "रानीजी कीसलामी लाओ।"
जमादार ने हाथ का इशारा किया। सिपाही ने तलवार निकालकर रानीजी की सलामी दी।
सिपाही को मालूम हुआ, एक नया जोश उसमें भर गया।
मुन्ना ने कहा, "यह बदमाश है। इसने रानीजी की तौहीन की।"
सिपाही क्रोध से जमादार को देखने लगा।
मुन्ना ने कहा, "सिपाही, कुछ मत बोलो, रानीजी मुआफ़ करना भी जानती हैं। अभीदेखो और समझो।"
मुन्ना मालखाने में रुस्तम के पास गई। कहा, "तुम्हारी तौहीन हुई इसलिए आज हीतुम जमादार बनाए जाओगे। अपनी वर्दी उतारो।" सिपाही ने उतार दी। मुन्ना नेवर्दी पहनी। कहा, "चलो।" सिपाही डरा। पर हिम्मत बाँधकर चला। दोनों नीचे
ख़ज़ाने के पहरे पर आए। मुन्ना को देखकर सिपाही और जमादार दोनों घबराए जैसेराज्य उलट गया हो। मुन्ना ने तलवार को सलामी दी, कहा, "यह रानीजी की सलामी,"
फिर जमादार की सलामी दी, कहा "यह जमादार की सलामी।"
फिर ख़जाने के सिपाही से कहा, "अब इसको देखो।" रुस्तम की तरफ उँगली उठाई।
रुस्तम काला पड़ गया था, झुका हुआ टूटा जा रहा था जैसे कोई बोझ सँभाला नसँभालता हो।
मुन्ना ने कहा, "यही पाप है रानीजी पर चढ़ाया हुआ। इसी को मारना है।"
फिर कहा, "सिपाही अब यह है, वर्दी वहाँ मिलेगी।"
रुस्तम पूरी शक्ति से लिपटकर खड़ा हो गया।
ख़ज़ाने के सिपाही से मुन्ना ने कहा, "जब तक यह पाप नहीं मारा जाता, यह बात
किसी से न कहना। कहने पर अच्छा न होगा।"
रुस्तम को तलवार देकर मुन्ना ने कहा, "यह शक्ति लो और पहरे पर चलो, हम आतेहैं। अभी रानीजी का काम बाकी है। रानीजी की निगाह में अब तुम्हीं जमादार हो।"रुस्तम ने तलवार ले ली और चला गया। मुन्ना ने जमादार को देख कर कहा, 'सिपाही,इधर आओ।"
जमादार ने कहा, "हद हो गई।" खज़ाने के सिपाही की त्योरियाँ चढ़ीं। पर कुछ कहतेन बना। मुन्ना ने कहा, "वह सिपाही ही था। उसकी भी तौहीन हुई। तुम भी कुछ करचुके होगे। रानीजी कुछ नहीं, क्यों?"
"इधर जाओ" कहकर मुन्ना आगे बढ़ी। जमादार पीछे-पीछे चले। दूसरी मंजिल के
सदरवाले जीने के पास मुन्ना ने जमादार से कहा, "घंटे भर बाद बगीचे में आओ।
छिपे रहना। वह औरत इस मुसलमान के बच्चे से फँसी है। देख लो। साथ गवाह भी लेतेआना इसी सिपाही को। खजाने का सदर फाटक बंद कर देना, यहाँ कौन है? लेकिन कुछकहना मत। तुम नहानेवाली सीढ़ी की दीवार की बग़ल में छिपे रहना और अपने आदमी कोउसी तरफ के आम के पेड़ पर चढ़ा देना। तुम पहले आना। उस आदमी को आधे घंटे बादउतरने को कहना।"
मालखाने में आकर रुस्तम से कहा, "यहाँ तो कोई आता-जाता नहीं। यह जमादार इस औरतसे फँसा है। यह नहाने जाएगी। नहाते वक्त मुझे भेज देगी। तभी दोनों अपना कामकरेंगे। मैं तुझे भेजूँगी। लेकिन गवाह ले जाना तंबूवाले पहरेदार को। खिड़की केपास उसको छिपा देना। वह कुछ कहे नहीं। फैसला रानीजी करेंगी। वह गवाही देगा।
जमादार लौटेगा तो वह देखेगा ही। खिड़की से आवाज दे देना, देख लिया।""बिना देखे?""अरे गधा बाद को तो देखेगा। निकलेगा कहाँ से? और राह नहीं।
तंबूवाले को समझा देना।"