रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर में बत्तियों की जोतवालेकमल बिंबित। कहीं-कहीं हवा से होता लहरों का नाच दिखता हुआ। चारों ओर साहित्य,संगीत, कला और सौंदर्य का जादू। साजिंदे बैठे हैं। कान के बाहर से साज चढ़ा करबजाने की आँख देख रहे हैं। बेबसी से बचने की उम्मीद भी है। प्याले चल चुकेहैं। फ़र्श पर बिछी ऊँची गद्दी पर एजाज और राजा बैठे हैं। एक बगल प्रभाकर है।
नीचे कालीन बिछी चद्दर पर साजिंदे।राजा साहब ने एजाज से पूछा, एजाज ने सम्मति दी। साजिंदों ने अपने-अपने साज पर
हाथ रखा। एजाज ने गाया-
"जाहिद, शराबेनाज से जब तक वजू न हो,
काबिल नमाज पढ़ने के मसजिद में तू न हो।
पहलू से दिल जुदा हो तो कुछ गम नहीं मुझे,
ऐ द - दिल जुदा मेरे पहलू से तू न हो।
वह गुमशुदा हूँ मैं कि अगर चाहूँ देखना,
आइना में भी शक्ल मेरी रूबरू न हो।
शाखें उसी की हैं यही जड़ है फ़साद की,
पहलू में दिल न हो तो कोई आरजू न हो।
मसजिद में मैंने शेख को छेड़ा यह कहके आज,
मय लाऊँ मैकदे से जो आबे-वजू न हो।
सारी दमक - चमक तो इन्हीं मोतियों से है,
आँसू न हों तो इश्क में कुछ आबरू न हो।"
फिर गाया-
"बाजी कहूँ बैरन, बिखभरी सवत बाँसुरी
अधर-मधुर ध्वनि नेक सुरन सों
कूक-कूक तड़पाय, सखी री, वाकी
गाँस फाँस जिय हूक। छन आँगन, छन
चढ़त अटा पर, कर मल-मल
पछितात सेज पर,
बैरन सवत सताये चाँद,
रह-रहके तान नयी फूँक।"
ठुमरी का रंग जमा। राजा साहब ने प्रभाकर से गाने का अनुरोध किया। प्रभाकर ने
गाया-
"प्रथम मान ओंकार।
देव मान महादेव,
विद्या मान सरस्वती
नदी मान गंगा।
गीत तो संगीत मान,
संगीत के अक्षर मान,
बाद मान मृदंग,
निरतय मान रंभा।
कहें मियाँ तानसेन,
सुनो हो गोपाल लाल,
दिन को इक सूरज मान,
रैन मान चंदा।"
प्रभाकर के गाने के भाव पर तूफ़ान उठा। एजाज की गायिका हिली। स्वदेशी आंदोलनमें आज की धनिक और श्रमिक की जैसी समस्या न थी; पर आंदोलन को असफल करने के लिएयह समस्या लगाई गई थी। प्रभाकर विचार करता था तब तक साहित्य द्वारा रूस केजन-आंदोलन की ख़बरें आने लगी थीं। ज़मींदार मुसलमान स्वदेशी के तरफदार े;इसलिए मुसलमान रैयत बहुत बिगाड़ नहीं खड़ा कर सकी। पुराणों का राज्य समाज मेंतब और प्रबल था, बादशाहत का लहजा नहीं बिगड़ा था। प्रभाकर सोचता हुआ बैठा रहा।
गाने की तरंग उठकर जैसे निकल गई। एजाज उसकी गंभीर मुद्रा से प्रभावित हुई।राजा साहब भी खामोश बैठे रहे। देश प्रेम जुआ था। रौशनी, पश्चिम का बानिज।स्वामी विवेकानंद की वाणी लोगों में वह जीवनी ले आई, खासतौर से युवकों में,जिससे आदर्श के पीछे आदमी जगकर लगता है। प्रभाकर राजनीति में इसी का प्रतीकथा। धैर्य से बैठा रहा।
इशारा पाकर साजिंदे चले। प्रभाकर उठने को था कि दिलावर भीतर आया; राजा साहब केकान में कान लगाया। खबर राजनीतिक है। राजा साहब ने प्रभाकर के सामने पेश करनेके लिए कहा। दिलावर उछल पड़ा। कलकत्तावाले सुबूत दिखाए- वह कागज, नजीर के नामसे यूसुफ का आकर ठहरना, बातचीत करना, होटल में गलत नाम लिखाना।
एजाज से हुलिया पूछा। आदमियों ने बताया। एजाज खामोश हो गई।प्रभाकर आग्रह-धैर्य से सुनता रहा। राजा साहब ने धन्यवाद देकर सबको बिदा किया।इनाम की घोषणा की।राजा राजेंद्रप्रताप ने प्रभाकर से पूछा, 'आपका क्या अंदाज है?"
"चर है, सरकारी।"
"अब हमको एक छन की देर नहीं करनी। कलकत्ता रवाना हो जाना है। बँध गया। हमारेपास भी मसाला है। यह वही आदमी है।" एजाज ने कहा।
"लिखा प्रमाण हमको दीजिए।" प्रभाकर ने कहा।
राजा साहब ने कहा, "नहीं, हमीं रखेंगे, बैरिस्टर साहब से सलाह लेंगे, इस तरहआपका भी हाथ हो गया।"
"तो हमें भी आपके साथ या कुछ पीछे, या दूसरे रास्ते से चलना चाहिए।"
"आप परसों या और दो रोज बाद आइए।"
प्रभाकर शांत भाव से उठा, और कहा, "अच्छा, तो आज्ञा दीजिए।"
राजा साहब ने नमस्कार किया।