बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए नहीं भेजे जातेथे; अली को यह खबर थी। उन्होंने लड़के को भेद बतलाया था।इधर, राजा का रानी के पास आना-जाना घटा कि दासियों, दूतियों और तरफदारों सेपता लगवाना शुरू हुआ। खोदाबख्श इस पते पर आ गए। ऐसे कई और। रानी के तरफदारोंकी चालें मामूली खजानची खोदाबख्श, लालच और रानी के प्रेम में न काट सके; जालमें कुंजी डाल दी। प्रेम की कहानी बहुत-कुछ पहली-जैसी, इसलिए घटना और दुर्घटनाका बयान रोक लिया गया।
इसी समय उनके भाग्य के आकाश पर दूसरा तारा चमका। एजाज के मकान से चलकर यूसुफराजधानी आए और बाजार में ठहरे। भेस बदले हुए थे। प्रभाकर को देखकर चौंके;दुकान में एक जाकेट सिला रहे थे। शाम के बाद से प्रभाकर का पता न चला।मैनेजर ने बुलाया है, एक अजनबी आदमी से कहलाकर राह पर मिले और मैनेजर ने भेजाहै, कहकर भाव ताड़ने लगे। खजानची की कुंजी हाथ से छूट चुकी थी, कलेजा धड़का।
डरकर सँभले।
"हम आपका भला कर सकते हैं।" यूसुफ ने कहा।
खोदाबख्श रानी की मैत्री की ताकत से आगंतुक को देखते रहे।
"आपका राज बिगड़ा है, मान जाइए।" यूसुफ ने कहा।
खोदाबख्श का दिल बैठ गया। मैनेजर उससे बड़ा है; कुछ गड़बड़ मालूम हुई हो,
सोचकर दहले। उठा कि कह दें, पर सँभाल लिया।
यूसुफ ने कहा, "आपको अब मैनेजर के पास न जाना होगा, हमीं उनकी मारफत आपसे
मिलने आए हैं। उनसे हमारा हाल मालूम करने की हिमाकत न कीजिएगा। हम सरकारी। आप
हमसे फायदा उठा सकते हैं? फिर हम भी मुसलमान हैं।"
खजानची को बहुत खुशी न हुई, क्योंकि एक फायदा अभी पूरा-पूरा नहीं उठा पाए थे।
फिर भी, यह सोचकर कि आगे क्या आनेवाला है और खुदगर्ज अपनी ओर से फायदे में ला
रहा है, बात सुन लेनी चाहिए।
यूसुफ जानते थे, कहकर भी राज निकाला जाता है; अगले सवाल से काम हासिल होगा।
कहा, "हमें आपसे राज मिलता रहना चाहिए। हम आपकी निजी उलझनों की मदद करेंगे।"
खोदाबख्श को जी मिला। पूछा, "जनाब का निजी और भी कुछ अगर मालूम किया जा सके?"
"बाद को, जब गठ जाए। आप समझें, हम कोई?"
"माजरा क्या है?"
"वह यह कि एजाज से सरकार की तरफ की सिखायी औरत भेजकर यह मालूम करना है कि क्याहालात हैं; बस। अपनी तरफ से आप भी पता लगायें कि सरकार के खिलाफ क्या कार्रवाईहै। मुसलमान और नीची कौमवाले हिंदू मिट्टी में मिल जाएँगे। आप याद रखिए। पहलेकिसी नीची कौमवाले को फँसाइए।"
खजानची को जँच गई। फड़ककर कहा, "कुछ पता भी आपका...'
"अभी नहीं। अस्सलाम वालेकुम्। खयाल में रखें।"
"वालेकुम्।"
प्रभाकर बैठा था। यूसुफ ने अतिथि-भवन की बैठक में झाँका। कहा, "आपसे मिलने केलिए मैनेजर साहब खड़े हैं।"प्रभाकर चौंका। देखकर चुपचाप बैठा रहा। कुछ देर ठहरकर यूसुफ भीतर चलकर कुर्सीपर बैठे। कहा, "मैं उनका नौकर नहीं। खड़े हैं, कहा, कह दिया, अब आप समझें।"
प्रभाकर ने रीढ़ सीधी की और बैठा हुआ टुकुर-टुकुर देखता रहा।
दिलावर बाहर पहरेदार के पास बैठा था। यूसुफ को घुसते हुए देखा कि गारद से एकआदमी बुला लाया और लगा दिया। यूसुफ की निगाह चूक गई।
"जनाब का दौलतखाना?" यूसुफ ने पूछा।
"जनाब का शुभ नाम?" प्रभाकर ने पूछा।
"नाचीज हुजूर की खिदमत में।" यूसुफ ने जवाब दिया।
"रहमदिली?" प्रभाकर ने मुस्कराकर कहा।
"रहमदिली-अलअमाँ।" यूसुफ ने दोहराकर दोस्ती जतायी।
प्रभाकर दबा। उभरकर पूछा, "किस अंदाज से हैं?"
"सिर्फ दोस्ती।"
प्रभाकर ने हाथ बढ़ाया।
"यों नहीं।" यूसुफ ने बड़प्पन रखा, "आप कैसे तशरीफ ले आए?"
"यह तो आपको मालूम हो चुका है।"
"कहाँ?"
"यह भी मालूम होगा।"
"कुछ भी नहीं बदला हुआ नजर आया?"
"आपका मतलब?"
"मैंने कहा, कुछ आपसे हल हो।"
"आप तो जवाब नहीं देते।"
प्रभाकर चुप हो गया।
"आप बड़े सयाने। पर खुलकर रहेगा।"
प्रभाकर को ताव आया, पर सँभाल लिया।
इसी समय दिलावर घुसा। यूसुफ के पीछे आदमी लगा रहा।
"चलिए।" दिलावर ने प्रभाकर से कहा।
प्रभाकर चले।
दिलावर ने यूसुफ से पूछा, "जनाब का कहाँ से आना हुआ?"
"मैनेजर साहब के कहने से।" यूसुफ साथ-साथ चले।
दिलावर कुछ न बोला। प्रभाकर और दिलावर मुड़कर एजाज वाले महल की तरफ चले, यूसुफदूसरी तरफ से अपने डेरे की ओर।यहाँ थाना है, यह पहले से जानते थे। दिल में कोई धड़कन न थी।
पीछे-लगा आदमी आँख बचाकर चला। यूसुफ ताड़ न पाये, दिल में खटक न थी। आदमी नेयूसुफ की कोठरी का पता लगा लिया।