राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंगदार रास्ते बनाए गएहैं। तालाब के किनारे-किनारे चारों रास्तों के प्रवेश पर ड्योढ़ियां बनी हुईहैं, वहाँ पहरे लगते हैं। बाहर, दूर तक सुंदर राहें, दूब जमायो हुई, तरह-तरहके सीज़नल और खुशबूदार फूल, क्यारियाँ, कुंज, बगीचे, चमन। कटीले तारों सेअहाता घिरा हुआ; तारों पर बेल चढ़ायी हुई। हवा भी सदा-बहार, हर झोंके से सुगंधआती हुई। तालाब का जल स्वच्छ, स्फटिक के चूर्ण की तरह। बँगले का फर्श संगमारवरका, डबल दरवाजे-एक काउ का, एक शीशेदार, रेशमी परदे लगे हुए। बैठक के फर्श परबहुमूल्य कारपेट बिछा हुआ। कीमती बाजे, पियानो, हारमो नियम फ्लूट, क्लेरिअनेट,वायलिन्, सितार, सुरबहार, मृदंग, तबले, जोड़ी आदि यथास्थान रखे हुए। बेशकीमतकौच, सोफ़े, चीनी फूलदानी में सज्जित फूलों की मेज़ों के किनारे, एक-एक बग़ललगे हुए। बीच में गद्दी बिछी हुई, गाव लगे हुए। रात में बत्तियों का तेज़प्रकाश। चाँद और तारों के साथ प्रकाश का बिंब पानी में चमकता, चकाचौंध लगाताहुआ।
चारों तरफ से विशाल बरामदा, हर तरफ की राह से एक ही प्रकार का। हर बरामदे केभीतर बैठक एक ही प्रकार की, सजावट भिन्न-भिन्न। दो एजाज के अधिकार में हैं, दोराजा साहब के। और भी कमरे हैं। एजाज की बैठकें रोज़ नए परदों से सजायी जातीहैं; सूती, रेशमी, मखमली झालरदार; हरे, नीले, जर्द, बसंती, बैंगनी, लाल,गुलाबी, हल्के और गहरे रंग के; कभी सफ़ेद। कोच और सोफ़ों पर भी वैसा हीग़िलाफ़ बदलता हुआ। फूलदानियों में उसी रंग के फूलों की अधिकता। एजाज के बदनपर उसी रंग के पत्थरों के जेवर। उसी रंग की साड़ी, सलवार-कुर्ता यापाजामा-दुपट्टा।
राजा साहब अपनी बैठक में बैठे हुए हैं। दिलावर सिंह पहले से तैनात किया हुआथा, आया। कहा, "प्रभाकर आ गए।"जागीरदार साहब ने कहा, "ये सब तुम्हारे तरफदार हैं। इनसे भी काम लिया गया है।पुलिस के जिन लोगों ने तुम लोगों को गिरफ्तार करना चाहा था, बाद को शिनाख्त नहो पाने की वजह-(तुमने दाढ़ी मुड़वा दी थी और रामफल का मुसलमानी नाम रख लियागया था-रूप भी कैसा बनाया गया।)-थाने से उनका तबादला हो गया था, इन्होंनेउन्हें खोजकर निकाला और पूरी खबर ली। अब इन्हें छिपा रखना है। दीवार को भी पतान चले। पुलिस पकड़ना चाहती है। ये पकड़ गए तो बच न पाओगे।"दिलावर ने नम्रता से कहा, "हुजूर का जैसा हुक्म, किया जाएगा।""पुराने गढ़ के पीछे ठहराओ। खुद दो-मंज़िले पर रहो। रसद ले जाया करो, इन्हेंपकाया-खिलाया करो; रामफल को साथ रखना। दूसरा काम तुम लोगों से न लिया जाएगा।चोर-दरवाजे की ताली ले जाओ। वे जब बाहर निकलना चाहें, उसी से निकाल दिया करो,रात के बारह से चार के अंदर। जब कहें तब खोलकर भीतर ले आने को पहले से तैयाररहा करो, एक सेकंड की देर न हो। उनका काम न देखना, हम खुद देख लेंगे। खानाअच्छा पकाया करना, मछली-मांस भी। हमारी रसोई में दो-तीन भाजियाँ पकती हुई देखलो।"
"जो हुक्म, हुजूर।"
"ऐसा करो, अगर ये भी तुमको फँसाना चाहें तो न फँसा पायें। अब तो तुम्हारीदाढ़ी बढ़ गई है। रामफल की मूँछें भी बढ़ गई होंगी। यहाँ से चलकर बहल जाओ।
रामफल का मियाँवाला रूप तुम बना लो और तुम्हारा ठाकुरवाला वह। नाम भी बदल लो।
उसको अपने नाम से पुकारना और उसी को ले जाने के लिए भेजना। हम कभी-कभी तुमलोगों से मिला करेंगे।"
"जो हुक्म।" दिलावर ने प्रणाम किया। राजा साहब की ओर मुँह किए हुए पिछले-कदमहटा। तालाब के पच्छिमवाले रास्ते से बाहर निकलकर गढ़ की तरफ चला, दूसरीड्योढ़ी से घुसकर रामफल से मिलने के लिए। प्रभाकर के साथी बाज़ार में हैं। वह ड्योढ़ी के आगंतुक-आगार में बैठा है। कभी निकलकर पान खाने के लिए बाहर चलाजाता है। पैनी नज़र से इधर-उधर देख लेता है।
राज्य की क्रिया का ढंग सब स्थानों में एक-सा है। सब जगह एक ही प्रकार केनारकीय नाटक, षड्यंत्र, अत्याचार किए जाते हैं। सब जगह रैयत की नाक में दमरहता है। चारे का प्रबँध ही सत्यानाश का कारण बनता है। अत्याचार से बचने कीपुकार ही अत्याचार को न्योता भेजती है। जमींदार हो, तअल्लुकेदार; राजा हो यामहाराज; कृपा कभी अकारण नहीं करता। जिस कारण से करता है, वह इसकी जड़ मजबूतकरने के लिए, मुनाफ़े की निगाह से, दूने से बढ़ी हुई होनी चाहिए। उसका कोप भीसाधारण उत्पात या प्रतिकार के जवाब में असाधारण परिणाम तक पहुँचता है। सारेराज्य में उसके खास आदमियों का जाल फैला रहता है। वह और उसके कर्मचारी प्रायःदुश्चरित्र होते हैं, लोभी, निकम्मे, दगाबाज़। फैले हुए आदमी प्रजाजनों की
सुंदरी बहू-बेटियों, विरोधी कार्रवाइयों, संघटनों और पुलिस की मदद से ज़मींदारके आदमियों पर किए गए अत्याचारों की खबर देनेवाले होते हैं। निर्दोष युवतियोंकी इज्जत जाती है, रिश्वत में रुपए लिए जाते हैं, काम में आराम चलता है, बचनदेकर रैयत से पीठ फेर ली जाती है, बहाना बना लिया जाता है। पुलिस भी साथ लीजाती है। कभी चढ़ा-ऊपरी की प्रगति में दोनों अपने-अपने हथियारों के प्रयोगकरते रहते किसी गाँव में मुसलमानों की संख्या है। त्योहार है। गोकुशी वर्जितहै; पर बकरा महँगा पड़ा, गोकुशी की ताल हुई। आदमी से ख़बर मिली। एक रोज़ पहले,रात को पचास आदमो भेज दिए गए। कुछ मुखियों को उन्होंने मार गिराया।कोई बड़ा मालगुजार है। किसी कारण पटरी न बैठी, लड़ गया। ताका जाने लगा। शाम को
उसकी लड़की तालाब के लिए निकली। अँधेरे में पकड़कर खेत में ले जायी गई यादूसरे मददगार के खाली कमरे में कैद कर रखी गई। दूसरे-दूसरे आदमी दाढ़ी लगाकरया मूँछें मुड़वाकर चढ़ा दिए गए-ज्यादातर मुसलमानी चेहरे से। उन्होंने कुकर्म
किया। उसके फोटो लिए गए। तीन-चार रोज बाद लड़की घर के पास छोड़ दी गई। एक फोटोआदमी के गाँव में, दूसरी थाने में डाक से भेजवा दी गई। नाम अंटशंट लिख दिएगए-चढ़नेवालों के; लड़की के बाप का सही नाम। गाँव और पुलिस की निग़ाह मेंदोनों गिर गए। गाँव का भी आदमी पुलिस का, उसके पास दूसरी तस्वीर, पुलिस के पासदूसरी। बाप से पूछा जाने लगा। उस पर घड़ों पानी पड़ा। गाँववालों ने खान-पानछोड़ दिया।किसी प्रजा ने खिलाफ गवाही दी। उसका घर सीर के नक्शे में आ जाता है। कभी उसकेखानदानवाले पास की जमीन बटाई में लिए हुए थे। गुमाश्ते को कुछ रुपए देकर एकहिस्सा दबाकर घर बना लिया था। इस फ़ेल का उलटा नतीजा हुआ। रात-ही-रात सैकड़ोंआदमी लगा दिए गए। घर ढहा दिया। लकड़ी, बाँस, पैरा उठा ले गए। गोड़कर घर की जगहगड्ढा बना दिया। नक्शे में वह जगह सीर में है।
किसी ने लगान नहीं दिया। वह गरीब है। विश्वास दिलाकर बुलाया गया कि सरकार सेअपना दुख रोए। आने पर अँधेरी ोठरी में ले जाया गया। वहाँ ऐसी मार पड़ी किउसका दम निकल गया। लाश उठाकर पुराने तालाब के दलदल में गाड़ दी गई गाँव केगुमाश्ते ने कबूल ही न किया कि वह गढ़ में ले जाया गया था। कुछ लोग ऐसे भीनिकले जो पिटते समय उसको बाजार में उलटे कई कोस के फ़ासले पर देखा था।बच-बचकर पुलिस से भी झपाटे चलते हैं। थानेदार ने इंस्पेक्टर और डी. एस. पी.
आदि की मदद से प्रजा-जनों को किसी मामले में खिलाफ खड़ा किया, खूब दाँव-पेंचलड़े, राजा का पाया कमजोर पड़ा, समझौते की बातचीत हुई, रिश्वत की लंबी रकममाँगी गई, एक उचित ठहराव हुआ। काँटा निकाल फेंका गया। पर दिल की लगी खटकतीरही। दूसरा मामला उठा। थानेदार फाँस दिए गए। बलात्कार साबित हुआ। एस. पी. औरडी. एस. पी. की सिफ़ारिश बदनामी के डर से न पहुँच सकी। तहकीकात का अच्छा नतीजान निकला। थानेदार को सज़ा हो गई। नौकरी से हाथ धोना पड़ा।गरमी निकालने के लिए डी. एस. पी. या एस. पी. ने बुलाया। राजा ने मुख्तारआम यामैनेजर को भेज दिया। कमजोरी से कभी बात न दबी, डी. एस. पी. ने पूछा, "राजानहीं आए?" मुख्तारआम ने कहा, "इजलास में तो मैं ही हुजूर के सामने हाज़िर होताहूँ", या मैनेजर ने कहा, "आप की सेवा के लिए हम लोग तो हैं ही।" उस दफ़ेख़ामोशी रही। दोबारा बदला चुकाया गया। पहले कुछ प्रजाओं की दस्तखतशुदाशिकायतें की गईं। ऊंचे कर्मचारियों को दिखाया गया। कहा गया कि राजा पर सरकारका शासन नहीं, थान में थोड़े लोग रहते हैं, राजा के लोग उनको डरवाए रहते हैं,राजा बदचलन है, रैयत की इज्जत बिगाड़ता है, पुलिस की सच्ची तहकीकात नहीं होनेदेता, पुलिस को अधिकार के साथ काम करने दिया जाए तो रास्ते पर आ जाए। हुक्मलेकर दरबार का चकमा दिया गया। राजा गए। पर दरबार से शिकायत करनेवाले लोगों कीही शिरक़त रही। राजा को कुर्सी भी न दी गई। लाट साहब से शिरकत करनेवाले डी.एस.पी. भी खड़े रहे। लिखी शिकायतों के आधार पर कुछ भला-बुरा कहा, कुछ नसीहत दी।
डी. एस. पी. साहब की तारीफ करते रहे। जिन शिकायतों का आधार लिया गया था, उनमेंराजा का हाथ न था, फलत: चेहरे पर सियाही न फिरी, कलेजा न धड़का।दरबार समाप्त हो जाने पर उन्होंने लाट साहब को लिखा कि दरबार के नाम पर उनकेसाथ डी. एस. पी. ने ऐसा-ऐसा बर्ताव किया, वहाँ कुछ प्रजाजन थे, वे उन्हेंपहचानते नहीं-किनके थे, कौन थे। उनके आदमी घुसने नहीं दिए गए। जो बातें डी.एस. पी. ने कहीं, उनका तात्पर्य वह नहीं समझे। वे ऐसी-ऐसी बातें थीं। पुलिसमें नौकर होनेवाले ये साधारण लोग रिश्वत लेकर देश को उजाड़े दे रहे हैं। इसकाव्यक्तिगत संबंध ही है। पुलिस के दांत यहाँ तक डूबे हुए हैं कि नियत आमदनीवालीप्रजा झूठे मामले में रिश्वत देकर राजस्व नहीं दे पाती। यह एक-दो की संख्यामें नहीं, सैकड़ों की संख्या में, जमींदारों के 25 थानों में प्रतिमास होताहै। नतीजा यह हुआ है कि जाल में फँसायी गई प्रजा रिश्वत से पैर छुड़ाकर फिरराजस्व नहीं दे पाती। यह प्रक्रिया उत्तरोत्तर बढ़ रही है। जमींदार को राजस्वन मिलने पर वह क़र्ज़ लेकर सरकार को देगा या न दे पाएगा। इस परिणाम से भीउन्हें गुजरना पड़ा है। सरकार से इसका प्रतिकार होना चाहिए।
जब इस मामले को लेकर राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता थे, डी.एस.पी. की बुरी हालतकर दी गई। वह हिंदू थे। हिंदू-मुस्लिम-समस्या से शमशेरपुर, में रहा। बातचीतकी। मुसलमानों को उनका स्वार्थ समझाया। कहा, वह उनका अपना आदमी है। उन्हें
गोकुशी नहीं करने दी जाती, यह उन पर ज्यादती की जाती है। जिले के वकील नूरमुहम्मद साहब का नाम लेकर कहा, काम पड़ने पर वह बगैर मेहनताना लिए हुएलड़ेंगे। फिर कलकत्ते के इमाम साहब का नाम लिया, कहा कि उनका हुक्म है,मुसलमान अपने हक़ से बाज़ न आयें। एटर्नी अब्दुल हक़ का नाम लेकर कहा, वहहाईकोर्ट में मुफ्त लड़ेंगे और हिंदोस्तान-भर में यह आग लगेगी। वे सिर्फ एकदरख्वास्त दे दें कि बकरीद को वे गोकुशी करेंगे, उन्हें इजाजत मिले। सरकार कोइजाजत देनी पड़ेगी। अगर हिंदू होने की वजह से डी. एस. पी. मदद न करे तो उसकोइसका मजा चखा दो। थोड़ी सी मदद हम भी दूसरे मौजे के भाइयों को भेजकर करेंगे।
रात के वक्त बदला चुकाना। पीछे कदम न पड़े।फिर वह सज्जन कस्बे में आए। वहाँ दाढ़ी-मूँछें मुड़ायीं। फिर डी. एस. पी. साहबसे मिले। कहा, अधिकारियों के कर्मचारी हैं। पास के अधिकारी अच्छे जमींदार हैं।खास बात के बहाने एकांत निकालकर कहा, "अधिकारी हूजूर की सेवा करते आ रहे हैं।अबके शमशेरपुर में बड़ा जोश है। बकरीद को गोकुशी होनेवाली है। मुसलमानचिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं, गोकुशी करेंगे और हुजूर के सामने करेंगे। हिंदुओंके धार्मिक प्राणों को दुःख होता है। माँ, मझले बाबू की बहू, उन्हीं के पासनक्द ज्यादा है, बहुत दुखी हैं। जबसे सुना है, पानी एक घूँट नहीं पिया।" कहकरआँखों में आँसू लाने लगे। मुझे घर बुलाकर कहा, "रामचरण, तुम हुजूर के कचहरीमें जाओ; हमलोगों का कौन-सा अपराध है कि ऐसा होनेवाला है? ऐसा तो कभी नहींहुआ। हुजूर हिंदू हैं। हुजूर के रहते...।"
"सुनो, तुम्हारा क्या नाम है?" साहब दुचित्ते थे, सजग होकर पूछा।"रामचरण, हुजूर !"
"रामचरण कौन?"
"रामचरण अधिकारी, हुजूर। हमसब एक ही हैं।"
"तुम हमारे आदमी हो?"
"हुजूर, मैं हुजूर के गुलाम का गुलाम।"
"तुम्हारी मालिका को बहुत डर है?"
"हुजूर, अन्न-पानी छोड़ रखा है।"
"तो अबके शमशेरपुर के मुसलमान गोकुशी नहीं कर पाएँगे। पर..."
डी. एस. पी. गरीब घर के हैं। पढ़ने में प्रतिभाशाली थे। आर्थिक कष्टों से
छुटपन से लड़ रहे हैं। कान के पास मुँह ले जाकर कहा, "हम देखेंगे, तुम्हारीमालकिन कितना खर्च कर सकती हैं।"
"हुजूर, बहुत।"
डी. एस. पी. ने सोचा, साँप भी मर जाएगा, लाठी भी न टूटेगी। अभी उनको गोकुशी कीकोई सूचना न मिली थी। कहा, "अच्छा, परसों मिलना।"
रामचरण ने कहा, "हुजूर, उसी गाँव में मिलूँगा। देखें मुसलमान, हिंदुओं में दमहै या नहीं। है ! मालकिन का अन्न-जल छूटा हुआ है। पहले हुजूर के इकबाल सेखिलाऊँ-पिलाऊँ।"
"तो कितना?"
"हुजूर कुछ अंदाजा?"
"पाँच - "
रामचरण ने झुककर सलाम किया। "वहीं कैंप में हुजूर के सामने-"कहकर चला।
"पाँच है-समझे?"
"हुजूर, खिलाना-पिलाना है। पक्का रहा।" कहकर रामचरण सलाम करके भगा।
दो-तीन दिन में डी. एस. पी. समझे, रामचरण की बात सही थी। बकरीद के दिन आ गए।
गोकुशी रोकी। जोश बढ़ा। रामचरण से मिलने की आशा से थानेदार और सिपाहियों को
घटनास्थल पर बढ़ा दिया। इधर दुर्घटना हो गई। उनकी एक ज्ञानेंद्रिय विकृत कर दीगई।
यह सब राजा के कर्मचारी और सिपाहियों का काम था, पर कुछ पता न चला। पुलिस बहुत
लज्जित हुई। बात जिले-भर में फैली। डी. एस. पी. की नौकरी गई।