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भाग 9

5 अगस्त 2022

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंगदार रास्ते बनाए गएहैं। तालाब के किनारे-किनारे चारों रास्तों के प्रवेश पर ड्योढ़ियां बनी हुईहैं, वहाँ पहरे लगते हैं। बाहर, दूर तक सुंदर राहें, दूब जमायो हुई, तरह-तरहके सीज़नल और खुशबूदार फूल, क्यारियाँ, कुंज, बगीचे, चमन। कटीले तारों सेअहाता घिरा हुआ; तारों पर बेल चढ़ायी हुई। हवा भी सदा-बहार, हर झोंके से सुगंधआती हुई। तालाब का जल स्वच्छ, स्फटिक के चूर्ण की तरह। बँगले का फर्श संगमारवरका, डबल दरवाजे-एक काउ का, एक शीशेदार, रेशमी परदे लगे हुए। बैठक के फर्श परबहुमूल्य कारपेट बिछा हुआ। कीमती बाजे, पियानो, हारमो नियम फ्लूट, क्लेरिअनेट,वायलिन्, सितार, सुरबहार, मृदंग, तबले, जोड़ी आदि यथास्थान रखे हुए। बेशकीमतकौच, सोफ़े, चीनी फूलदानी में सज्जित फूलों की मेज़ों के किनारे, एक-एक बग़ललगे हुए। बीच में गद्दी बिछी हुई, गाव लगे हुए। रात में बत्तियों का तेज़प्रकाश। चाँद और तारों के साथ प्रकाश का बिंब पानी में चमकता, चकाचौंध लगाताहुआ।

चारों तरफ से विशाल बरामदा, हर तरफ की राह से एक ही प्रकार का। हर बरामदे केभीतर बैठक एक ही प्रकार की, सजावट भिन्न-भिन्न। दो एजाज के अधिकार में हैं, दोराजा साहब के। और भी कमरे हैं। एजाज की बैठकें रोज़ नए परदों से सजायी जातीहैं; सूती, रेशमी, मखमली झालरदार; हरे, नीले, जर्द, बसंती, बैंगनी, लाल,गुलाबी, हल्के और गहरे रंग के; कभी सफ़ेद। कोच और सोफ़ों पर भी वैसा हीग़िलाफ़ बदलता हुआ। फूलदानियों में उसी रंग के फूलों की अधिकता। एजाज के बदनपर उसी रंग के पत्थरों के जेवर। उसी रंग की साड़ी, सलवार-कुर्ता यापाजामा-दुपट्टा।

राजा साहब अपनी बैठक में बैठे हुए हैं। दिलावर सिंह पहले से तैनात किया हुआथा, आया। कहा, "प्रभाकर आ गए।"जागीरदार साहब ने कहा, "ये सब तुम्हारे तरफदार हैं। इनसे भी काम लिया गया है।पुलिस के जिन लोगों ने तुम लोगों को गिरफ्तार करना चाहा था, बाद को शिनाख्त नहो पाने की वजह-(तुमने दाढ़ी मुड़वा दी थी और रामफल का मुसलमानी नाम रख लियागया था-रूप भी कैसा बनाया गया।)-थाने से उनका तबादला हो गया था, इन्होंनेउन्हें खोजकर निकाला और पूरी खबर ली। अब इन्हें छिपा रखना है। दीवार को भी पतान चले। पुलिस पकड़ना चाहती है। ये पकड़ गए तो बच न पाओगे।"दिलावर ने नम्रता से कहा, "हुजूर का जैसा हुक्म, किया जाएगा।""पुराने गढ़ के पीछे ठहराओ। खुद दो-मंज़िले पर रहो। रसद ले जाया करो, इन्हेंपकाया-खिलाया करो; रामफल को साथ रखना। दूसरा काम तुम लोगों से न लिया जाएगा।चोर-दरवाजे की ताली ले जाओ। वे जब बाहर निकलना चाहें, उसी से निकाल दिया करो,रात के बारह से चार के अंदर। जब कहें तब खोलकर भीतर ले आने को पहले से तैयाररहा करो, एक सेकंड की देर न हो। उनका काम न देखना, हम खुद देख लेंगे। खानाअच्छा पकाया करना, मछली-मांस भी। हमारी रसोई में दो-तीन भाजियाँ पकती हुई देखलो।"

"जो हुक्म, हुजूर।"

"ऐसा करो, अगर ये भी तुमको फँसाना चाहें तो न फँसा पायें। अब तो तुम्हारीदाढ़ी बढ़ गई है। रामफल की मूँछें भी बढ़ गई होंगी। यहाँ से चलकर बहल जाओ।

रामफल का मियाँवाला रूप तुम बना लो और तुम्हारा ठाकुरवाला वह। नाम भी बदल लो।

उसको अपने नाम से पुकारना और उसी को ले जाने के लिए भेजना। हम कभी-कभी तुमलोगों से मिला करेंगे।"

"जो हुक्म।" दिलावर ने प्रणाम किया। राजा साहब की ओर मुँह किए हुए पिछले-कदमहटा। तालाब के पच्छिमवाले रास्ते से बाहर निकलकर गढ़ की तरफ चला, दूसरीड्योढ़ी से घुसकर रामफल से मिलने के लिए। प्रभाकर के साथी बाज़ार में हैं। वह ड्योढ़ी के आगंतुक-आगार में बैठा है। कभी निकलकर पान खाने के लिए बाहर चलाजाता है। पैनी नज़र से इधर-उधर देख लेता है।

राज्य की क्रिया का ढंग सब स्थानों में एक-सा है। सब जगह एक ही प्रकार केनारकीय नाटक, षड्यंत्र, अत्याचार किए जाते हैं। सब जगह रैयत की नाक में दमरहता है। चारे का प्रबँध ही सत्यानाश का कारण बनता है। अत्याचार से बचने कीपुकार ही अत्याचार को न्योता भेजती है। जमींदार हो, तअल्लुकेदार; राजा हो यामहाराज; कृपा कभी अकारण नहीं करता। जिस कारण से करता है, वह इसकी जड़ मजबूतकरने के लिए, मुनाफ़े की निगाह से, दूने से बढ़ी हुई होनी चाहिए। उसका कोप भीसाधारण उत्पात या प्रतिकार के जवाब में असाधारण परिणाम तक पहुँचता है। सारेराज्य में उसके खास आदमियों का जाल फैला रहता है। वह और उसके कर्मचारी प्रायःदुश्चरित्र होते हैं, लोभी, निकम्मे, दगाबाज़। फैले हुए आदमी प्रजाजनों की

सुंदरी बहू-बेटियों, विरोधी कार्रवाइयों, संघटनों और पुलिस की मदद से ज़मींदारके आदमियों पर किए गए अत्याचारों की खबर देनेवाले होते हैं। निर्दोष युवतियोंकी इज्जत जाती है, रिश्वत में रुपए लिए जाते हैं, काम में आराम चलता है, बचनदेकर रैयत से पीठ फेर ली जाती है, बहाना बना लिया जाता है। पुलिस भी साथ लीजाती है। कभी चढ़ा-ऊपरी की प्रगति में दोनों अपने-अपने हथियारों के प्रयोगकरते रहते किसी गाँव में मुसलमानों की संख्या है। त्योहार है। गोकुशी वर्जितहै; पर बकरा महँगा पड़ा, गोकुशी की ताल हुई। आदमी से ख़बर मिली। एक रोज़ पहले,रात को पचास आदमो भेज दिए गए। कुछ मुखियों को उन्होंने मार गिराया।कोई बड़ा मालगुजार है। किसी कारण पटरी न बैठी, लड़ गया। ताका जाने लगा। शाम को

उसकी लड़की तालाब के लिए निकली। अँधेरे में पकड़कर खेत में ले जायी गई यादूसरे मददगार के खाली कमरे में कैद कर रखी गई। दूसरे-दूसरे आदमी दाढ़ी लगाकरया मूँछें मुड़वाकर चढ़ा दिए गए-ज्यादातर मुसलमानी चेहरे से। उन्होंने कुकर्म

किया। उसके फोटो लिए गए। तीन-चार रोज बाद लड़की घर के पास छोड़ दी गई। एक फोटोआदमी के गाँव में, दूसरी थाने में डाक से भेजवा दी गई। नाम अंटशंट लिख दिएगए-चढ़नेवालों के; लड़की के बाप का सही नाम। गाँव और पुलिस की निग़ाह मेंदोनों गिर गए। गाँव का भी आदमी पुलिस का, उसके पास दूसरी तस्वीर, पुलिस के पासदूसरी। बाप से पूछा जाने लगा। उस पर घड़ों पानी पड़ा। गाँववालों ने खान-पानछोड़ दिया।किसी प्रजा ने खिलाफ गवाही दी। उसका घर सीर के नक्शे में आ जाता है। कभी उसकेखानदानवाले पास की जमीन बटाई में लिए हुए थे। गुमाश्ते को कुछ रुपए देकर एकहिस्सा दबाकर घर बना लिया था। इस फ़ेल का उलटा नतीजा हुआ। रात-ही-रात सैकड़ोंआदमी लगा दिए गए। घर ढहा दिया। लकड़ी, बाँस, पैरा उठा ले गए। गोड़कर घर की जगहगड्ढा बना दिया। नक्शे में वह जगह सीर में है।

किसी ने लगान नहीं दिया। वह गरीब है। विश्वास दिलाकर बुलाया गया कि सरकार सेअपना दुख रोए। आने पर अँधेरी ोठरी में ले जाया गया। वहाँ ऐसी मार पड़ी किउसका दम निकल गया। लाश उठाकर पुराने तालाब के दलदल में गाड़ दी गई गाँव केगुमाश्ते ने कबूल ही न किया कि वह गढ़ में ले जाया गया था। कुछ लोग ऐसे भीनिकले जो पिटते समय उसको बाजार में उलटे कई कोस के फ़ासले पर देखा था।बच-बचकर पुलिस से भी झपाटे चलते हैं। थानेदार ने इंस्पेक्टर और डी. एस. पी.

आदि की मदद से प्रजा-जनों को किसी मामले में खिलाफ खड़ा किया, खूब दाँव-पेंचलड़े, राजा का पाया कमजोर पड़ा, समझौते की बातचीत हुई, रिश्वत की लंबी रकममाँगी गई, एक उचित ठहराव हुआ। काँटा निकाल फेंका गया। पर दिल की लगी खटकतीरही। दूसरा मामला उठा। थानेदार फाँस दिए गए। बलात्कार साबित हुआ। एस. पी. औरडी. एस. पी. की सिफ़ारिश बदनामी के डर से न पहुँच सकी। तहकीकात का अच्छा नतीजान निकला। थानेदार को सज़ा हो गई। नौकरी से हाथ धोना पड़ा।गरमी निकालने के लिए डी. एस. पी. या एस. पी. ने बुलाया। राजा ने मुख्तारआम यामैनेजर को भेज दिया। कमजोरी से कभी बात न दबी, डी. एस. पी. ने पूछा, "राजानहीं आए?" मुख्तारआम ने कहा, "इजलास में तो मैं ही हुजूर के सामने हाज़िर होताहूँ", या मैनेजर ने कहा, "आप की सेवा के लिए हम लोग तो हैं ही।" उस दफ़ेख़ामोशी रही। दोबारा बदला चुकाया गया। पहले कुछ प्रजाओं की दस्तखतशुदाशिकायतें की गईं। ऊंचे कर्मचारियों को दिखाया गया। कहा गया कि राजा पर सरकारका शासन नहीं, थान में थोड़े लोग रहते हैं, राजा के लोग उनको डरवाए रहते हैं,राजा बदचलन है, रैयत की इज्जत बिगाड़ता है, पुलिस की सच्ची तहकीकात नहीं होनेदेता, पुलिस को अधिकार के साथ काम करने दिया जाए तो रास्ते पर आ जाए। हुक्मलेकर दरबार का चकमा दिया गया। राजा गए। पर दरबार से शिकायत करनेवाले लोगों कीही शिरक़त रही। राजा को कुर्सी भी न दी गई। लाट साहब से शिरकत करनेवाले डी.एस.पी. भी खड़े रहे। लिखी शिकायतों के आधार पर कुछ भला-बुरा कहा, कुछ नसीहत दी।

डी. एस. पी. साहब की तारीफ करते रहे। जिन शिकायतों का आधार लिया गया था, उनमेंराजा का हाथ न था, फलत: चेहरे पर सियाही न फिरी, कलेजा न धड़का।दरबार समाप्त हो जाने पर उन्होंने लाट साहब को लिखा कि दरबार के नाम पर उनकेसाथ डी. एस. पी. ने ऐसा-ऐसा बर्ताव किया, वहाँ कुछ प्रजाजन थे, वे उन्हेंपहचानते नहीं-किनके थे, कौन थे। उनके आदमी घुसने नहीं दिए गए। जो बातें डी.एस. पी. ने कहीं, उनका तात्पर्य वह नहीं समझे। वे ऐसी-ऐसी बातें थीं। पुलिसमें नौकर होनेवाले ये साधारण लोग रिश्वत लेकर देश को उजाड़े दे रहे हैं। इसकाव्यक्तिगत संबंध ही है। पुलिस के दांत यहाँ तक डूबे हुए हैं कि नियत आमदनीवालीप्रजा झूठे मामले में रिश्वत देकर राजस्व नहीं दे पाती। यह एक-दो की संख्यामें नहीं, सैकड़ों की संख्या में, जमींदारों के 25 थानों में प्रतिमास होताहै। नतीजा यह हुआ है कि जाल में फँसायी गई प्रजा रिश्वत से पैर छुड़ाकर फिरराजस्व नहीं दे पाती। यह प्रक्रिया उत्तरोत्तर बढ़ रही है। जमींदार को राजस्वन मिलने पर वह क़र्ज़ लेकर सरकार को देगा या न दे पाएगा। इस परिणाम से भीउन्हें गुजरना पड़ा है। सरकार से इसका प्रतिकार होना चाहिए।

जब इस मामले को लेकर राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता थे, डी.एस.पी. की बुरी हालतकर दी गई। वह हिंदू थे। हिंदू-मुस्लिम-समस्या से शमशेरपुर, में रहा। बातचीतकी। मुसलमानों को उनका स्वार्थ समझाया। कहा, वह उनका अपना आदमी है। उन्हें

गोकुशी नहीं करने दी जाती, यह उन पर ज्यादती की जाती है। जिले के वकील नूरमुहम्मद साहब का नाम लेकर कहा, काम पड़ने पर वह बगैर मेहनताना लिए हुएलड़ेंगे। फिर कलकत्ते के इमाम साहब का नाम लिया, कहा कि उनका हुक्म है,मुसलमान अपने हक़ से बाज़ न आयें। एटर्नी अब्दुल हक़ का नाम लेकर कहा, वहहाईकोर्ट में मुफ्त लड़ेंगे और हिंदोस्तान-भर में यह आग लगेगी। वे सिर्फ एकदरख्वास्त दे दें कि बकरीद को वे गोकुशी करेंगे, उन्हें इजाजत मिले। सरकार कोइजाजत देनी पड़ेगी। अगर हिंदू होने की वजह से डी. एस. पी. मदद न करे तो उसकोइसका मजा चखा दो। थोड़ी सी मदद हम भी दूसरे मौजे के भाइयों को भेजकर करेंगे।

रात के वक्त बदला चुकाना। पीछे कदम न पड़े।फिर वह सज्जन कस्बे में आए। वहाँ दाढ़ी-मूँछें मुड़ायीं। फिर डी. एस. पी. साहबसे मिले। कहा, अधिकारियों के कर्मचारी हैं। पास के अधिकारी अच्छे जमींदार हैं।खास बात के बहाने एकांत निकालकर कहा, "अधिकारी हूजूर की सेवा करते आ रहे हैं।अबके शमशेरपुर में बड़ा जोश है। बकरीद को गोकुशी होनेवाली है। मुसलमानचिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं, गोकुशी करेंगे और हुजूर के सामने करेंगे। हिंदुओंके धार्मिक प्राणों को दुःख होता है। माँ, मझले बाबू की बहू, उन्हीं के पासनक्द ज्यादा है, बहुत दुखी हैं। जबसे सुना है, पानी एक घूँट नहीं पिया।" कहकरआँखों में आँसू लाने लगे। मुझे घर बुलाकर कहा, "रामचरण, तुम हुजूर के कचहरीमें जाओ; हमलोगों का कौन-सा अपराध है कि ऐसा होनेवाला है? ऐसा तो कभी नहींहुआ। हुजूर हिंदू हैं। हुजूर के रहते...।"

"सुनो, तुम्हारा क्या नाम है?" साहब दुचित्ते थे, सजग होकर पूछा।"रामचरण, हुजूर !"

"रामचरण कौन?"

"रामचरण अधिकारी, हुजूर। हमसब एक ही हैं।"

"तुम हमारे आदमी हो?"

"हुजूर, मैं हुजूर के गुलाम का गुलाम।"

"तुम्हारी मालिका को बहुत डर है?"

"हुजूर, अन्न-पानी छोड़ रखा है।"

"तो अबके शमशेरपुर के मुसलमान गोकुशी नहीं कर पाएँगे। पर..."

डी. एस. पी. गरीब घर के हैं। पढ़ने में प्रतिभाशाली थे। आर्थिक कष्टों से

छुटपन से लड़ रहे हैं। कान के पास मुँह ले जाकर कहा, "हम देखेंगे, तुम्हारीमालकिन कितना खर्च कर सकती हैं।"

"हुजूर, बहुत।"

डी. एस. पी. ने सोचा, साँप भी मर जाएगा, लाठी भी न टूटेगी। अभी उनको गोकुशी कीकोई सूचना न मिली थी। कहा, "अच्छा, परसों मिलना।"

रामचरण ने कहा, "हुजूर, उसी गाँव में मिलूँगा। देखें मुसलमान, हिंदुओं में दमहै या नहीं। है ! मालकिन का अन्न-जल छूटा हुआ है। पहले हुजूर के इकबाल सेखिलाऊँ-पिलाऊँ।"

"तो कितना?"

"हुजूर कुछ अंदाजा?"

"पाँच - "

रामचरण ने झुककर सलाम किया। "वहीं कैंप में हुजूर के सामने-"कहकर चला।

"पाँच है-समझे?"

"हुजूर, खिलाना-पिलाना है। पक्का रहा।" कहकर रामचरण सलाम करके भगा।

दो-तीन दिन में डी. एस. पी. समझे, रामचरण की बात सही थी। बकरीद के दिन आ गए।

गोकुशी रोकी। जोश बढ़ा। रामचरण से मिलने की आशा से थानेदार और सिपाहियों को

घटनास्थल पर बढ़ा दिया। इधर दुर्घटना हो गई। उनकी एक ज्ञानेंद्रिय विकृत कर दीगई।

यह सब राजा के कर्मचारी और सिपाहियों का काम था, पर कुछ पता न चला। पुलिस बहुत

लज्जित हुई। बात जिले-भर में फैली। डी. एस. पी. की नौकरी गई।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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भाग 25

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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भाग 26

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

5 अगस्त 2022
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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

5 अगस्त 2022
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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

5 अगस्त 2022
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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

5 अगस्त 2022
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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

5 अगस्त 2022
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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

5 अगस्त 2022
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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

5 अगस्त 2022
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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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भाग 35

5 अगस्त 2022
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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

5 अगस्त 2022
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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

5 अगस्त 2022
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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

5 अगस्त 2022
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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

5 अगस्त 2022
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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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