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भाग 17

5 अगस्त 2022

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर नहीं; अगर दिल देकर भी कहें तो भेद बतलाते हुए नहीं। सिर्फ कला-प्रेम था या रूप और स्वर का प्रेम जो रुपए से मिलता है। यही हाल एजाज का। उसके पास धन था, रूप और स्वर भी, पर तारीफ न थी, यह दूसरों से मिलती थी, और उन्हीं लोगों से जो रूप, स्वर और यौवन खरीद सकते हैं। षोडशी होकर जिस समूह में वह चक्कर काटती थी, वह कैसा था, आज प्रभाकरको देखकर उसकी समझ में आया। वह बड़प्पन कितना बड़ा छुटपन है, राजा साहब के बर्ताव से परिचित हुआ। प्रभाकर को न देखने पर वह समझ न पाती कि आदमी की असलियतक्या है। आजकल जैसे उस छुटपन वाले बड़प्पन से उसका छुटकारा न था। आज केपरिवर्तन के साथ प्रभाकर का प्रकाश उसके दिल में घर करता गया। खेल और मज़ाक़दिल नहीं। किसी को बनाना और किसी को बिगाड़ना दिलगीरी नहीं, सौदा है। जो कुछभी अब तक उसने किया वह एक बचत थी। असलियत क्या थी, कहाँ थी, वह नहीं समझ पायी।आज भी नहीं समझी। सिर्फ उसे दिल नहीं माना। टूटी जा रही थी। असलियत असलियत सेमिल गई। प्रभाकर की जैसी शालीनता उसने किसी में नहीं देखी। जो बातचीत सुन चुकीहै, उससे अगर इस आदमी का तअल्लुक है तो ग़जब है यह आदमी -'स्वदेशी !'

एजाज रहस्य मालूम करने के लिए उतावली हो गई। प्रभाकर ने जो गाना गाया, उसमेंप्रदर्शन न था, किसी की परवा नहीं, फिर भी किसी से नफ़रत नहीं। यह अच्छा गानाजानता है, पर अच्छों का प्रभाव नहीं रखता। गाने के संबँध में चढ़ी रहकर भी एजाज चढ़ी न रह सकी। राजा साहब से जो दुराव हुआ था, वह उनके प्रभाकर के लिएहुए प्रेम के कारण था। अब वह एक हार बनकर रह गया। उसको खुशी हुई-'एक कुंजीउसके पास भी है।'

अपमान को भूलकर उसने राजा साहब से कहा, बड़ा रूखा-रूखा लग रहा है- "मत्रकशी?""क्या बुरा?"

राजा साहब जो बाज़ी लगा चुके थे, वह प्रभाकर को बाहर का आदमी नहीं समझ सकतीथी।

एजाज का इशारा मिलते ही गुलशन शीशा और पैमाना ले आई। उसी तरह ढालकर एजाज कोदिया। एजाज ने राजा साहब को। प्रभाकर के लिए लेमनेड आया। एक प्याला पिलाकरदूसरा भरा, तीसरा भरा। राजा साहब खाली करते गए। एजाज भी साथ देती गई। पूरा नशाआ गया। भोजन की थाली आने लगी। तीनों भोजन करने लगे।

"प्रभाकर बाबू से तो गहरे तअल्लुक़ात हैं।""हाँ।" राजा साहब ने कहा।

"हमारे कौन-कौन से फायदे आपसे हैं, हमें मालूम हो तो हम भी साथ हो जाएं। बातहम तीनों की है। हमारी मदद काम कर सकती है।"

"इसमें क्या शक।"

प्रभाकर ने मधुर स्वर से पूछा, "आपके जमींदारी है?"

राजा साहब को प्रश्न बहुत अच्छा लगा। वह स्वयं इतना साधारण प्रश्न नहीं करसकते थे।

एजाज को जवाब देते हुए झेंप हुई। कहा, "अब हमें आप लोगों के सवाल का जवाब देनापड़ता है। पहले हमीं जवाब लेते थे। आते-जाते हमी पहले बोलते थे। हिंदू जवाबदेते थे।"

"इसी डर से हमने हुजूर से बातचीत नहीं की कि हुजूर खुद पूछे।" राजा साहब नेचुटकी लेते हुए कहा।

"ऐसी बात का हमें कोई खयाल न था !"

"कुछ तो होगा ही।" राजा साहब डटे रहे।

"वह बहुत अनुकूल नहीं।"

"हमारे?"

"हाँ।"

"आपके?"

"राज देते रहें तो सरकारी तौर से हो सकती है।"

"राज तो आपने हमें दे दिया।"

एजाज प्रभाकर को देखती रही। प्रभाकर ने कहा, "अब हमारा फ़र्ज़ है, हम आपकीसेवा करें। अभी इतना ही कि हम स्वदेशी।"

"इस राज से हमारी सरकार के यहाँ क़द्र बढ़ सकती है।"

राजा साहब की आँखें झप गईं-'इससे दिल का हाल नहीं कहा।'

एजाज प्रभाकर से सुनने के लिए बैठी रही। प्रभाकर ने कहा, "मैं स्वदेशी कासक्रिय हूँ। सूत, चरखा, करघा, कपड़े तथा ग्रामीण वस्तुओं के प्रचलन का बीड़ाउठाया है। काम करता हूँ। राजा साहब की सहानुभूति है।"

- "जमींदार छोटे-मोटे हम भी हैं। आपसे हमारा स्वार्थ है, हम समझते हैं। हमारेयहाँ एक डाट लगा दी गई है। हमसे आपका उपकार हो सकता है। कुछ राज हमें काम करनेके लिए दीजिएगा।"

राजा साहब बहुत खुश हुए। कहा, "हमारा एक ही रास्ता है।"

"हम बातें आपसे नहीं कर सकते, आज्ञा है। आपने जो कुछ कहा है, उसका कुछ प्रमाणभी हमें चाहिए। यहाँ हम कपड़े के केंद्र मजबूत करेंगे। व्यवसाय बढ़ाएँगे। आपकोअर्थ और अनर्थ के संबंध में काफी जानकारी है।"

"उस तरफ से तो कुछ मिलेगा नहीं।" एजाज ने कहा।

"इस तरफ का भी कुछ न जाना चाहिए। इतना खयाल रखिए, उनके आने के दिन की बातचीतमिल जानी चाहिए।"

"मिलेगी। जमींदार तो हम भी हैं, इतना काफी है। कोई दूसरी मदद?"

"क्या पार्टी को दस्तखत करके नाम दे सकती हैं?"

"यह सोचूँगी, शायद नहीं। पहले की बात होती तो हिम्मत बाँधकर देखती।"

"पुलिस या खुफ़िया का राज यहाँ का है या कलकत्ता का?"

"कलकत्ता का।"

"एक आदमी यहाँ आया है, आपको बता रहा हूँ।" प्रभाकर ने यूसुफ के चेहरे का वर्णन

किया।

"ऐसा ही आदमी वह भी था। पहले-ही-पहल आया था।" एजाज ने कहा।

"आपको यह आदमी कहाँ मिला?"

"गेस्ट-हौस में।"

"किसी दूसरे ने भी देखा?"

"हाँ, उसने देखा जो हमारे साथ है।"

एजाज ने बड़ी-बड़ी आँखें निकाली।

राजा साहब ने खिदमतगार को भेजा। कुछ ही अरसे में दिलावर आया। भीतर बुलाकर राजा साहब ने पूछा, "आपके पीछे किसी को देखा?"

"राज मिल गया है। बाजार में ठहरा है। बाहर का आदमी है।"

"जहाँ-जहाँ जाए, आदमी लगा रक्खो, देखे रहे, मालूम कर ले, असली कौन है।"

"जो हुक्म।" कहकर दिलावर बैठक छोड़कर चला।

"हमारे लिए अच्छा होगा, अगर आप कलकत्ता चली जायँ, आप इस तरह हमारी ज्यादा मदद कर सकती हैं। यह आदमी आपके कारण आया है। क्या राजा साहब यह बतलाएँगे कि हमारा राज किसी को उनसे नहीं मिला।"

"नहीं, नहीं मिला। इनसे हम कहते, लेकिन दूसरे की बात है, इसलिए नहीं कहा।"

"हमें इसका दुःख नहीं।" एजाज दृढ़ हुई।

"हमारी किस्मत।"प्रभाकर ने कहा, "यह आदमी आपके लिए (एजाज की ओर उँगली उठाकर)

आया है। यहाँ इसका कोई आदमी होगा। मुझसे मैनेजर का नाम लिया, मगर मैनेजर से इसकी जान-पहचान भी न होगी।"

राजा साहब सीधे होकर बैठे। प्रभाकर कहता गया, "जिस तरह भी हो, आप-लोगों में किसी से कोई आदमी मिलेगा। अब होशियारी से चलना है।"

राजा साहब चौंके।

"इसलिए कुछ रोज़ जाने की बात न करें। लेकिन जाना बहुत ज़रूरी है। नसीम यहाँ नहीं। इस मामले की वही मुखिया है।"

"यानी?" प्रभाकर ने पूछा।

"अभी हमारी चड्ढी नहीं गठी। यह राज बाद को। आपका असली नाम प्रभाकर है?"

"मैं प्रभाकर हूँ। और मैं कुछ नहीं जानता।"

'आप कलकत्ते में मुझसे मिलेंगे?"

"प्रभाकर ही आपसे मिलेगा।"

राजा साहब को ताल कटती हुई-सी जान पड़ी। हृदय में कोई रो उठा, मगर बैठे रहे। प्रभाकर ने बिदा माँगी। देर हो गई थी। उसके साथी अभी छूटे हुए थे। रहने के लिए उन्होंने संभवतः दूसरा कमरा दूसरे मकान में लिया हो। एक तरह से पकड़ा जाना ही समझना चाहिए। प्रभाकर सोचकर बहुत घबराया।

राजा साहब ने पालकी मँगा दी। प्रभाकर बैठे। राजा साहब ने अतिथि भवन में रखने की आज्ञा दी। दूसरे दिन सबेरे जगह पर भेजने के लिए कहा। दिलावर ने सुन लिया। प्रभाकर ने कहा, "मैं पता लेकर ही जाऊँगा। ये मेरी पूरी मदद करें। ऐसी आज्ञा दे दीजिए।"

राजा साहब ने दिलावर को बुलाकर हुक्म दे दिया।

एजाज के मन से संसार का प्रकट सत्य दूर हो गया। कल्पनादर्श में रहने की आकांक्षा हुई। प्रभाकर का ऐसा व्यक्तित्व लगा जैसा कभी न देखा हो। इसके साथ जिंदगी का खेल है, खिलाफ मौत का सामाँ।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

5 अगस्त 2022
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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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भाग 35

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

5 अगस्त 2022
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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

5 अगस्त 2022
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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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