यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथियों के साथ यूसुफ का
पता ला दिया। बाजार के लोगों पर राजा के लोगों का प्रभाव था। जिस कमरे मेंसामान था, उसमें प्रभाकर के साथी नहीं मिले। प्रभाकर लौटे। अतिथिशाला के कमरेमें आकर पूछा, "बाजार में रहने के कितने होटल हैं?"
दिलावर ने कहा, "सिर्फ तीन।"
और कोई रहने की जगह है?"
"और रंडियों के मकान हैं।"
निश्चय करके प्रभाकर ने पूछा, "क्या नाम इस आदमी ने लिखाया है?"
"शेख नजीर।"
कलकत्ते का पता दिलावर ने लिखा लिया था। प्रभाकर ने कहा, "सावधानी से इस आदमीका पीछा किया जाना जरूरी है। वहाँ तीन आदमी जाएँ। एक पहले ही उस पते परपहुँचे साथ वकील और पुलिस का अच्छा आदमी, कम-से-कम इंस्पेक्टर होना चाहिए। हमचिट्ठी देंगे, वकील आदमी ले लेगा। इस पते का आदमी अगर यह नहीं, तो वह मिलेगा।
इसके पहुँचने के पहले वहाँ पहुँचना चाहिए। यह भी बाद को वहाँ जाएगा, और यहकहेगा कि वह स्वीकार कर ले कि वह यहाँ आया। तुम समझे?"
"हाँ, लेकिन यह अगर कहकर आया होगा तो सब-का-सब गुड़-गोबर हो जाएगा। बड़ा नीचादेखना होगा। वह इसी का नाम बतलाएगा, या नहीं मिलेगा। यह सरकारी आदमी है, वह भीहोगा। इस तरह न बनेगा। अभी आप कच्चे हैं, बाबू। हम होटलवाले से कह आए हैं, कलवह इनसे इनके एक रिश्तेदार का नाम पूछेगा, अपने मन से पूछेगा, जैसे साले कानाम या मामू का या मौसी का। इन्हें जवाब देना होगा, अगर जवाब न दिया तो कहाजाएगा कि ये राजा के सिपुर्द किए जाएंगे। ये गलत नाम बतलाएँगे। इस तरह यहींगवाही पक्की हो जाएगी। फिर कलकत्ते का हाल हम मालूम कर लेंगे। राजा भी सरकारके हैं। अगर इन्होंने बात न मानी तो इनसे इतने सवाल किए जाएंगे कि होश फाख्ताहो जाएंगे।"।
दिलावर की बातों से प्रभाकर को खुशी हुई। सिर झुका लिया। कहा, "आप लोगों सेबहुत सीखना बाकी है।" मन में कहा, "काम उस तरह भी पक्का था, झूठ से कहाँ बचावहै?"
"बाबू, आपकी शराफत के हम क़ायल हो गए। आप हमें अपने आदमी मालूम होते हैं। हमींआपके साथ रहेंगे। छोटी-सी तनख्वाह में ऐसी गिरह लगानी पड़ती है, नहीं तो लोगबिना शहद लगाए राजा को चाट जाए। अब आप आराम कीजिए।"प्रभाकर लेटे। रात का तीसरा पहर बीत रहा था।
सबेरे होटलवाले ने यूसुफ से एक रिश्तेदार का नाम पूछा। यूसुफ चौकन्ने हुए। मगरमामला तूल पकड़ जाएगा सोचकर अपने रिश्तेदार का नाम बतलाया। होटलवाले ने यूसुफके दस्तखत कराए। यूसुफ ने बिगाड़कर दस्तखत कर दिए। फिर कलकत्तेवाले जहाज़ केलिए रवाना हुए। खबर लेकर उनके पीछे तीन आदमी लगे। बहुत से यात्री थे। उन्हेंमालूम नहीं हो सका, कौन उनकी गरदन नाप रहा है।
कलकत्ते में उतरने के साथ उन्होंने अपने नाम के साथ जो पता लिखा था, उस परपहुँचने के लिए एक आदमी तीर की तरह छूटा। पहले दरजे की बग्घी किराए की की औरजल्द चलने के लिए कहा। उसके दो साथी, रास्ते पर यूसूफ को तीसरे दरजे की टूटीबग्घी ठहराते हुए देखकर, पूछताछ करने लगे, "कहाँ जाना है-जनाब कहाँ से तशरीफले आए?" मतलब जवाब लेना नहीं, रोके रहना था। यूसुफ सस्ते भाव चढ़ना चाहते थे,
जल्दबाजी नहीं की। एक बग्घीवाले से तै न हुमा, दूसरे के पास चले।
आगंतुकों ने स्थान का नाम न सुना था। जरा देर करके आए थे। वे दूसरे के पास गए,
साथ-साथ यह भी गए।
यूसुफ ने कहा, "तालतला?"
"हाँ, बाबू।" बग्घीवाले ने जवाब दिया।
"क्या लोगे?"
"डेढ़ रुपया।"
"वह क्या है थोड़ी दूर पर। डेढ़ रुपया बहुत है। ठीक-ठीक बतलाओ।"
"अरे साहब, हम भी साथ हो जाएंगे, क्या बुरा है? तै कर लीजिए। आप बड़े आदमी
हैं। पीछे बैठिए। हम आगे, पिछोड़े रहेंगे। आधा आप दीजिए, आधा हम।"
बात यूसुफ को जँच गई। पूछा, "आप लोग भी वहीं चलेंगे?"
'जी हाँ," एक ने कहा, "कुछ दूर और चलना है। पैदल चले जाएंगे।" "कहाँ से आ रहे
हैं?"
"उलूबड़िया से।"
एक साथी मुसलमान था। यूसुफ मान गए। गाड़ी तै की। सवा रुपए की ठहरी। तीनोंबैठे। मुसलमान दोस्त असल में हिंदू था, फ्रेंचकट दाढ़ी रखाए हुए। चुपचाप बैठरहे। गाड़ी चलती गई। पहले के गए हुए आदमी ने राज ले लिया। यूसुफ उससे कहकर नहीं गए। बतलाने जा रहेथे। राज लेकर और यह कहकर, "आप फँसाए गए हैं अपने किसी दोस्त से, उन्होंने अपनेनाम की जगह आपका नाम लिखाया है और किसी मामले में फँस गए हैं; मगर आ हमारेपूछने का राज उन्हें न दीजिएगा, वे कहाँ गए थे, क्यों गए थे, किससे-किससे मिले थे, आगे का क्या इरादा है, उनसे दोस्त की हैसियत से मालूम करके हमें बतलादीजिएगा, तो बच जाइएगा, कुछ फायदा भी होगा, वे कोई हों, एक आदमी हैं, अपने कोपहले बचाएँगे, सरकारी आदमी खास तौर से आपको फँसा देंगे और खुद पर मारकर अलग होजाएंगे। याद रखिएगा। हम आपसे फिर मिलेंगे।" यह कहकर वह आदमी अलग होगया। दूरचलकर खड़ा हुआ। बातचीत हो चुकी थी कि यह आदमी अगर उधर जाएगा तो पीछा करनेवालेसाथी दो घंटे के अंदर उस जगह पहुँच जाएंगे। यह साथी दो घंटे तक प्रतीक्षाकरेगा। यह पढ़ा-लिखा मुसलमान था।
यूसुफ तालतल्ले पहुँचे। गाड़ी रोकी। दोनों साथी आधा दाम देकर उतर पड़े औरसलाम-वालेकुम करके चल दिए। तीसरा साथी प्रतीक्षा कर रहा था। तपाक से मिला।
पूछा, "वह कहाँ है?"
"साथ आया है।" एक ने कहा।
"राज मिल गया।"
"फँस जाएगा?"
अब इसको कौन छोड़ता है?"
"यहाँ जड़ जमानी पड़ेगी?" एक ने पूछा।
"मानी बात है।" उस मुसलमान साथी ने कहा।
"गुंजाइश है?"
"बहुत।" पहलेवाले ने कहा।
"तुम्हारी किस्मत खुल गई।"
"मुमकिन, गहरी रकम हाथ आए।"