जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उनकी बाछे खिल गईं,
सोचा, बचत निकल आई।
मुन्ना ने अलग बुलाया। वे चले। दोनों घाट की चारदीवार की आड़ में एक मौलसिरीकी छाँह में बैठे।
मुन्ना ने कहा, "अब किनारा साफ नज़र आ रहा है।"
"क्या बात है?" जमादार ने पूछा।
"एक महात्मा मिले हैं, उनसे आशा बँध रही है।"
"कहीं धोखा तो नहीं?"
"नहीं, सिर्फ तुम्हारा विचार है कि कहीं नीचा न दिखा दो। नहीं तो, लकड़ी साफबैठेगी।"
"कैसे?"
"पहले बताओ, तुम हमारे साथ रहोगे या नहीं।"
"हमने तो बीजक तक दे दिया।"
"ठीक है। बात यह, हम दूसरी चाल चलेंगे।"
"क्या?"
"रानी को दूसरी तरह हाथ में करना है। पहला वार खाली गया। वह राह कट गई, अच्छाहुआ। वह सूझ खजांची की थी, अपनी भी। अब लाठी भी न टूटेगी और साँप भी मरेगा।"
"समझ में नहीं आया।"
"जमादार, बहुत गहरी बातें हैं। एकाएक समझ में न आयेंगी। ख़ज़ांची का साथ किसी सरकारी आदमी से है। खजांची की मार्फत एजाज से राज लेना चाहता है और हमारे राजा साहब का। राजा साहब सरकार के खिलाफ फँस जाएंगे; क्योंकि वे रास्ता बतानेवाले हमारे नए गुरुदेव के मददगार हैं और गुरुदेव सरकार के खिलाफ कार्रवाई करनेवालों में हैं। स्वदेशी का जो आंदोलन चला है, गुरुदेव उसमें हैं। सरकार चाहती है, बंगाल के दो टुकड़े कर दे। जमींदार ऐसा नहीं चाहते। उनको डर है कि स्थायी बंदोबस्त फिर न रह जाएगा। इसका देश में आंदोलन है। सरकार के लोगों का कहना है, स्थायी बंदोबस्त न रहने पर इतर जनों को फायदा पहुँचेगा, मुसलमान जनता सरकार के पक्ष में की जा रही है। असली बात इतनी है। हम लोग बहुत काफी बातचीत सुन चुके हैं। सच जो कुछ भी हो, मगर गुरुदेव की बात का असर पड़ता है। उन पर अपने आप विश्वास हो जाता है। बड़े अद्भुत आदमी हैं। इतर जन ही हम लोग हैं। हम लोग भी सहानुभूति और अधिकार चाहते हैं। यह हमको सरकार से तब मिलेगा, जब हम सरकार की जड़ मजबूती से पकड़ेंगे। मगर हमको रहना तुम्हीं लोगों में है।"
"हमारे जो कुछ था, हम दे चुके।"
"हाँ, मगर समाज से डरते हो; हम समाज की बात कहते हैं।"
"भीमसेन ने हिडिंबा से ब्याह किया, महाभारत में है, तो किसने उनको जाति से निकालकर बाहर कर दिया?"
"मगर हिडिंबा के अधिकार वैसे न रहे होंगे जैसे द्रोपदी के।"
"अधिकार वैसे ही थे, भेद यह रह गया था कि एक राक्षस की बेटी रही, दूसरी क्षत्रिय की। क्या बाप भी बदल गए?"
मुन्ना गंभीर हो गई। कहा, "बुआ का पता इनको मालूम है। रुस्तम शायद इन्हीं की बातें करता था।"
जमादार जर्द पड़े। कहा, "कुल भेद खुला? बुआ ने एक-एक गाँठ सुलझायी होगी।"
"संभव। ताल पर चलना है। नहीं, गिरेंगे। बुआ राजा के साथ न थीं। बचाव का मिलकर बचकर रास्ता निकालना है।"
"बुरा हुआ। सरकार के खिलाफ हैं तो जरूर बचकर रहना है। हम भी पकड़ा सकते हैं अगर पकड़ में हैं।"
"हाँ, मगर नहीं। राजा ने रखा है तो मिल जाना चाहिए।"
"हाँ।"
"राजा ख़िलाफ़ न हों तो ख़िलाफ़ गवाही देते अकेले हो जाएंगे, मगर ख़जांची का एक गरोह है, हम उसमें हैं, बचत है।"
"हाँ।"
"ये इसी कोठी में रहते हैं, तुमको मालूम था?"
"नहीं।"
"राजा ने तुमसे छिपाया है। कोई होगा, जिसको देख-रेख सौंपी गई। यहाँ रहना मायने रखता है।"
"हाँ।"
"फिर साथ होते अड़चन नहीं। रानी का उपकार करेंगे। कारण साथ है। राजा को ये मिला दे सकते हैं।"
"हाँ।"
"आदमी सज्जन हैं। रानी से मिलाना है। बातचीत सुननी है। अगर रानी से किसी की मार्फत बातचीत करायी तो मैं हूँगी; खुद की तो सुनूँगी। बहाना है।"
"हाँ।"
"इनका भेद मिलेगा, आगे भी मिलता रहेगा। इनको काम के लिए धन चाहिए। मैं मदद करूँगी। इस तरह इनका बाजू पकड़े रहना है। पूरी जानकारी हासिल होगी। जैसे अँधेरे में हूँ। तुमने लंबी दुनिया देखी है।"
"हमारा देश छ: सौ मील है।"
"तुम जगह देखना चाहो, चलो दिखा दूँ। रानी के पास ले चलते वक्त दूर से देख लेना छिपकर।"