यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए। जवाब में हाथ उठाया, वह हाथ जैसे सरकार का हो।नसीम ने पूछा, "हुजूर का मिज़ाज अच्छा?""खैरियत है।" थानेदार साहब ने जवाब दिया।कुर्सी की तरफ उँगली का हल्का इशारा करके नसीम ने कहा, "हुजूर की कुर्सी।"थानेदार साहब संजीदगी से बैठे। नसीम भी बैठी। बैठते हुए कहा, "हम हुक्म कीतामील करने वाले !"थानेदार साहब बहुत खुश हुए। सोचा, रंग चढ़ गया; बाजी हाथ है। इधर-उधर देखा।गुलशन हट गई थी।"आप एजाज बाई हैं?" थानेदार ने पूछा।
"हुक्म""काफी अरसा हुआ। दूसरा काम है। वक्त ज्यादा नहीं।" नसीम खामोश रही। थानेदार कोसंदेह नहीं हुआ। वह सुंदरी और खानदानी दिख रही थी। बातचीत साफ।"आपकी शिकायत है।"नसीम आँखें फाड़कर देखने लगी।"दोस्त और दुश्मन सबके होते हैं। सरकार तहकीकात कर रही है। वक्त पर दूध औरपानी अलग कर देगी।"नसीम ने ललित स्वर से कहा, "क्या ही अच्छा हो कि इसके पूरे भेद से हम भी वाकिफहो जाएँ।""यह हमारे हाथ की बात नहीं। खुद हम इसके भेद से वाकिफ नहीं। पर एक सूरत हम ऐसीबताएँगे कि शिकायत भी रफा हो जाएगी और सरकार के मददगार दोस्तों में नाम दर्ज हो जाएगा।""मेहरबानी।" नसीम ने विजयी स्वर से कहा।"मैं मुसलमान हूँ। दूसरी शिरकत मजहबी है।"नसीम गंभीर हो गई। कुर्सी पर हाथ समेटकर बैठी।"आजकल जमींदारों और कुछ हिंदुओं ने सरकार के खिलाफ गुटबंदी की है। जिसज़मींदार से आपके तअल्लुकात हैं, इस पर सरकार को शुन्हा है। इसका भेद मालूमहोना चाहिए। इससे सरकार की मदद भी होगी और कौम की खिदमत भी। सरकार की मदद इसतरह कि आपके जरिये दुश्मन का राज सरकार को मिलेगा और कौम की खिदमत इस तरह कि सुदेशी का बवेला जो हिंदुओं ने मचा रखा है, यह जड़ से उखड़ जाएगा। मुसलमान रैयत को फायदे के बदले नुकसान है अगर हिंदुओं को कामियाबी हुई। सरकार ने बंगाल के दो हिस्से इस उसूल से किए हैं कि मुसलमान रयत को तकलीफ़ है; मौरूसी बंदोबस्त वाली 99 हर सदी जमीनों पर हिंदुओं का दखल है; यह आगे चलकर न रहेगा। इससे मुसलमानों की रोटियों का सवाल हल होता है। आपके दोस्ताने के बर्ताव से दुश्मनों की की हुई शिकायत का असर जाता रहेगा, उल्टे फायदा उठाइएगा।" "आपकी सलाह नेक।" नसीम ने दोस्ती की आवाज में कहा। "आदाब अर्ज।" थानेदार साहब उठकर खड़े हो गए, "अब मैं चलता हूँ। सीन याद रखिएगा। जो शख्स कहे, उसे अपना आदमी समझिएगा। उसे और कोई राज न दीजिए। सिर्फ कहिए, 'फँस गया' या 'नहीं फँसा।' पूरी बातें मैं ही मालूम करूँगा। मैं तीन और तीन कहूँगा। आप वाकिफ हाल हैं। सहूलियत से काम लेना है। हमारे आप लोगों से गहरे तअल्लुकात रहते हैं।" "पान-सिगरेट शौक फर्माते हैं?" थानेदार साहब चल पड़े थे, खड़े हो गए। नसीम ने सोने के पानदान से निकालकर पान दिए और डिब्बे से सिगरेट। सामने दियासलाई जलायी। थानेदार साहब ने आँखें भरकर देखा। दियासलाई के गुल होते जैसे दिल में अँधेरा छा गया।