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भाग 13

5 अगस्त 2022

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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई हों। रिश्ते कागौरव कहीं गायब हो गया।मौसी का पहले ही अपमान हो चुका था, आज्ञा मिल चुकी थीकि जबान खोलने पर मठा डालकर सिर घुटाकर गधे पर चढ़ाकर निकाल दी जाएगी औरसाथ-साथ जीवन-चरित जनता को सुनाया जाता रहेगा; वह कैसी थीं; यह मालूम हो चुकाहै। अगर खामोश रहीं तो समझ में आ जाएगा कि अपमान उनका नहीं, उनके दुश्मन काहुआ है।

बुआ मुन्ना के साथ कोठी से उतरकर बागीचे गईं। धूप प्रखर हो गई है, फिर भीसुहानी है। तरह-तरह की चिड़ियाँ चहक रही हैं। रंग-बिरंगी सुरीली आवाजवाली;भँवरे, सुए, रुकमिनें, बुलबुल, पीली गलारें, कोयलें, पपीहे, कौए। स्वच्छजलवाले विशाल सरोवर पर राजहंस तैरते हुए। कहीं-कहीं बगले ताक लगाए बैठे हुए।गिलहरियाँ टहनी से टहनी पर उछलती हुई। धीमी-धीमी हवा चल रही है जैसे साक्षात्कविता बह रही हो। सरोवर पर हल्की-हल्की लहरियाँ उठती हुई उस किनारे से इसकिनारे आ रही हैं।

चारों ओर विशाल उद्यान 13-14 हाय की ऊँची चारदीवार से घिरा हुआ। सरोवर औरचारदीवार के किनारे नारियल के पेड़। बीच में, अलग-अलग, नींबू, नारंगी, संतरे,सुपारी, अनानास, लीची, आम, जामुन, गुलाब जामुन, कटहल, बड़हर, बादाम, हड़बहेड़,आँवले, अनार, शरीफे, कितने फूल हुए, शहतूत, फालसे, अमरूद आदि फलों के पेड़एक-एक घेरे में लगे हुए। कितने फूले हुए, कितने पकते हुए, कितनों में बौर,कितने ख़ाली। एक तरफ फूलों का बागीचा उजड़ा हुआ क्योंकि अब नवास यहाँ नहीं।कहीं जंगली पेड़ों के झाड़। बीच-बीच बेला, जुही, गुलाब, गंधराज, नेवाड़ी,चमेली, कुंद आदि उगे हुए जीने का व्यर्थ प्रयत्न करते हुए आज भी फूलों केअर्ध्य दे रहे हैं। पक्की सुथरी राहों पर वर्षा की काई जमी हुई है। कटीले झाड़उग रहे हैं। एक तरफ चारदीवार में दरवाज़ा है। इस तरफ से भी ताला लगा है, उसतरफ से भी। इस तरफ की ताली जमादार के पास है, उस तरफ की माली के पास।

जिस तरफ जमादार को छिपने के लिए कहा था, उस तरफ मुन्ना नहीं गई। कहा, "आज चलो,इधर का बागीचा देख लो। एक रोज में पूरा देखा न देख जाएगा।"हवा के मंद-मंद झोंके लग रहे हैं। दुःख के बाद सुख का अनुभव हुआ। मुन्ना नेपूछा, "कैसी हवा है?"

"बहुत अच्छी।"

"दिल इसी तरह खुला रखा करो। कोई दिलदार मिल जाए इस वक्त तो?"

"धत्, ऐसा नहीं कहा जाता।"

"अच्छा, सखी, हम से ग़लती हुई। पर हमारा-तुम्हारा तो हँसी-मज़ाक का ही रिश्ताहै?"

"हाँ, है।"

बुआ की आवाज क्षीण होकर निकली।

"अगर हमारा अपमान हो तो क्या वह तुम्हारा भी है?"

बुआ भीतर से जल गईं। उस जलन को दबाकर कहा, "हाँ, है।"

"हमारा इतना अपमान होता है कि हम किसी को सिर पर नहीं रख सकते। बाद को सखी

बनाकर, हँसाकर, रिझाकर समझा देते हैं कि हम सखी हैं और ऐसी।"

"हमारे भाग।" बुआ ने नम्रता से कहा।

"देखो, यह नारियल का पेड़ है। सरोवर के चारों ओर पहले इसी की कतार है। फिर उस

किनारे से है। दोनों कतारों में नारियल की बीसियों किस्में हैं। कच्चे नारियल

को डाब कहते हैं। इसका पानी तुमने पिया है।"

"हमारे यहाँ यह पेड़ नहीं होता।"

मुन्ना आगे बढ़ी। कहा, "यह देखो, ये अनानास के झाड़ हैं।"

"अनानास क्या है?"

"यह लीची है।"

"हाँ, हमारे यहाँ आती है।"

मुन्ना जल्दी कर रही थी। कहा, "यह शरीफा है।"

"यह भी हमारे यहाँ नहीं होता।"

"ये सुपारी के पेड़ हैं। वह देखो, सुपारी फली है।"

बुआ खुश हो गईं। मुन्ना बढ़ती गई।

"यह बादाम का पेड़ है।"

"वही जो ठंढ़ाई में पड़ता है?"

मुन्ना ठंढ़ाई नहीं जानती थी। बढ़ती गई। कहा, "यह गुलाब-जामुन है।

"कौन? जो बाजार में बिकता है?"

"तो क्या आसमान पर बिकता है?"

"वह तो मिठाई है।"

मुन्ना रुकी। गुलाब जामुन कोई मिठाई है, यह उसको नहीं मालूम था। गुस्से में

आकर कहा, "हम जैसा-जैसा सिखाते हैं, वैसा सीखो। सही है कि गुलाब जामुन कोई

मिठाई हो, पर यह फल है। कुल पेड़ तुम्हें दिखाएँगे, नाम बताएँगे, याद करके सीख

लो। तुम्हें जो मिठाइयाँ जल-पान के लिए दी जाती हैं, उनमें कभी गुलाब-जामुन

आई?"

"हाँ, रोज़ आती है।"

"तुम्हें कुल किस्मों के नाम मालूम हैं?"

"नहीं।"

"गुलाब जामुन कौन-सी है?"

"काली-काली।"

"उसको यहाँ पान्तोआ कहते हैं।"

"वह हमारे वहाँ की-ऐसी नहीं।"

"यहाँ छेने की मिठाई बनती है। तुम्हारे उधर मैं जा चुकी हूँ। वहाँ की मिठाई इनलोगों को कम पसंद है। यहाँ घर का दूध, घर का छेना है, और होशियार हलवाई नौकरहै, यहीं बनाता है, यहीं का घी। तुम कभी त्योरी न चढ़ाया करो। यह इतना बड़ाबाग़ीचा है। इसमें सैकड़ों किस्मों के फल हैं। तुम्हें आम, जामुन, अमरूद, जैसेथोड़े ही फलों की पहचान है। यह रानीजी की सास और पहले की रानियों का बागीचाहै। इनका बागीचा और बड़ा है, पेड़ जैसे हीरे और नीलम-जड़े पत्थरों पर खड़ेहों, उनके थालों की नयी कारीगरी है। फलों की भी सैकड़ों किस्में हैं। तुम जहाँगई थीं, वह रानीजी का शयनागार नहीं। वहाँ बेशकीमत हजारों जिन्सें हैं। तुम्हेंदस साल में भी कुल नाम न याद होंगे। जो बड़ी अनुचरी हैं, वह जानती हैं। 15 सालसे कम की नौकरीवाली दासी का यह पद नहीं होता। वह जमादार की तरह दासियों से कामलेती है। तुम्हें नहीं मालूम कि बड़प्पन यहाँ नामों की जानकारी से है। रानीजीहजारों चीज़ों के नाम जानती हैं। कभी इनके मुँह न लगना। अब नहा लो। धोती घाटसे सौ गज के फ़ासले पर उतारकर डाल दो और आधे घंटे तक नहाओ। फिर निकलकर बिनाकिसी की परवा किए ऊपर चली आओ। तुम्हें तुम्हारा प्यार मिलेगा। तुम्हें इसकीख्वाहिश है। शरमाओ नहीं। डटी खड़ी रहना। साड़ी बिना लिए चली आना। हमें दूसराकाम है। खबरदार, हुक्म की तामील सीखो। बाद को समझ में आएगा कि रानीजी कितनीअपनी हैं। उनका भी हाल मालूम होगा। सिर चढ़ाचढ़ी तब न होगी जब दोनों एक। उधरजाओ।"मुन्ना बिजली की तरह मालखाने में गई और रुस्तम से कहा। रुस्तम तंबू केपहरेवाले के साथ तैयार हो गया और जीने से जल्द-जल्द उतरकर अपनी जगह पर, खिड़कीके दरवाजे पर गया। उसका साथी एक अँधेरी कोठरी में छिप रहा। रुस्तम अवसर ताकरहा था। खजाने का सिपाही राजाराम आम के पेड़ पर घने पत्तोंवाली डाल के बीच मेंबैठा देख रहा था।

रुस्तम के जाने के साथ मौसी को बुआ के शयनागार में भेजकर और जब तक बुआ न आयेंवहीं रहने के लिए कहकर मुन्ना खजाने की तरफ बढ़ी। पैर की चाप सँभालकर दौड़ी।जीने से उतरकर देखा, फाटक बंद है। कमर से एक ताली निकाली, जिसे संदूक की तालीबताया गया था उसको देखा। गुच्छे की तालियों से उसका बाहरवाला ताला खोला, फिरअपनी ताली से भीतरवाला। खोलकर देखा, नोटों के बंडल थे। कुल-के कुल बाहरनिकालकर डाल लिए। नोट नंबरी भी थे और दस-पाँच रुपए वाले भी। जल्द-जल्द संदूकबंद कर दिया। तालियों का गुच्छा खूटी से लटका दिया और अपनी ताली कमर की मुरी

में लपेट ली। नोटों के बंडल जीने के तलेवाली अँधेरी कोठरी में डाल दिए । भगीहुई ऊपर गई। बुआ के बरामदे से देखा, वह नहाकर निकल रही थीं। जैसा कहा था, वैसीही थीं।रुस्तम तके हुए था। इसी समय निकलकर कुछ कदम बढ़ा और चिल्लाकर कहा, "चोर पकड़लिया।"बुआ की लाज दूर हो गई। वह तनकर खड़ी हो गईं।रुस्तम आवाज लगाकर भगा हुआ कोठरी में घुस गया। मुन्ना दूसरी मंजिल की खिड़कीके पास खड़ी होकर चली आने के लिए हथेली का इशारा करने लगी। बुआ चलीं।

राजाराम पेड़ से देख रहा था। मुलुककर जमादार ने भी देखा था। बुआ के जाने केकुछ अरसे के बाद जमादार और राजाराम चले। इनसे पहले मुन्ना ने नीचे उतरकररुस्तम को आवाज लगाई, अगर वहाँ हो। उसके आने पर कहा, "खजाने में चलकर बैठो औरजमादार के आने पर कहो-हमारी जमादारी का हुक्म है, तुम बदमाश हो। हमारी जगह परजाओ।"

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

5 अगस्त 2022
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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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