रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए। जटाशंकर यह उड़ाएहुए थे कि वे शौकिया सिपाही का काम नहीं कर रहे। जल्द रुस्तम पर आफ़त आती हैऔर ऐसी कि संभाली न संभलेगी। तीनों पहरों के सिपाही जो मौके पर नहीं थे,तरह-तरह की दीवार उठाते और ढहाते रहे।
सुबह का वक्त। रुस्तम कुर्सी पर बैठे थे। मुन्ना आई। राजाराम के सामने कहा,"रानीजी की सलामी दो।"
रुस्तम झेंपा। बोला, "रानीजी यहाँ कहाँ हैं?"।
राजाराम तनकर देखने लगा। तंबू के उसी सिपाही को पुकारकर कहा, "देख लो, जमादारका हाल।"
मालखाने से जमादार जटाशंकर भी तद्गतेन मनसा देखने लगे।
मुन्ना ने कहा, "सलामी नहीं देते तो जमादारी से बरखास्त किए जाओगे।"
रुस्तम घबराया। उठकर झेंपकर सलामी दी। देखकर मुन्ना ने कहा, "एक दिन में
तुम्हारी चर्बी बढ़ गई। जमादारी के लिए तुमने कहा था, जमादारी तुमको दी गई।
लेकिन तनख्वाह तुम्हारी वही रहेगी।"
राजाराम और तंबूवाला सिपाही हँसा। तंबूवाले ने कहा, "जमादार साहब ने इतनी मिहनत से चोर पकड़ा, जमादारी मिली, लेकिन अब तो कुछ और ही बात जान पड़ती है।"
मुन्ना ने कहा, "रानीजी की इच्छा। जमादार जटाशंकर को उन्होंने सिपाही बना दिया, लेकिन तनख्वाह वही रखी। आज हुक्म हुआ है, जमादार को 20) का इनाम मिले, क्योंकि काम बहुत अच्छा किया।"
राजाराम ने अपनी तरफ से समझा और खुश होकर दोमंजिले के मालखानेवाले पहरेदार जमादार जटाशंकर को, जो आँगन की ओर खड़े थे, आवाज लगाकर कहा, "जमादार, कैसा सच्चा फैसला आया है !" तंबू वाला, रुस्तम का तरफदार, कुछ न समझा। आवाज बैठाकर कहा, "बड़े आदमी का फैसला बड़े आदमी जाने।"
"अगर सही मानी में तरक्की चाहते हो तो चलो उठकर।" मुन्ना ने कहा। रुस्तम उठकरचला। जीने पर मुन्ना ने कहा, "अगर खजाने में उसी वक्त चोरी हो गई हो तो छाँटदिए जाओगे या बचोगे?"
रुस्तम उछलकर सहम गया, "ऐं !"
"रानी के हथकंडे हैं, कुछ समझता भी है? जैसा-जैसा कहा जाए, कर।" कहकर मुन्नाने पाँच रुपए का एक नोट निकालकर दिया। शरमाकर रुस्तम ने ले लिया, कहा, "बस?"
मुन्ना ने कहा, "काम तुम्हारा चार आने का भी नहीं। जब काम पसंद आएगा, नब। यह
तुंबा-फेरी किसलिए हो रही है, यह न तुम जानते हो, न हम। यह सिर्फ़ रानीजी कोमालूम है। चलो, अभी तुमसे बहुत काम है। अपनी वर्दी पहनो, अब तुम फिर सिपाही केसिपाही।"
जमादार जटाशंकर ने वर्दी उतार दी। रुस्तम ने खीस निपोड़कर पहनते हुए कहा,"जमादार, जो कुछ भी आपने किया, आप समझें; जमादारी में आपसे हमने सलामी ली,इसका ख्याल न करें, मुआफ कर दें।"
जमादार खुश हो गए। कहा, "यह राजा-रानी का खेल है। कभी घोड़े पर चढ़ना पड़ताहै, कभी गधे पर।"
मुन्ना ने कहा, "चलो।" कुछ आगे बढ़कर तीस रुपए दिए। कहा, "दस राजाराम को दो औरबीस तुम लो। रानीजी ने इनाम दिया है।"रुपए लेकर जटाशंकर ने कहा, "लेकिन वहाँ ताला टूट गया होगा, तो क्या होगा?""देखो, जमादार, तुम्हारे पास बचत है, तुम्हारे पास एक ही कुंजी रहती है। दूसरीकुंजी कहाँ से आई, खजानची से पूछोगे तो नौकरी जाएगी। खजानची भी क्या जाने? वह ख़ज़ाने का ताला तोड़वाएगा? जिनका रुपया है, वे ऐसे निकालें या वैसे; किसी का क्या?"
"यह भी ठीक है।"
"चुपचाप बैठे रहो। अब चढ़ाई होगी।"
"चढ़ाई क्या?"
"रानीजी की विजय।"
"उनकी तो विजय ही है।"