प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कुल हों। खुली तरफ
खिड़कीवाला बाग। दूसरे किनारे मर्दों के लिए बड़ा जलाशय, गहरा, मछलियों कीखान। किनारे नारियलों की कतार। दूसरी पर, आम, जामुन, कटहल, लीची, नारंगी,शहतूत, फ़ालसा, बादाम, रक्तचंदन आदि के पेड़। कहीं-कहीं गुलचीनी, गंधराज,
अशोक, हींग,अनार, गुलाबजामुन, योजनगंधा।खुली, हवादार खिड़कियों के एक बगल पलँग बिछा है, मशहरी लगी है। एक बड़ी मेज़लगी है; काठ की; मगर अच्छी, कई कुर्सियाँ चारों ओर से रखी हैं। दो आलमारियाँहैं जिनमें सामान, कपड़े और किताबें हैं। भीतर, दूसरी खमसार के रूप, बड़ी बैठकहै। बत्ती से ही उजाला होता है। वहाँ प्रभाकर साथियों के साथ काम करता है।
बैठक की दूसरी दीवार अकेली है, बड़ी खिड़कियाँ लगी हैं, खोल दी जाएं तो गुप्तकार्य दिखें, लेकिन पेड़ों की घनी छाँह है। फिर भी काम चल जाए, दिए जलाने कीदिक्कत न रहे, पर, डाल पर चढ़े अजनबी से दिख जाने की शंका, प्रभाकर खिड़कियाँ बंद रखता है। जीने की तरफ के पहरे से, एक दूसरे आँगन के बरामदे से आने-जाने का रास्ता है। प्रभाकर के कमरे के छोर से तालाब को निकलने का एक बाहरी जीना है।
पहले नीचे और ऊपर के दरवाजों में ताले पड़े रहते थे; लोहे के पात जड़े बाहरवाले और काठ के भीतरवाले में। यह उसका एकांत रास्ता है। घिर जाने परपहरेवाले जीने से उतरने का दूसरा रास्ता है, फिर कई तरफ फूटी दालाने, आँगन सेआँगन को चलनेवाली है।
वास निर्जन। निकलने और पैठने की राहें प्रभाकर देख चुका। सरोवर के दूसरी ओरमर्दाना बाग़ है, जिसमें तीन हजार पेड़। गढ़ की दीवार के दूसरी तरफ गाँव कारास्ता निर्जन। और भी राहें हैं। इससे वह एक रोज़ बाहर के लिए निकल चुका है।
रासपुर, बड़ा गाँव, केंद्र है, चर्खे और करघे का काम होता है, जनता और जुलाहोंमें प्रचार भी। सभी कमकरों का दिल बढ़ा हुआ। स्वदेशी-प्रचार के गीत गाते हुए|
काम करते हुए। प्रभाकर का व्याख्यान हुआ। निरीक्षक-जैसे गए थे। बहुत-से दूसरे केंद्र गए। फिर कलकत्ता चलने का बहाना बनाकर लौटे और रात को अपने प्रासाद-वासपर आए।
बंगाल और सारे देश में आंदोलन की चर्चा है। सैकड़ों की प्रांत में फैले हुए।संगठन और व्याख्यान और काम करते चले। विदेशी का बहिष्कार जोरों पर। जगह-जगह'युगांतर' की छिपकर बातें। सुरेंद्रनाथ और विपिनचंद्र के व्याख्यानों कीतारीफ़। अखबार रंगे हुए। वंदेमातरम् का पहला समस्वर आकाश को चीरता हुआ।
गीत;भिन्न कवियों-गायकों के भी संगठन, काम; दिन-रात काम; एक लगन।प्रभाकर नहाने चला। सरोवर पर पक्के घाट हैं, लंबान की दोनों पंक्तियों केबीचों-बीच दूसरा घाट निकट है। एकांत रहता है। कोठी के पिछले छोर से दूसरीतरफवाला घाट निकट पड़ता है। प्रभाकर उसी में नहाता है। कोठी के सदर फाटक कीबग़ल में सरोवर का राजघाट है। उसमें लोग आते-जाते हैं। दोनों घाटों के चारोंओर मौलसिरी के पेड़ लगे हैं और काफी पुराने हो चुके हैं। बड़ी घनी छाया है।
वैसी ही ठंडक भी।प्रभाकर ने डुबकियाँ लगाकर स्नान किया। भीगे अँगोछे से बदन मला। हाथ-पैररगड़े। कुल्ले किए। कुछ तैरा, कुछ खेला। इधर-उधर के दृश्य देखे, पानी से भीगीपलकों से कैसे दिखते हैं। फिर निकलकर धोती बदली, धोती धोयी और निचोड़कर, गीलीधोती और तौलिया लेकर चला।