मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इंप्रेस्ट से रुपयानिकलवाकर, गवाह तैयार करके मुन्ना ने खजानची को कहीं का न रखा था। उसकोपुरस्कार भी मिलता था। इन कामों में रानी साहिबा का हाथ था। धीरे-धीरे रानी काप्रेम घनीभूत किया गया। दो-एक बार रात को कोठी में बुलाकर िलाया पिलाया गया।
खजानची की कल्पना दूर तक चढ़ गई। रानी का चरित्र जैसा था, उससे उन्हें जल्दसफल होकर राज्य करने में अविश्वास न रहा।कुंजी देते हुए मुन्ना ने कहा, "रानी साहिबा ने कहा है, अब तुम यहाँ तक आ गए।"
कहकर उसने अपनी छाती पर हाथ रखा।
खोदाबख्श खुश होकर बोले, "मेहरबानी !"
मुन्ना ने कहा, "आप आज ही जाइए और हिसाब लगाकर मुझे बताइएगा, मैं राह पर पीपलके नीचे मिलूँगी, कितना रुपया निकाला गया। आपको तो मालूम है, काम दूसरे सेकराया जाता है, हिसाब दूसरे से लिया जाता है। जिसने रुपया निकाला वह खा नहींगया, मालूम हो जाएगा। फिर उसी तरह बिल बनाकर जरूरी लिखकर सही करा लीजिए। रानीसाहिबा वह बिल देखकर वापस कर देंगी। एकाउंटटेंट के पास बाद को भेज दीजिए। कामहो जाने पर इनाम मिलेगा।"
कहकर मुन्ना लौटी। खजानची देखते रहे। सोचते रहे। उनसे नोटों-वाले संदूक कीकुंजी ली गई थी। अंदाजन दो लाख रुपया था। सोचकर काँपे। दो लाख रुपए का जाल।इंप्रेस्ट से हजार-पाँच सौ रुपए निकाल लेना बड़ी बात नहीं। एकाउंटेंट को शक
नहीं होता। दो-दो लाख का बिल ! इतना रुपया तो मालगुजारी के वक्त ही जाता है।मुन्ना ने यह रुपएवाला जाल अपनी तरफ से किया था। रानी साहिबा को इसकी खबर नथी। बुआ को झुकाने के लिए उन्होंने आज्ञा दी थी कि किसी सिपाही या जमादार सेफैमा दी जाए, कुंजी उनके हाथ में रहे; लेकिन मुन्ना ने लंबा हाथ मारा।
खजानची ग्यारह बजे के करीब खज़ाने आए। जटाशंकर बैठे थे। ख़जाने में उस समयराजाराम का पहरा बदल चुका था। रामरतन था। उसने बहुत तरह की बातें सुनी थीं। परवह आदी था। खड़ा रहा। खजानची ने वही संदूक खोला। संदूक में एक भी नोट न था।संदूक का बीजक निकालकर देखा, दो लाख तेरह हजार के नोट थे।
जटाशंकर तके हुए थे। रामरतन पहरे पर टहल रहा था। क्या हो रहा है, क्या नहीं,इसकी उसको खबर न थी। खजानची ने चुपचाप बीजक निकालकर जेब में किया और संदूक मेंताली लगाई, फिर बाहरवाला ताला लगाया। जटाशंकर फाटक की आड़ से साधारण भाव सेदेख रहे थे। सिपाही चौंका, पर सँभलकर टहलने लगा।
खज़ानची ताला लगाकर चले। पीछे-पीछे जटाशंकर हो लिए। खजानची घबराए हुए थे।जटाशंकर के लिए इतना काफी था। अभी तक कोई पकड़ उन्हें न मिली थी। खजाने से कुछदूर निकल जाने पर खजानची ने उन्हें देखा, घबराहट को दबाकर पूछा, "क्यों
जमादार, क्या बात है?"जटाशंकर ने जवाब नहीं दिया। ख़ज़ानची की जेब पकड़ ली। "हाथ पैर हिलाए कि उठाकर
दे मारा और हड्डी-हड्डी अलग कर दी।" गरजकर कहा।
"यहाँ तुम्हारा क्या है?"
"यहाँ हमारी रोटियाँ हैं और आपकी भी।"
"हम पर हाथ उठाने का नतीजा मालूम होगा?"
"बहुत अच्छी तरह।"
"जबान हिलायी तो..."
"चुप रहिए।"
"हम वही जिन्होंने रानों के नीचे रखा और सदियों। यहाँ कुछ ऐसा ही।"जटाशंकर फौजी आदमी थे। धोखे-पर-धोखा खा चुके थे। ताव आ गया। चाहा कि उठाकर पटकदें। लेकिन सँभल गए। कहा, "खजानची साहब, हमको यही हुक्म है। आप तो अब वही हैं।सलाम।"
खजानची ने कहा, "रा..."
"हुजूर, निकालनेवाले तो हमी हैं। यह फर्द हमको दे दीजिए।"
"उन्हीं का हुक्म?"
"हुजूर ! लेकिन उससे न कहिएगा, और आगेवाली कार्रवाई पहले हमसे। यहाँ भी तो एक
कुंजी रहती है?"
"हाँ, हाँ, ठीक है। यह लो।" खजानची ने बीजक दे दिया। देना नहीं चाहते, हाथ काँपा ! पर काँटा ऐसा ही था। सोचा, "रुपए इसी ने निकाले हैं। दो आदमियों के सामने कहला लेना है।"
जटाशंकर ने बीजक लेकर कहा, "इसकी बात उससे मत कहिएगा, नहीं तो हम पकड़ जाएंगे।
उससे यह मालूम कीजिए कि कहाँ रखा है? आपसे कहे देते हैं कि निकालकर हमने दिए।"
"तो वे पहुँच गए।"
"कितने लिखे हैं? बताइए, नहीं तो हमें पकड़वाना पड़ेगा।"
"दो लाख तेरह हजार। जमादार, बहुत नाजुक मामला है। भेद न खुले। तुम्हें भी मिलेगा।"
"आगेवाली लीपापोती भी हमें मालूम होनी चाहिए। रुपया रखा कहाँ है, पूछ लीजिएगा,
नहीं तो हम पुछवाएँगे। कल हुजूर इसी वक्त ख़जाने में तशरीफ ले आने की मिहरबानी
करें, नहीं तो रा--के पास मामला दायर होगा। खूब ख़याल रहे (बीजक दिखाकर) इसका
हाल किसी से कहिएगा तो बचिएगा नहीं। हमीं-आप तक इसका भेद है।"
"यह तै रहा। लेकिन तुम भी इसका जिक्र न करना।"
"हुजूर का मामला, जिक्र किससे किया जाएगा?"
जमादार राजा को संबोधन कर रहे थे, खोदाबख्श अपने को समझते थे। सलाम करके
जमादार वापस आए, ख़ज़ानची आगे बढ़े। पीपल के चबतूरे पर मुन्ना बैठी थी। देखकर
मुसकराती हुई सामने आई। "कितनी है?" होंठ रंगकर पूछा।
"पाँच लाख।" खजानची ने छूटते ही कहा।
मुन्ना ने अंक मन में दोहराए।
"तो जल्द बिल तैयार हो जाना चाहिए। राजा साहब के दस्तखत बनाकर एकाउंटेंट केपास पहुँचा दिया जाना चाहिए।"
खजानची मन में कुढ़ा। सोचा, इस बेवकूफ़ को कौन समझाये, दो-दो, ढाई-ढाई लाख
रुपए, ज्यादा रुपए होने पर छिपा रखने के सिवा, सीधे रास्ते से हज्म नहीं किए
जा सकते। वे राजा की निगाह पर आएँगे। बिल जाली बना लिया जा सकता है, पर खर्च
का मेमो राजा की नजर से गुज़रेगा। इम्प्रेस्ट का रुपया एक साथ मेमो बनकर
निकलता है घर के खर्च के लिए। उससे हज़ार-पाँच सौ साल-छः महीने में निकाल लिया
जा सकता है। उसके बिल सही होकर एकाउंटेंट के पास भेजे जाते हैं तो कैश-लेजर कर
लिया जाता है, उसका अलग से मेमो में उल्लेख नहीं आता।
खुलकर खज़ानची ने कहा, "अच्छी बात है," फिर पूछा, "रुपए रानी साहिबा के पासपहुँच गए?"
"उसी वक्त," स्वर को मुलायम करके मुन्ना ने कहा, "नहीं तो रखे कहाँ जाएंगे?"
"बिल बनाकर अकोंटेंट के पास भेजने के लिए क्या रानी साहिबा ने हुक्म दिया है?"
"हमसे सवाल करने के क्या मानी? हम जैसा सुनते हैं, वैसा कहते हैं।"
"अच्छा तो उसी तरह बिल भेज देंगे।" खजानची को अँधेरा दिखा। वह रास्ता काटकरचले।
मुन्ना को जान पड़ा, कुछ बिगड़ गया। कुछ अप्रतिभ हुई। मगर फिर चेतन होकर कहा,
"आप इतना नहीं समझते जब लोहे के संदूक से नोट गायब हो सकते हैं, तब बाकीकार्रवाई भी हो सकती है।"
"कैसे?"
जैसे आपसे कुंजी ली गई।"
"वैसे ही मेमो पर राजा के दस्तखत करा लिए जाएंगे और पाँच लाख रुपए के एक खर्च
पर?"
"जहाँ पाँच लाख की चोरी होती है, वहाँ एक लाख की कम-से-कम रिश्वत होगी, और इस
रक़म से काम न हो, ऐसा काम अभी संसार में नहीं रचा गया।"
"यह तो हम समझे, लेकिन मेमो पर राजा के दस्तखत कैसे होंगे?"
"मेमो क्या है?"
"जिस पर बिल के रुपए लिखे जाते हैं।"
"राजा की सही हो जाने पर ये रुपए दर्ज कर दिए जाएंगे।"
खजानची खुश हो गए। कहा, "हाँ, ऐसा हो सकता है लेकिन वहाँ भी लगाव होगा।"
"राज्य रानी का भी है, लगाव सबसे है, जो उनका काम करेंगे, उन पर वे मिहरबान
रहेंगी।"
"अच्छी बात है; अब कुल कार्रवाई कर ली जाएगी, लेकिन एकाउंटेंट समझ जाएंगे।"
"कौन समझेगा, कौन नहीं, इसकी चिंता व्यर्थ है।"
"यह भी ठीक। हमें क्या मालूम, कौन-कौन नेक नज़र पर हैं।"
मुन्ना ख़ज़ानची की नुकीली दाढ़ी देखती रही। खजानची ने खुश होकर रास्ता पकड़ा।