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भाग 19

5 अगस्त 2022

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इंप्रेस्ट से रुपयानिकलवाकर, गवाह तैयार करके मुन्ना ने खजानची को कहीं का न रखा था। उसकोपुरस्कार भी मिलता था। इन कामों में रानी साहिबा का हाथ था। धीरे-धीरे रानी काप्रेम घनीभूत किया गया। दो-एक बार रात को कोठी में बुलाकर िलाया पिलाया गया।

खजानची की कल्पना दूर तक चढ़ गई। रानी का चरित्र जैसा था, उससे उन्हें जल्दसफल होकर राज्य करने में अविश्वास न रहा।कुंजी देते हुए मुन्ना ने कहा, "रानी साहिबा ने कहा है, अब तुम यहाँ तक आ गए।"

कहकर उसने अपनी छाती पर हाथ रखा।

खोदाबख्श खुश होकर बोले, "मेहरबानी !"

मुन्ना ने कहा, "आप आज ही जाइए और हिसाब लगाकर मुझे बताइएगा, मैं राह पर पीपलके नीचे मिलूँगी, कितना रुपया निकाला गया। आपको तो मालूम है, काम दूसरे सेकराया जाता है, हिसाब दूसरे से लिया जाता है। जिसने रुपया निकाला वह खा नहींगया, मालूम हो जाएगा। फिर उसी तरह बिल बनाकर जरूरी लिखकर सही करा लीजिए। रानीसाहिबा वह बिल देखकर वापस कर देंगी। एकाउंटटेंट के पास बाद को भेज दीजिए। कामहो जाने पर इनाम मिलेगा।"

कहकर मुन्ना लौटी। खजानची देखते रहे। सोचते रहे। उनसे नोटों-वाले संदूक कीकुंजी ली गई थी। अंदाजन दो लाख रुपया था। सोचकर काँपे। दो लाख रुपए का जाल।इंप्रेस्ट से हजार-पाँच सौ रुपए निकाल लेना बड़ी बात नहीं। एकाउंटेंट को शक

नहीं होता। दो-दो लाख का बिल ! इतना रुपया तो मालगुजारी के वक्त ही जाता है।मुन्ना ने यह रुपएवाला जाल अपनी तरफ से किया था। रानी साहिबा को इसकी खबर नथी। बुआ को झुकाने के लिए उन्होंने आज्ञा दी थी कि किसी सिपाही या जमादार सेफैमा दी जाए, कुंजी उनके हाथ में रहे; लेकिन मुन्ना ने लंबा हाथ मारा।

खजानची ग्यारह बजे के करीब खज़ाने आए। जटाशंकर बैठे थे। ख़जाने में उस समयराजाराम का पहरा बदल चुका था। रामरतन था। उसने बहुत तरह की बातें सुनी थीं। परवह आदी था। खड़ा रहा। खजानची ने वही संदूक खोला। संदूक में एक भी नोट न था।संदूक का बीजक निकालकर देखा, दो लाख तेरह हजार के नोट थे।

जटाशंकर तके हुए थे। रामरतन पहरे पर टहल रहा था। क्या हो रहा है, क्या नहीं,इसकी उसको खबर न थी। खजानची ने चुपचाप बीजक निकालकर जेब में किया और संदूक मेंताली लगाई, फिर बाहरवाला ताला लगाया। जटाशंकर फाटक की आड़ से साधारण भाव सेदेख रहे थे। सिपाही चौंका, पर सँभलकर टहलने लगा।

खज़ानची ताला लगाकर चले। पीछे-पीछे जटाशंकर हो लिए। खजानची घबराए हुए थे।जटाशंकर के लिए इतना काफी था। अभी तक कोई पकड़ उन्हें न मिली थी। खजाने से कुछदूर निकल जाने पर खजानची ने उन्हें देखा, घबराहट को दबाकर पूछा, "क्यों

जमादार, क्या बात है?"जटाशंकर ने जवाब नहीं दिया। ख़ज़ानची की जेब पकड़ ली। "हाथ पैर हिलाए कि उठाकर

दे मारा और हड्डी-हड्डी अलग कर दी।" गरजकर कहा।

"यहाँ तुम्हारा क्या है?"

"यहाँ हमारी रोटियाँ हैं और आपकी भी।"

"हम पर हाथ उठाने का नतीजा मालूम होगा?"

"बहुत अच्छी तरह।"

"जबान हिलायी तो..."

"चुप रहिए।"

"हम वही जिन्होंने रानों के नीचे रखा और सदियों। यहाँ कुछ ऐसा ही।"जटाशंकर फौजी आदमी थे। धोखे-पर-धोखा खा चुके थे। ताव आ गया। चाहा कि उठाकर पटकदें। लेकिन सँभल गए। कहा, "खजानची साहब, हमको यही हुक्म है। आप तो अब वही हैं।सलाम।"

खजानची ने कहा, "रा..."

"हुजूर, निकालनेवाले तो हमी हैं। यह फर्द हमको दे दीजिए।"

"उन्हीं का हुक्म?"

"हुजूर ! लेकिन उससे न कहिएगा, और आगेवाली कार्रवाई पहले हमसे। यहाँ भी तो एक

कुंजी रहती है?"

"हाँ, हाँ, ठीक है। यह लो।" खजानची ने बीजक दे दिया। देना नहीं चाहते, हाथ  काँपा ! पर काँटा ऐसा ही था। सोचा, "रुपए इसी ने निकाले हैं। दो आदमियों के सामने कहला लेना है।"

जटाशंकर ने बीजक लेकर कहा, "इसकी बात उससे मत कहिएगा, नहीं तो हम पकड़ जाएंगे।

उससे यह मालूम कीजिए कि कहाँ रखा है? आपसे कहे देते हैं कि निकालकर हमने दिए।"

"तो वे पहुँच गए।"

"कितने लिखे हैं? बताइए, नहीं तो हमें पकड़वाना पड़ेगा।"

"दो लाख तेरह हजार। जमादार, बहुत नाजुक मामला है। भेद न खुले। तुम्हें भी मिलेगा।"

"आगेवाली लीपापोती भी हमें मालूम होनी चाहिए। रुपया रखा कहाँ है, पूछ लीजिएगा,

नहीं तो हम पुछवाएँगे। कल हुजूर इसी वक्त ख़जाने में तशरीफ ले आने की मिहरबानी

करें, नहीं तो रा--के पास मामला दायर होगा। खूब ख़याल रहे (बीजक दिखाकर) इसका

हाल किसी से कहिएगा तो बचिएगा नहीं। हमीं-आप तक इसका भेद है।"

"यह तै रहा। लेकिन तुम भी इसका जिक्र न करना।"

"हुजूर का मामला, जिक्र किससे किया जाएगा?"

जमादार राजा को संबोधन कर रहे थे, खोदाबख्श अपने को समझते थे। सलाम करके

जमादार वापस आए, ख़ज़ानची आगे बढ़े। पीपल के चबतूरे पर मुन्ना बैठी थी। देखकर

मुसकराती हुई सामने आई। "कितनी है?" होंठ रंगकर पूछा।

"पाँच लाख।" खजानची ने छूटते ही कहा।

मुन्ना ने अंक मन में दोहराए।

"तो जल्द बिल तैयार हो जाना चाहिए। राजा साहब के दस्तखत बनाकर एकाउंटेंट केपास पहुँचा दिया जाना चाहिए।"

खजानची मन में कुढ़ा। सोचा, इस बेवकूफ़ को कौन समझाये, दो-दो, ढाई-ढाई लाख

रुपए, ज्यादा रुपए होने पर छिपा रखने के सिवा, सीधे रास्ते से हज्म नहीं किए

जा सकते। वे राजा की निगाह पर आएँगे। बिल जाली बना लिया जा सकता है, पर खर्च

का मेमो राजा की नजर से गुज़रेगा। इम्प्रेस्ट का रुपया एक साथ मेमो बनकर

निकलता है घर के खर्च के लिए। उससे हज़ार-पाँच सौ साल-छः महीने में निकाल लिया

जा सकता है। उसके बिल सही होकर एकाउंटेंट के पास भेजे जाते हैं तो कैश-लेजर कर

लिया जाता है, उसका अलग से मेमो में उल्लेख नहीं आता।

खुलकर खज़ानची ने कहा, "अच्छी बात है," फिर पूछा, "रुपए रानी साहिबा के पासपहुँच गए?"

"उसी वक्त," स्वर को मुलायम करके मुन्ना ने कहा, "नहीं तो रखे कहाँ जाएंगे?"

"बिल बनाकर अकोंटेंट के पास भेजने के लिए क्या रानी साहिबा ने हुक्म दिया है?"

"हमसे सवाल करने के क्या मानी? हम जैसा सुनते हैं, वैसा कहते हैं।"

"अच्छा तो उसी तरह बिल भेज देंगे।" खजानची को अँधेरा दिखा। वह रास्ता काटकरचले।

मुन्ना को जान पड़ा, कुछ बिगड़ गया। कुछ अप्रतिभ हुई। मगर फिर चेतन होकर कहा,

"आप इतना नहीं समझते जब लोहे के संदूक से नोट गायब हो सकते हैं, तब बाकीकार्रवाई भी हो सकती है।"

"कैसे?"

जैसे आपसे कुंजी ली गई।"

"वैसे ही मेमो पर राजा के दस्तखत करा लिए जाएंगे और पाँच लाख रुपए के एक खर्च

पर?"

"जहाँ पाँच लाख की चोरी होती है, वहाँ एक लाख की कम-से-कम रिश्वत होगी, और इस

रक़म से काम न हो, ऐसा काम अभी संसार में नहीं रचा गया।"

"यह तो हम समझे, लेकिन मेमो पर राजा के दस्तखत कैसे होंगे?"

"मेमो क्या है?"

"जिस पर बिल के रुपए लिखे जाते हैं।"

"राजा की सही हो जाने पर ये रुपए दर्ज कर दिए जाएंगे।"

खजानची खुश हो गए। कहा, "हाँ, ऐसा हो सकता है लेकिन वहाँ भी लगाव होगा।"

"राज्य रानी का भी है, लगाव सबसे है, जो उनका काम करेंगे, उन पर वे मिहरबान

रहेंगी।"

"अच्छी बात है; अब कुल कार्रवाई कर ली जाएगी, लेकिन एकाउंटेंट समझ जाएंगे।"

"कौन समझेगा, कौन नहीं, इसकी चिंता व्यर्थ है।"

"यह भी ठीक। हमें क्या मालूम, कौन-कौन नेक नज़र पर हैं।"

मुन्ना ख़ज़ानची की नुकीली दाढ़ी देखती रही। खजानची ने खुश होकर रास्ता पकड़ा।

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रचनाएँ
चोटी की पकड़
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उनकी प्रायः हर कथा कृति का परिवेश सामाजिक यथार्थ से अनुप्राणित है। यही कारण है कि उनके कतिपय ऐतिहासिक पात्रों को भी हम एक सुस्पष्ट सामाजिक भूमिका में देखते हैं। चोटी की पकड़ यद्यपि ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन इतिहास के खण्डहर इसमें पूरी तरह मौजूद हैं। निराला सूर्यकांत त्रिपाठी ने निम्नलिखित में से कौन सा लिखा है? निराला की प्रमुख कृतियों में प्रभावती, छोटी की पकाड़ और निरुपमा जैसे उपन्यास शामिल हैं; उनकी लेखन शैली उनके समकालीनों से बिल्कुल अलग थी कि सूर्यकांत त्रिपाठी को 'निराला' की उपाधि मिली, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ 'अद्वितीय' हैं।
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चोटी की पकड़ भाग 1

5 अगस्त 2022
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सत्रहवीं सदी का पुराना मकान। मकान नहीं, प्रासाद; बल्कि गढ़। दो मील घेरकर चारदीवार। बड़े-बड़े दो प्रासाद। एक पुराना, एक नया। हमारा मतलब पुराने से है। नए में जागीरदार रहते हैं। हैसियत एक अच्छे राजे की।

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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मुन्ना के बतलाए हुए ढंग से बुआ ने एक सफेद साड़ी पहनी। विधवा के रजत वेश से पालकी पर बैठीं। वहाँ के सभी कुछ उन्हें प्रभावित कर चुके थे, पालकी एक और हुई। कहारों ने पालकी उठाई और अपनी खास बोली से कोलाहल

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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ब्याह के बाद जागीरदार राजा राजेंद्रप्रताप कलकत्ता गए। आवश्यक काम था।जमींदारों की तरफ से गुप्त बुलावा था। सभा थी।मध्य कलकत्ता में एक आलीशान कोठी उन्होंने खरीदी थी। ऐशो-इशरत के साधन वहाँसुलभ थे, राजा-रई

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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राजा राजेंद्रप्रताप के कोचमैन मुसलमान हैं। तीन बग्घियाँ और आठ घोड़े कलकत्ता में हैं, कुछ अधिक राजधानी में। अली एक कोचमैन हैं। इनके पिता लखनऊ में रहते थे, पूर्वज ईरान के रहनेवाले; बाद को शाह वाजिद अली

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भाग 5

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दूसरे दिन कुछ गुंडों की मदद ली। भले-आदमी बने रहनेवाले दो आदमी फंसे।उन्होंने रपोट लिखवाई। कुछ पढ़े-लिखे थे, पर बायाँ अँगूठा घिस कर गए थे।अँगूठे का निशान लगाया। गुंडों ने कहा, "हुजूर का काम हो गया, अब च

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"यूसुफ बहुत खुश हुए

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भाग 7

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तीसरे दिन राजा साहब की चलने की तैयारी हुई। एजाज को भी चलना था। उससे बातचीतहो चुकी थी। उसने तैयारी कर ली। इस बार नसीम और सिकत्तर को यहीं छोड़ा। नसीमको कुल बातें लिखवा दीं। एक नकल अपने पास रखी। थोड़ा-सा

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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पुरानी कोठी के सिपाहियों के अफसर जमादार जटाशंकर सिंहद्वार पर रहते हैं। पलटनमें हवलदार थे। ब्रह्मा की लड़ाई के समय नाम कटा लिया। जवान अच्छे तगड़े।नौकरी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आए। निशाना अच्छा लगाते हैं। रा

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भाग 9

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राजा राजेंद्रप्रताप राजधानी में एजाज के साथ रह रहे हैं। उसी रोज आ गए।गढ़ के बाहर एक बड़े तालाब के बीच में टापू की तरह सुंदर बँगला है। चारों तरफसे लोहे की मोटी-मोटी छड़ें गाड़कर पुल की तरह सुंदर रेलिंग

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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पहले दिन। मुन्ना ने सिपाही की आँख बचाकर जमादार को आने की सूचना दी और आड़में जहाँ बातचीत की थी, रास्ता छोड़कर उसी तरफ चली। जमादार ड्योढ़ी में कुर्सीपर बैठे थे। सिपाही खजाने के पास पहरे पर ख़ा था। सुबह

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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दिलावर रामफल के पास गया। अपने जीवन से उसको बड़ी ग्लानि हुई। बचाव नहीं। नसोंसे जैसे देह, वह दुनिया के जाल से बँधा हुआ है और सिर्फ दस रुपए महीने के लिए।जान की बाजी लगाए फिर रहा है। कहीं से छुटकारा नहीं।

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भाग 12

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दूसरे दिन। जमादार जटाशंकर कुर्सी पर बैठे तंबाकू मल रहे थे। रुस्तम पहराबदलने के लिए आया। जमादार को उसने देखा, पर मुँह फेरकर चल दिया, सलामी नहींदी।,जमादार ने पुकारा, "रुस्तम।"रुस्तम का कलेजा धड़का। पर ह

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भाग 13

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मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली। बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई ह

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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जमादार जटाशंकर और राजाराम जब खजाने को लौट रहे थे, तब आँगन से देखा कि फाटकखुला हुआ है और कुर्सी पर रुस्तम बैठा हुआ है। जमादार को बुरा लगा। राजाराम कीभी भवें चढ़ गईं। रुस्तम जानकारी की निगाह से देखता हु

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भाग 15

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बाप से यूसुफ को एजाज का राज मिल चुका था। जब एजाज कलकत्ता रहती थी, खोदाबख्शखजानची तनख्वाह के रुपए लेकर कलकत्तेवाली कोठी में ठहरता था और वहीं सेतनख्वाह चुकाकर रसीद लेता था; एजाज को डाकखाने के जरिये रुपए

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भाग 16

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कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरासिपाही से खबर लेकर गया। कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा स

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भाग 17

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राजा साहब ने देखा कि एजाज का मिज़ाज उखड़ा-उखड़ा है, उन्होंने साजिंदों को रुखसत कर दिया। प्रभाकर को भोजन कराना था, इसलिए बैठाले रहे। काट कुछ गहरा चल गया था; यानी एजाज को राजा साहब चाहते थे, पर दिल देकर

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भाग 18

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रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचानेके लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश होगया। दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए

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भाग 19

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मुन्ना खजानची खोदाबख्श के यहाँ गई। दूसरी औरत से खजानची का तअल्लुक कराकर,दूसरे मर्द से रिश्वत दिलाकर, 'एक औरत से उसका तअल्लुक हो गया है उसकी बीवी सेकहकर लड़ाकर, बिगड़ाकर, राजा साहब के नकली दस्तखत से 'इ

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भाग 20

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यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र कापता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकीके अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथिय

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भाग 21

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भाई नजीर !" यूसुफ ने पुकारा। नजीर बैठे थे। अभी ही फुर्सत मिली थी। सोच रहे थे। कहनेवाले आदमी की बात पक्कीमालूम हो रही थी। घबराए भी थे। गरीब थे। यूसुफ की दोस्ती से फायदा न हुआ था। कटने की ठान ली। आवाज

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भाग 22

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प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहतीथीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कु

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भाग 23

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ख़जांची खोदाबख्श, मुन्ना और जटाशंकर के पेट में पानी था। तीनों ने बचत सोची। तीनों के हाथ में पकड़ है।जटाशंकर से मिलने का वक्त आया। ख़ज़ांची कलकत्ता और राज धानी एक किए हुए हैं।दुपहर का समय। किरणों की जव

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भाग 24

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खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।" मुन्ना, "कौन-सा काम है?" "पहले हम बता दें, तुम्

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डाल के सैकड़ों हाथों ने मुन्ना पर फल रखे। चली जा रही थी, पराग झरे, भौंरे गूँजे। तरह-तरह की चिड़ियों की सुरीली चहक सुन पड़ी। दुपहर के सन्नाटे के साथ मौसम की मिठास। फिर प्रभाकर याद आया। दूर से घुसते देख

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भाग 26

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मुन्ना की निगाह नीली हो गई, चाल ढीली। चलकर महलवाले भीतरी तालाब में अच्छी तरह स्नान किया। गीली धोती से निकलकर बुआ के कमरे में गई। एक बज चुका था।  चुन्नी फर्श पर चटाई बिछाकर दुपहर की नींद ले रही थी। मु

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भाग 27

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मुन्ना बुआ के पास गई। बुलाकर बाग़ ले गई। सूरज नहीं डूबा। पेड़ों पर सुनहली किरणों का राज है। तेज हवा बह रही है। बुआ का शानदार आँचल उड़ रहा है। मुन्नासिपाही या फौजी हिंदुस्तानी औरत की तरह दोनों खूँट कमर

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भाग 28

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रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकरहवा आती हुई। दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर

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भाग 29

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मुन्ना ने देखा, दस बज गए। सिपाहियों को (20-20) रुपए इनाम दिया था। बाजार से कपड़ा आ गया था। टुकड़े काटकर साफे बना लिए। रानी के अपमान का प्रभाव सब परहै। सब चाहते हैं, राजा ऐसा न करें कि उनके रहते एजाज क

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भाग 30

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रुस्तम बुआ को लेकर चला। रात के दस के बाद का समय। गढ़ सुनसान। मर्दाना बाग़  से चला। बुआ को शंका हुई। फिर मिट गई।  "देखती हो दो तलवारें हैं?" रुस्तम ने प्रेमी गले से पूछा।  "हाँ," शरमाकर बुआ ने

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भाग 31

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रूस्तम के जैसे पर लग गए, ऐसा भगा। फैर से दिल धड़का, पैर उठते गए। खेत से भगे सिपाही की तरह सिंहद्वार में घुसा। बात रही, हथियार नहीं डाला। हाँफ रहा था।जैसे दम निकल रहा है। 3-4 सिपाही बाज़ार गए थे, बाकी

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भाग 32

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घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा। निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों क

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भाग 33

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प्रभाकर सचेत हो गया। मौका देखकर बचा हुआ मसाला पानी में फेंक दिया और प्रकाश को दिन होने पर पास के केंद्र भेज दिया। दो आदमी और रहे और प्रभाकर। देख-रेख के लिए दिलावर और दो नौकर हैं, जिनके बाहर के मानी छत

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भाग 34

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कहार से बातें मालूम करके, इनाम देकर, मुन्ना पिछली तरफवाले घाट पर चलकर बैठी।मन में खलबली थी। बुआ का पता नहीं चला। जल्द कोई कार्रवाई होगी, दिल कह रहा था। धड़कन त्यों-त्यों बढ़ रही थी। बचाव की सूरत नजर आ

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जमादार सूख रहे थे, चोरी खुलेगी, बहाना नहीं बन रहा। घबराए जो कलंक नहीं लगा, लगेगा, जेल होगी; बाप-दादों का नाम डूबेगा। राजा गए; दूसरी आफत रहेगी।इसी समय मुन्ना मिली। जमादार ने देखा, उसमें स्फूर्ति है। उन

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भाग 36

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चार का समय, दिन का पिछला पहर। रानी साहिबा की फूलदानियों में ताजे फूल दोबारा रखे गए। हार आ गए केले के पत्ते में लपेटे हुए। बर्फ क्रीम-फल तश्तरियों में नाश्ते के लिए आ गए। दक्खिनवाले बड़े बरामदे में छप्

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भाग 37

5 अगस्त 2022
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आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली।  कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है। खिड़की पर

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भाग 38

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प्रभाकर बहुत काम न कर सके। कुछ किया और कुछ बरबाद कर दिया। भेद खुल जाने कीशंका से इसी रात रवाना हो जाने की सोची। मुन्ना को कह दिया कि अच्छा हो अगररानी साहिबा के साथ या अकेली कलकत्ते में राजा साहब की को

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भाग 39

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यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली कोइज्जत से बैठाला। सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद

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