घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहतेथे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा।
निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों की नसें ढीली पड़ी। एकने डूबते स्वर से कहा, "रानी से राजा का सितारा बुलंद है।" मुन्ना ने कहा,"गई, चलते ठोकर लगी, ईंट दूसरे की रखी है, वह रानी का ही आदमी है, नादानी कररहा है; न इधर का होगा न उधर का। मुमकिन, बदला चुकाने को रानी ने दूसरा हथियारचलाया हो। धीरज छोड़ने की बात नहीं; कल-परसों तक आज का अँधेरा न रहेगा। अगरकहो कि इसके लिए सज़ा होगी, तो काँटा न लगेगा। सब लोग बाल-बाल बच जाएंगे। रुपएभी मिलेंगे। अभी साँस काफी है।"
सिपाही खुश हो गए। सबको अपनी-अपनी जगह जाने के लिए मुन्ना ने कहा। कहा, "रानीका हाल मालूम हो तो जी में जी आए।" यह कहकर रात-ही-रात नयी कोठी की तरफ चली।जहाँ दासियाँ सोती हैं, वहीं घुसकर, एक बग़ल लेट रही। नींद नहीं आई। दूसरे कोबहलाने से अपना जी नहीं मानता। तरह-तरह की उधेड़-बुन से रात कटी। पौ फटी किउठकर बुआ के महल के लिए चली। नयी कोठी में शोर था कि सूरज की किरन के साथ जहाजखुल जाएगा। जागीरदार साहब कलकत्ता रवाना हो रहे हैं। मुन्ना ने एक कहार कोतैनात किया कि जागीरदार साहब के साथ कौन-कौन जाता है, देख आए, रानी जी का
हुक्म है।
कहार मुस्कराया। कहा, "वे तो जाएँगी ही।"
"कौन?"
"कौन हैं जो गाती हैं?"
"और कौन-कौन जाता है; खास तौर से यह देखना, कौन-कौन औरत जाती है; उसके साथ एकही बाँदी है, और भी कोई यहाँ की बर्बादी जाती है या नहीं। रानी साहिबा इनामदेंगी। समझ गया?"
"रानी साहिबा अभी तक चाहती हैं। मैंने अरई कहारिन को छेड़ दिया, कहा, तेरीशक्ल उससे मिलती है। उसने कह दिया। वह एक पंदरहीं नहीं बोली। अरई के लिए माफीमँगा ली, तब दम लिया। सो भी तब जब अबकी तनख्वाह से गुच्छी-करनफूल बनवा देने काकौल करा लिया।" कहकर मटरू हँसा। अपनापे से पूछा, "मुन्ना तेरी कैसी कटती है?"
"फिर तो नहीं माफी माँगेगा?''
"मैंने कहा जात की है, कहीं बैठ जा, या बैठा ले। राम दोहाई, आँख झप जाती है जबदेखता हूँ, तेरे लिए बारोमहीने कातिक है। सिपाही कुत्ते जैसे पीछे लगे रहतेहैं। बहंगी में तीन-तीन को लादकर फेंकूँ।"
"अच्छा चला जा। देखें, कितनी जानकारी रखता है। इनाम में एक थान के दाममिलेंगे; मगर पक्की खबर दे।"
मटरू खुश होकर जहाज़ घाट की ओर चला।
राज का ही जहाज़ है। मटरू जानता है। आदमियों में सबसे दबा, कहार। पहचानकर सबनेराह दे दी। उस वक्त तक राजा या एजाज का आना नहीं हुआ था। मटरू सारा जहाज़ घूमआया। फिर एक किनारे खड़ा हुआ।
आधे घंटे के अंदर एजाज की पालकी आई। एजाज किनारे उतरकर काठ की सीढ़ी से जहाजपर गई-इनाम भेजा।
राजा की सवारी आई। शान से चढ़े। लोग चढ़ने लगे। जहाज खुला।
मटरू ने एक-एक को देखा। रह जानेवाले लोगों के साथ लौटा। एक पहर दिन चढ़ चुका था।
लौटकर मुन्ना से एक-एक बात कही। और पुरस्कार के लिए लाचार निगाहों से देखकर मुस्कराया।
मुन्ना समझ गई। संवाद से खुश होकर पीपलवाले चबूतरे के पास दुपहर ढलते बुलाया।
मटरू मानकर खुले दिल से दूसरे काम को चला। मुन्ना पुरानी कोठी चली।