भगवान कृष्ण और मोरपंख
आज और कल समूचा देश भगवान श्री कृष्ण का जन्म महोत्सव मनाएगा | भगवान कृष्ण की बात करते हैं तो उनके बालों
में लगा मोरपंख का मुकुट अनायास ही सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और सोचने को विवश कर देता है कि क्या कारण है कि भगवान श्री कृष्ण के केशों में सदा मोर मुकुट विराजमान रहता है |
भगवान कृष्ण के मोरपंख धारण करने के पीछे एक तो यही बात समझ आती है कि मोरपंख में सभी इन्द्रधनुषी रंग समाहित
हैं | और ध्यान दें तो भगवान श्रीकृष्ण का जीवन भी कभी एक जैसा नहीं रहा | उनके जीवन में सुख और दुख के अलावा कई अन्य तरह के रंग भी थे | मोरपंख में भी कई रंग होते हैं जो देखने में बहुत ही खूबसूरत लगते हैं | यह जीवन रंगीन है लेकिन यदि हम दुखी मन से जीवन को देखेंगे तो हर रंग बेरंग और बदरंग लगेगा और प्रसन्न मन से देखेंगे तो यह दुनिया बहुत ही सुन्दर और आकर्षक है - बिल्कुल मोरपंख की ही भाँति | साथ ही हिन्दू मान्यता के अनुसार मोरपंख में सभी देवी देवताओं और नवग्रहों का वास माना जाता है | सम्भव है इसलिए भी मैया यशोदा ने उनके बालों में मोरपंख लगाना आरम्भ किया हो |
दूसरी ओर कुछ किम्वदन्तियाँ भी हैं - जैसे एक तो यही कि गोकुल में एक मोर रहा करता था जो कृष्ण का अनन्य भक्त था
| एक बार उसने निश्चय किया कि यदि वह श्री कृष्ण के द्वार पर जाकर कृष्ण कृष्ण का जाप करेगा तो उसे कृष्ण की कृपा प्राप्त होगी – और उसने ऐसा ही किया | लेकिन जब उसकी प्रार्थना सफल नहीं हुई तो वह रोने लगा | उसी समय उधर से एक मैना उड़ रही थी – उसने मोर से उसके रुदन का कारण पूछा | कारण जानकार मैना ने उसे सुझाव दिया कि बरसाने की राधा रानी बहुत उदार हृदया हैं वह तुझ पर अवश्य कृपा करेंगी | मोर वहाँ जा पहुँचा और कृष्ण का जाप करने लगा | राधा ने जब ये सुना तो दौड़ी हुई आईं और मोर को गले से लगा लिया | जब मोर ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने कहा कि उसे कृष्ण के द्वार जाकर फिर से जाप करना चाहिए – लेकिन इस बार कृष्ण के नाम का नहीं बल्कि राधा के नाम का जाप करना चाहिए | मोर ने ऐसा ही किया | राधा का नाम सुनकर कृष्ण दौड़े हुए आए और मोर से इसका कारण पूछा | मोर ने कहा कि इतने समय से आपके नाम का जाप कर रहा हूँ पर आपने कभी दर्शन तक नहीं दिए – आज जब राधा का नाम लिया तो आप दौड़े आए | इस पर कृष्ण ने कहा कि ये उनकी भूल है, लेकिन तुमने राधा का नाम लिया है इसलिए मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि आज से तुम्हारा पंख सदा मेरे सर पर विराजमान रहेगा... साथ ही, यह किम्वदन्ती ही सही, किन्तु इसके माध्यम से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि यदि नारायण को प्राप्त करना है – यदि नारायण की कृपादृष्टि चाहिए – तो सर्वप्रथम उनकी शक्ति को प्रसन्न करना होगा... शक्ति के प्रसन्न होने पर नारायण स्वयं ही साधक पर कृपा करेंगे... शक्ति और शक्तिमान की भक्ति का अनूठा उदाहरण...
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार नृत्य करते हुए मोर का पंख झर गया तो कृष्ण ने उसे उठाकर अपने बालों में लगा लिया | राधा ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मोर के पंख में उन्हें राधा का प्रेम दीख पड़ता है | यह भी माना किम्वदन्ती है... किन्तु अनन्य शाश्वत और निष्काम प्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण अवश्य है...
कुछ ज्योतिषी मानते हैं कि उनकी कुण्डली में कालसर्प दोष था जिसके निवारण के लिए उन्हें मोरपंख लगाया गया था - उनके जीवन की घटनाओं से तो यह बात सही जान पड़ती है - उनका जन्म कारागार में हुआ – माता पिता से दूर रहना प ड़ा... जन्म से ही उन पर बहुत से जानलेवा कष्ट आए - जितनी भी कथाएँ पूतना आदि की हैं वे वास्तव में उस समय बच्चों में फैली बीमारियाँ ही थीं, ये सब कालसर्प दोष के कारण हो सकता है – साथ ही कालसर्प का एक प्रभाव यह भी होता है कि व्यक्ति 36 वर्ष के बाद सभी प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त करता है लेकिन उसका उपभोग नहीं कर पाता है | कृष्ण ने भी 36 वर्ष के बाद सभी प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त कर लिया लेकिन कभी उनका सुख नहीं मिला |
साथ ही मोरपंख को श्री कृष्ण ने राधा के प्रेम का प्रतीक माना जबकि उनके बड़े भाई बलराम शेषनाग के अवतार कहे जाते हैं – और नाग तथा मोर में शत्रुता होती है | इस प्रकार मोरपंख लगाना इस बात का प्रतीक भी माना जा सकता है कि प्रेम बड़ी से बड़ी शत्रुता को भी समाप्त करने की सामर्थ्य रखता है |
हमें जो बात समझ आती है वो यह कि उनके क्षेत्र में मोर बहुतायत में पाए जाते थे - मोर का पंख खूबसूरत तो होता ही है | नन्द बाबा कोई बहुत बड़े सम्राट तो थे नहीं जो मुकुट लगाते - नन्द गोपों के एक क़बीले या वंश के ही तो अधिपति थे जिनका काम था गैयाँ चराना और दूध दुहना - तो मुकुट कैसे लगा पाते | मुकुट तो भगवान कृष्ण ने लगाना आरम्भ किया होगा अपने माता पिता को कारागार से मुक्त कराने के बाद जब युवा राजकुमार रहे होंगे - इसलिए कन्हैया के शैशव काल में यशोदा मैया ने उनके बालों में मोरपंख लगाना शुरू किया होगा लाड़ लाड़ में - जो जीवन भर के लिए माँ के वात्सल्य की निशानी होने के कारण कृष्ण की पसन्द बन गई होगी...
किम्वदन्तियाँ, मान्यताएँ जितनी भी हों – कृष्ण का चरित्र किसी भी किम्वदन्ती – किसी भी मान्यता से बहुत ऊपर है... इसीलिए वे षोडश कला सम्पन्न पूर्ण पुरुष कहलाते हैं... श्री
कृष्ण जन्म महोत्सव की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ...