चैत्र-शुक्ल प्रतिपदा हमारा नया वर्ष कहलाता है l
हिन्दी माह, माह हिन्दी ही, अपने मन को भाता है ll
नव-फसलें, नव-पल्लव कलियाँ, नव-सरिता बहती है l
नव-जीवन में, नव-अमृत मय, नव धारा सी रहती है ll
नव बाला सी प्रकृति सुन्दरी, सद्य: स्नात लुभायी है l
प्रातः दिनकर की बांहों में, विभा सरल मन भायी है ll
नव नवीनतम वर्ष हमारे, मन को बहुत सुहाता है l
चैत्र-शुक्ल प्रतिपदा हमारा नया वर्ष कहलाता है ll
किन्तु प्राण पर पहरा प्रतिपल, काली घटा घनेरी है l
अश्रु बहाती सृष्टि विकल है, मृत्यु सहचरी तेरी है ll
नव कोपल में विष फैला है, विषधर काल हमारा है l
कौन हलाहल पीने वाला, शिव शंकर सा प्यारा है?
नए वर्ष के स्वर्णिम पल में, काल काल बन आता है l
चैत्र-शुक्ल प्रतिपदा हमारा नया वर्ष कहलाता है ll
संशय मन में आस प्रबल है, नए वर्ष का स्वागत है l
अपनी सबल भुजाओं में ही, संकट विषधर नत है ll
तोड़ ही देंगे विषधर फन को, माता जी की महिमा से l
नए वर्ष की पंखुड़ियों को, सजा ही देंगे गरिमा से ll
मानवता जीवित हो बल से, साहस धैर्य समाता है l
चैत्र-शुक्ल प्रतिपदा हमारा नया वर्ष कहलाता है ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'