राम जग के राम हैं, आधार केवल राम हैं l
दीन-दुखियों के लिए, संसार केवल राम हैं ll
देश हित में देश का, शासन सदा चलता रहे l
भय न हो जनतंत्र में, निर्भय ह्रदय पलता रहे ll
न्याय हो निष्पक्ष जन में, स्वस्थ मन की बात हो l
दिन रहे उज्जवल सभी का, भय रहित अब रात हो ll
संत जीवन राज्य का, विस्तार केवल राम हैं l
दीन-दुखियों के लिए, संसार केवल राम हैं ll
आत्म-जीवन तत्व की, पहचान हम करते रहें l
सब चलें सब सँग में, सम्मान सब करते रहें ll
विश्व में मानव दुखों का, अंत होना चाहिए l
सब करें उन्नति यहाँ, मन संत होना चाहिए ll
कर्म की पूजा करें, भरतार केवल राम हैं l
दीन-दुखियों के लिए, संसार केवल राम हैं ll
एक ही परमात्मा के, हम सभी संतान हैं l
भिन्न होते भी हुए हम, एक ही प्रतिमान हैं ll
क्यों करें हम भेद जन में, जब सभी मन एक हैं l
क्यों करें हम भेद मन में, जब सभी जन एक हैं ll
हम प्रकृति के तत्व हैं, अधिकार केवल राम हैं l
दीन-दुखियों के लिए, संसार केवल राम हैं ll
आततायी शक्तियों को, नष्ट करने के लिए l
इस धरा से मानवों के, कष्ट हरने के लिए ll
तुल्य ईश्वर के वही, जो धर्म की रक्षा करे l
सत्यनिष्ठा के लिए, जो कर्म की रक्षा करे ll
मानवों के रूप में, अवतार केवल राम हैं l
दीन-दुखियों के लिए, संसार केवल राम हैं ll
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'