प्रभु तुम जग के पालनहार ll
हम निरीह सन्तानो का तुम कर दो बेडा पार ll
आसमान से विपदा बरसी,
अब उठकर के जागो l
चीर हरण में जैसे भागे,
वैसे उठकर भागो l
पेट सभी का जो भरता है, वही हुआ बेकार ll 1ll
प्रभु तुम जग के पालनहार ll
नदियों पर पहरे बैठे हैं,
और समंदर खाली l
यहाँ हमारे घर के भीतर,
पूरी दाल है काली l
उजले-उजले वस्त्रों की है बनी हुई सरकार ll 2ll
प्रभु तुम जग के पालनहार ll
सत्य बादलों के पीछे से,
छिप कर देख रहा है,
झूठ हमारी आदत में है,
उसने यही कहा है l
अब तो है व्यवहार में अपने, झूठ ही ठेकेदार ll 3ll
प्रभु तुम जग के पालन हार ll
श्रमिक हमारा दिन भर चलता,
संध्या को थक जाता l
स्वेद बहा कर स्वाभिमान से,
सूखी रोटी खाता l
ऊँचे-ऊँचे महल अटारी, उसके ही उपहार l
कौन है उसका पालन हार?
हीरा है बहुमूल्य हमारा,
फिर भी जीवन लेता है l
जल बिन मूल्य सुलभ है हमको
वह तो जीवन देता है l
जिसको हमने कुछ न समझा, वह जीवन आधार l
प्रभु तुम जग के पालन हार ll
उथला जल गहरे में रहकर,
जाने क्या-क्या सहता है l
ऊपर से वो शांत रहे,
पर नीचे-नीचे बहता है l
जो जितना ही शांत रहेगा, उसके कर्म अपार ll6 ll
प्रभु तुम जग के पालन हार l
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'