गीत
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कठिन है पथ पथिक को पथ से मिलाना है तुम्हें l
साध्य को भी साधना के पास लाना है तुम्हें ll
स्वर्ग की है कल्पना, इस सत्य को पहचान लो l
इस धरा के प्रस्तरों से आज तुम अनजान हो ll
व्यग्र होती हैं दिशायें, काल का यह चक्र है l
व्यर्थ है आंसू बहाना, पंक्ति अपनी वक्र है ll
इस धरा पर पग उठाकर, पथ बनाना है तुम्हें l
साध्य को भी..................l
करुण है करुणा से बढ़कर, रंगकर्मी की व्यथा l
मन तरंगित कर रही है, आर्तनादों की कथा ll
कल्पना में विकल होकर, कामना के टूटते पल l
हास्य रस मंदाकिनी है, उलझनों से चल निकल ll
रंगकर्मी की व्यथा ने, मन से माना है तुम्हें l
साध्य को भी..................l
ह्रदयघातों में हमारे, मधुरतम संगीत है l
दुःख भरे इस वक्ष से, अविरल निकलता गीत है ll
अरुण के नेपथ्य में, काली विभा की यवनिका l
श्वेत वर्णों में बिखेरे, दीप के कण दीपिका ll
अंधतम के पर्ण पट, उज्जवल कराना है तुम्हें l
साध्य को भी..................l
शुष्क शोषित कर्म के, बंजर धरा के वक्ष पर l
स्वेद की बूंदें चमकती, नील वर्णी अक्ष पर ll
दिव्य रत्नों से सुशोभित, व्योम का विस्तार है l
कर्म रत्नों की धरा पर, व्यक्ति का अवतार है ll
हारकर भी जीत को, जीवन में पाना है तुम्हें l
साध्य को भी..................l
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'