फूलों की है बात निराली, जग-मग रंग-बिरंगे l
मिलजुल कर रहते हैं सारे, कभी न करते दंगे ll
सोचो कितने मनमोहक हैं, कोमल मन के सच्चे l
टूट जाएं पर आह न भरते, हमसे-तुमसे अच्छे ll
उनको नहीं मरोड़ो l
फूलों को न तोड़ो ll
शीश झुका कर चढ़ जाते हैं, जहाँ चढ़ाये जाते l
मुरझा कर हँसते रहते हैं, जहाँ बिछाए जाते ll
डाली के हैं लाल निराले, अक्षुण्ण उनकी गाथा l
भाग्य सदा है पर-हाथों में, उनका नहीं विधाता ll
उनके तन को जोड़ो l
फूलों को न तोड़ो ll
बाट जोहती आँखें निसदिन, माली कौन हमारा है l
तोड़े न पर हमें सजाये, मन में मौन हमारा है ll
यदि आवश्यक हो तो जग में, हम बलिदानी बन जाएं l
याद करे संसार हमें हम अमिट कहानी बन जाएं ll
अपने मन को मोड़ो ll
फूलों को न तोड़ो ll
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'