क्या रहस्य है समझाते?
रजनी का आंचल है भीगा,
संध्या की आँखें हैं नम l
धरा विकल है, गगन वियोगी,
किंचित मन में हतप्रभ हम ll
नयनों की भाषा में खोकर,
छिपकर हमको बहलाते l
क्या रहस्य है समझाते?
निकट प्रलय भी विस्फारित है,
सागर में उत्ताल तरंग l
वक्षस्थल हैं रौद्र हमारे,
आशायें हैं निखरे रंग ll
कितना रौद्र तुम्हारे मन में l
हाहाकार हमें दिखलाते l
क्या रहस्य है समझाते?
अंधकार को काला करके,
दिन को श्वेत बना डाला l
डूब रहा था दिनकर जल में,
प्रातः रात मना डाला ll
ऐसा क्या तेरे मन में था?
कुछ हमको तो बतलाते l
क्या रहस्य है समझाते?
वन में वृक्ष लगाए तुमने,
धरा नग्न क्यों कर डाली?
पाषाणों को तोड़ गिराया,
देह भग्न क्यों कर डाली?
दृश्य उकेरे अपने मन के,
ऐसा क्या है दिखलाते?
क्या रहस्य है समझाते?
नयनों में है दृश्य निराले,
जो देखें वह दिखलाये l
सृष्टि सुंदरी स्वयं प्रकट है,
अपने-अपने मन भाये ll
अनसुलझी सुलझी स्मृतियां,
निकट ह्रदय नित सुलझाते l
क्या रहस्य है समझाते?
विप्लव जल नदियाँ सागर हैं,
गहराई में बहता जल l
शांति चित्त निर्लिप्त मनों में,
सोया है अनभिज्ञ विकल ll
सूत्रधार पट के पीछे तुम,
गहरा जल लेकर आते l
क्या रहस्य है समझाते?
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'